विश्व रोगी सुरक्षा दिवस : इलाज में लापरवाही से हर साल हो रही हैं 26 लाख मौतें 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते है कि भारत जैसे मध्य और निम्न आय वाले देशों में सही देखभाल न मिलने के कारण हर वर्ष 26 लाख मरीजों की मौत हो जाती है, जिन्हें टाला जा सकता है 

By Lalit Maurya

On: Tuesday 17 September 2019
 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया भर में मरीजों की सुरक्षा और सही देखभाल के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए इस वर्ष 17 सितम्बर को पहले विश्व रोगी सुरक्षा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है, जिससे इस मुद्दे की गंभीरता के प्रति विश्व का ध्यान केंद्रित किया जा सके । इसके साथ ही डब्ल्यूएचओ रोगियों के साथ एकजुटता के लिए एक अभियान भी शुरू करने जा रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य संबंधी देखभाल के प्रति उदासीनता के चलते हर वर्ष दुनिया भर में लाखों मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है । जहां इसके परिणामस्वरूप अमीर देशों में हर 10 में से एक मरीज को नुक्सान उठाना पड़ता है । वहीं दूसरी ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते है कि भारत जैसे मध्यम और निम्न आय वाले देशों में सही देखभाल न मिलने के कारण हर वर्ष 26 लाख मरीजों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है । जिनमें से ज्यादातर मौतों को सही उपचार के जरिये टाला जा सकता है । जबकि इसके चलते 13.4 करोड़ लोगों को किसी न किसी रूप से चाहे वो धन संबंधी हो या स्वास्थ्य संबंधी, हानि उठानी पड़ती है। 

होता यह है कि जब लोग बीमार पड़ते हैं, तो या तो वे अपने डॉक्टर के पास जाते हैं, या इस आशा में अपना इलाज करवाने के लिए अस्पताल में दाखिल होते हैं कि वह उन्हें ठीक कर देगा । परन्तु दुर्भाग्यवश कई मामलों में वे जो उपचार प्राप्त करते हैं, वह उपचार ही उन्हें मार देता है | डब्ल्यूएचओ में मरीजों की सुरक्षा और रिस्क मैनेजमेंट की कोऑर्डिनेटर नीलम ढींगरा ने बताया कि यह नुकसान मुख्य रूप से गलत निदान, गलत नुस्खों, दवा के अनुचित उपयोग, गलत तरीके से की गयी सर्जरी और सही तरीके से स्वास्थ्य संबंधी देखभाल न करने के कारण फैले संक्रमण के कारण होते है ।

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस अदनोम घेब्रेयसस ने कहा कि “इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि स्वास्थ्य की देखभाल करते समय किसी भी मरीज को नुकसान नहीं होना चाहिए । हालांकि इसके बावजूद वैश्विक स्तर पर, असुरक्षित देखभाल के चलते हर मिनट कम से कम 5 रोगियों की मृत्यु हो जाती है। उन्होंने कहा कि "हमें एक ऐसी संस्कृति को विकसित करने की जरुरत है जो मरीजों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के बीच साझेदारी को बढ़ावा दे । जिसमें जवाबदेही हो और एक ऐसा वातावरण हो जिसमें दोषारोपण की जगह स्वास्थ्य कार्यकर्ता भयमुक्त होकर ईमानदारी से अपनी गलतियों को स्वीकार कर सकें और उनसे सीख सके । साथ ही जिसमें स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की गलतियों को कम करने के लिए उन्हें सशक्त और प्रशिक्षित किये जाने पर बल दिया जाता हो ।"

मरीजों की स्वास्थ्य सुरक्षा में निवेश करने से न केवल इससे होने वाले आर्थिक नुक्सान को रोका जा सकता है, बल्कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव किये जा सकते हैं। उदाहरण स्वरुप संयुक्त राज्य अमेरिका को ले लीजिये जहां 2010 से 2015 के बीच अस्पतालों में स्वास्थ्य सुरक्षा में सुधार करके एक वर्ष में लगभग 2,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर की बचत की गयी थी । मरीजों की भागीदारी से न केवल बेहतर तरीके से इलाज संभव हो पाता है बल्कि इसके साथ-साथ स्वास्थ्य सुरक्षा में भी सुधार किया जा सकता है। इलाज की प्रक्रिया में मरीजों की भागीदारी जहां स्वास्थ्य को होने वाले नुक्सान को 15 फीसदी तक कम कर सकती है । वहीं इलाज पर हो रहे व्यर्थ और बेतहाशा के खर्चों को कम करके हर साल वैश्विक अर्थव्यवस्था के अरबों डॉलर की बचत भी की जा सकती है।

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