विश्व एड्स दिवस: कोविड-19 से भी अधिक जानलेवा साबित हो रही है यह महामारी

इस साल एचआईवी एड्स से मरने वालों की संख्या 15.44 लाख पहुंच गई है। 2005 के बाद मौजूदा साल संक्रमितों के लिए सबसे जानलेवा साबित हुआ

By Bhagirath Srivas

On: Tuesday 01 December 2020
 

एचआईवी एड्स की रोकथाम के लिए दुनियाभर में चल रहे प्रयासों को कोविड-19 ने पटरी से उतार दिया है। अकेले इस साल 2020 में एचआईवी एड्स से दुनियाभर में 15.44 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। यह पिछले साल हुई मौतों (6.90 लाख) के मुकाबले दोगुने से अधिक है। एचआईवी एड्स से सबसे अधिक मौतें साल 2005 में हुई थीं। इस साल करीब 17 लाख लोगों की जिंदगी को इस महामारी ने लील लिया था। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों और दुनियाभर की सरकारों के प्रयास से मृत्यु का आंकड़ा लगातार कम होने लगा, लेकिन पिछले एक साल से जारी कोविड-19 महामारी ने इन प्रयासों पर विराम सा लगा दिया है, जिससे एचआईवी एड्स से मरने वालों का आंकड़ा 15 लाख के पार पहुंच गया है। यह आंकड़ा कोविड-19 से अब तक हुई 14.66 लाख मौतों से भी अधिक है।

पिछले 40 सालों के दौरान एचआईवी एड्स से 3.27 करोड़ लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। पिछले साल तक कुल 3.80 करोड़ लोग एचआईवी एड्स से संक्रमित थे। अकेले 2019 में 17 लाख लोग इस महामारी संक्रमित हुए थे। 30 नवंबर 2020 तक एचआईवी एड्स पीड़ितों का आंकड़ा 4.23 करोड़ पहुंच गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो अकेले 2020 में अब तक 43 लाख लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। यह पिछले साल सामने आए संक्रमण से मामलों से ढाई गुणा से भी ज्यादा है। इन आंकड़ों के आधार पर हम कह सकते हैं कि कोविड-19 में एचआईवी के मामलों और मृत्यु में बड़ा उछाल आया है।

उल्लेखनीय है कि सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में एचआईवी को 2030 तक पूरी तरह खत्म करना है। इसके अलावा, 2020 तक नए एचआईवी संक्रमितों की संख्या पांच लाख से नीचे लाना है, यानी 2010 के मुकाबले नए संक्रमण में 75 प्रतिशत की कमी लाना है। 2020 तक एड्स से होने वाली मौतें भी पांच लाख से कम करने का लक्ष्य है। लेकिन ताजा आंकड़े बताते हैं कि लक्ष्य बहुत दूर की कौड़ी है।  

यूनिवर्सिटी ऑफ केपटाउन में इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फेक्शियस डिसीज एंड मॉलेक्यूलर मेडिसन में डेसमंड टुटु एचआईवी सेंटर के उपनिदेशक व मेडिसन के प्रोफेसर लिंडा गेल बेकर के अनुसार, कोविड-19 ने दुनियाभर के स्वास्थ्य तंत्र को तबाह कर दिया है। उनका कहना है कि हो सकता है कि प्रभावी टीका आने के बाद कोविड-19 खत्म हो जाए, लेकिन एचआईवी के टीके का विकास बहुत जटिल और निराशाजनक रहा है। उनके अनुसार, जिस प्रकार कोविड-19 के टीके के लिए सभी पार्टियों ने व्यापक प्रयास किए हैं, ठीक वैसे ही प्रयास एचआईवी और टीबी (क्षयरोग) के टीके के लिए भी जरूरी हैं। बेकर के अनुसार, केवल यही महामारियां ऐसी नहीं हैं जिनका दुनिया को सामना करना है। ऐसी आशंका भी जाहिर की जा रही हैं कि भविष्य में अन्य नई महामारियां उभरकर सामने आएंगी। ऐसा मुख्य रूप से वैश्वीकरण, जलवायु परिवर्तन और वन्यजीवों से निकटता के कारण होगा।

दक्षिण अफ्रीका स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ द विदवाटर्सरैंड में पेरिनेटल एचआईवी रिसर्च यूनिट की कैथरीन एल होपकिंग के अनुसार, कोविड-19 महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य संसाधनों और मौजूदा एचआईवी अभियानों को पटरी से उतार दिया है। दक्षिण अफ्रीकी नेशनल एड्स काउंसिल को चिंता है कि एड्स को नियंत्रित करने की उनकी दीर्घकालीन योजना कहीं खत्म न हो पाए। यह उन देशों की भी सामान्य चिंता है कि जहां एचआईवी के मामले अधिक हैं।

होपकिंग के अनुसार, कोरोनावायरस का प्रसार रोकने के लिए दुनियाभर में लगाए गए लॉकडाउन ने पब्लिक हेल्थकेयर सिस्टम को कई तरीकों से प्रभावित किया। इससे उन देशों में गंभीर चुनौतियां खड़ी हो गईं, जहां एचआईवी के मामले अधिक हैं। होपकिंग बताती हैं कि एचआईवी संक्रमितों को जिंदा रखने के लिए एआरटी (एंटी रेट्रो वायरल) ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है, क्योंकि इसका अब तक टीका नहीं बना है। लॉकडाउन के दौरान एचआईवी संक्रमित घर के निकलकर दवाइयां लेने से डरने लगे। एआरटी डिस्पेंसरी तक जो बहुत से लोग गए उन्हें आपूर्ति श्रृंखला में बाधा से जूझना पड़ा और वे दवाइयों से वंचित रहे। इसके अलावा कोविड-19 मरीजों की बढ़ती तादाद के कारण अन्य बहुत सी सेवाएं बंद रहीं। एनएचआई संक्रमितों से जुड़ी सेवाएं भी इनमें से एक थीं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनएड्स का अनुमान है कि अगर छह महीने तक एचआईवी का इलाज पूरी तरह रुक जाए तो अकेले सब सहारा क्षेत्र में अगले एक साल तक पांच लाख अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं। दक्षिण अफ्रीका उन देशों में शामिल जहां सबसे अधिक एचआईवी संक्रमित हैं और जहां सबसे अधिक एआरटी सेवाओं का इस्तेमाल होता है। एआरटी सेवाओं में रुकावट का संक्रमितों की संख्या और मौत के मामलों में बड़ा उछाल आ सकता है।

होपकिंस के अनुसार, दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 पर अपना ध्यान केंद्रित किया है और अन्य संक्रामक बीमारियों को भुला दिया गया है। इससे एचआईवी कार्यक्रमों को चोट पहुंचाई है और पीड़ितों का खतरा और बढ़ा दिया है।

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