2050 तक हर 4 में से 1 व्‍यक्ति को होगी सुनने में दिक्कत: डब्ल्यूएचओ

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि 2050 तक दुनिया भर में लगभग 250 करोड़ लोगों को सुनाई न देने की समस्या का सामना करना पड़ेगा

By Dayanidhi

On: Tuesday 02 March 2021
 

दुनिया भर के देश जहां स्वास्थ्य संबंधित कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, अब वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वर्ल्ड रिपोर्ट ऑन हियरिंग में चेतावनी देते हुए कहा गया है कि 2050 तक दुनिया भर में लगभग 250 करोड़ लोग या दूसरे शब्दों में कहें तो हर 4 में से 1 व्‍यक्ति को कुछ हद तक सुनाई न देने की समस्या होगी। इनमें से कम से कम 70 करोड़ लोग ऐसे होंगे, जिन्हें सुनाई न देने और कानों की समस्याओं को लेकर अस्पतालों में जाना पड़ेगा। यहां बताते चलें कि हर साल 3 मार्च को विश्व श्रवण दिवस होता है

भारत की स्थिति

भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा भी सुनाई न देने की समस्या से ग्रस्त है। डब्ल्यूएचओ के 2018 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में श्रवण दोष प्रसार लगभग 6.3 फीसदी (630 लाख लोग सुनने की समस्या से पीड़ित) थे। भारत में वयस्कों में बहरेपन का अनुमानित प्रसार 7.6 फीसदी था और बाल्यावस्था में बहरापन का प्रसार 2 फीसदी था।

डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस एडनॉम घेब्येयियस ने कहा हमारी सुनने की क्षमता महत्वपूर्ण है। सुनाई  न देने से लोगों के संवाद करने, पढ़ने और जीविकोपार्जन की क्षमता पर यह एक हानिकारक प्रभाव डाल सकता है। यह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य और रिश्तों को बनाए रखने की उनकी क्षमता पर भी प्रभाव डाल सकता है।

उन्होंने कहा कि यह नई रिपोर्ट इस समस्या के बारे में गहराई से बताती है, साथ ही साक्ष्य-आधारित हस्तक्षेप के रूप में समाधान भी प्रस्तुत करती है। उन्होंने कहा हम सभी देशों को सार्वभौमिक (यूनिवर्सल) स्वास्थ्य कवरेज प्रणालियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।   

रिपोर्ट कानों और सुनने संबंधी देखभाल सेवाओं में निवेश करने और इसके विस्तार करने के लिए कहती हैं। यह रिपोर्ट सुनाई न देने से होने वाले नुकसान को रोकने और उनसे संबंधित समस्याओं का निदान करने के प्रयासों में तेजी से कदम बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है। कान और उनकी देखभाल में निवेश की लागत प्रभावी और बहुत कम है।   

सटीक जानकारी का अभाव और कान के रोगों और सुनने की क्षमता को नुकसान पहुंचाने वाले लक्षणों से छुटकारा पाने में अक्सर लोग विफल हो जाते हैं। स्वास्थ्य की देखभाल सुविधा प्रदान करने वालों के बीच भी, अक्सर रोकथाम के बारे में ज्ञान की कमी होती है, सुनाई  न देने और कान के रोगों की शुरुआती जांच, पहचान और प्रबंधन, आवश्यक देखभाल सुविधा प्रदान करने की उनकी क्षमता में भी कमी होती है।

अधिकांश देशों में, कान और सुनने संबंधी देखभाल को अभी भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में नहीं जोड़ा गया है, जिसके कारण कान की बीमारियों वाले लोगों और जिन्हें सुनाई नहीं देता उनके देखभाल सेवाओं तक पहुंचना चुनौतीपूर्ण होता है। इसके अलावा, कान और सुनने संबंधी देखभाल तक पहुंच को खराब तरीके से मापा और प्रलेखित किया जाता है और संबंधित संकेतकों का स्वास्थ्य सूचना प्रणाली में अभाव है।

लेकिन स्वास्थ्य प्रणाली में सबसे ज्यादा अंतर मानव संसाधनों का है। कम आय वाले देशों में, लगभग 78 फीसदी में प्रति मिलियन आबादी में एक या उससे कम कान, नाक और गले (ईएनटी) विशेषज्ञ है, 93 फीसदी में प्रति मिलियन में एक या उससे कम ऑडियोलॉजिस्ट है, 17 फीसदी में प्रति मिलियन में एक या उससे अधिक वाक् चिकित्सक हैं और 50 फीसदी में प्रति मिलियन बहरों के लिए एक या उससे अधिक शिक्षक हैं।

रिपोर्ट में उल्लिखित कार्य और प्रशिक्षण जैसी रणनीतियों के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल में कान और सुनने संबंधी देखभाल को जोड़ने के माध्यम से इस अंतर को कम किया जा सकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कान और सुनने संबंधी देखभाल करने वाले पेशेवरों के अपेक्षाकृत उच्च अनुपात वाले देशों में भी, विशेषज्ञों का असमान वितरण है। यह न केवल देखभाल के लिए लोगों की चुनौतियों का सामना करते है, बल्कि सेवाओं को प्रदान करने वाले लोगों से अन्य सेवाओं का भी दबाव रहता है।

सुनने संबंधी हानि का मुख्य कारण

बच्चों में लगभग 60 फीसदी सुनाई  न देने की समस्या को रूबेला और मेनिन्जाइटिस की रोकथाम के लिए मातृ और नवजात देखभाल में सुधार, और स्क्रीनिंग के लिए किए गए टीकाकरण जैसे उपायों के माध्यम से रोका जा सकता है। कर्णशोथ संबंधी (ओटिटिस मीडिया) के प्रारंभिक प्रबंधन - मध्य कान की सूजन संबंधी बीमारियों को रोका जा सकता है। वयस्कों में शोर नियंत्रण, सुरक्षित श्रवण और ओटोटॉक्सिक दवाओं की निगरानी के साथ-साथ कान की स्वच्छता, सुनाई देने को बनाए रखने और सुनाई देने में होने वाली हानि की आशंका को कम करने में मदद कर सकती है।

रिपोर्ट के माध्यम से कहा गया है कि सुनने की हानि और संबंधित कान के रोगों की समस्या का निराकरण करना पहला कदम है। जीवन में रणनीतिक बिंदुओं पर नैदानिक जांच सुनिश्चित करती है कि सुनाई देने और कान के रोगों के किसी भी नुकसान को जल्द से जल्द पहचाना जा सकता है।

सटीक और आसान उपयोग करने वाले औजारों सहित हाल के तकनीकी विकास, किसी भी उम्र में, नैदानिक और सीमित प्रशिक्षण और संसाधनों के साथ कान की बीमारी और सुनाई देने संबंधी हानि की पहचान कर सकते हैं। 

समय पर और उचित देखभाल से सुनाई न देने की समस्या से निपटा जा सकता है

एक बार जांच होने के बाद, उपचार शुरू करना महत्वपूर्ण है। चिकित्सा और शल्य चिकित्सा उपचार कान के अधिकांश रोगों का इलाज कर सकते हैं, सुनने संबंधित हानि को ठीक कर सकते हैं। हालांकि, जिन लोगों में सुनने संबंधी हानि में सुधार नहीं किया जा सकता है, वहां यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि प्रभावित लोग सुनने की हानि के प्रतिकूल परिणामों से बचें, इसके लिए कई प्रभावी विकल्प उपलब्ध हैं। 

सुनने की तकनीक, जैसे सुनने में सहायक और कर्णावर्त तंत्रिका (काक्लीअर) प्रत्यारोपण, चिकित्सा के साथ प्रभावी और इनकी कीमत भी कम होती है, यह बच्चों और वयस्कों को समान रूप से फायदा पहुंचा सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सांकेतिक भाषा और संवेदी प्रतिस्थापन के अन्य साधनों का उपयोग करना, जैसे भाषण पढ़ना कई बधिर लोगों के लिए महत्वपूर्ण विकल्प हैं। सुनने में सहायक तकनीक और सेवाएं जैसे कैप्शनिंग और साइन लैंग्वेज का उपयोग न सुनाई देने वाले लोगों के लिए संचार और शिक्षा तक पहुंच में सुधार कर सकती है।

डब्ल्यूएचओ में गैर-संचारी रोगों के निदेशक डॉ बेंटे मिकेलसेन ने कहा कि यह सुनिश्चित करना कि इन तकनीकी विकासों और समाधानों का लाभ सभी के लिए समान रूप से सुलभ हो, देशों को एक साथ जुड़े जन-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।  राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजनाओं के भीतर कान और सुनने की देखभाल संबंधी हस्तक्षेपों को एक साथ जोड़ा जाना चाहिए और इन्हें मजबूत स्वास्थ्य प्रणालियों के माध्यम से वितरित करना, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज के हिस्से के रूप में, उन लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए जिनको सुनाई नहीं देता, उन लोगों के लिए यह बहुत आवश्यक है।

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