भाग एक : चीनी से बचने के लिए कहीं आप भी तो नहीं खा रहे शुगर फ्री गोलियां

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया है कि एस्पार्टेम (आर्टिफिशियल या केमिकल स्वीटनर) से मनुष्यों को कैंसर का खतरा है। इसकी वजह से शुगर के विकल्पों के स्वास्थ्य पर असर को लेकर फिर से चर्चा शुरू हो गई है। आर्टिफिशियल स्वीटनर सुरक्षित हैं, इसके कोई सबूत नहीं हैं। 

By Rohini K Murthy

On: Friday 05 April 2024
 

दुनिया भर में चीनी के कृत्रिम विकल्पों का नया बाजार खड़ा हो रहा है। इन्हें हम आर्टिफिशियल या केमिकल स्वीटनर कहते हैं। यह उनके बीच खासा लोकप्रिय है जो मधुमेह जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं। या फिर मोटापा घटाने जैसी चाह के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि, इसका स्वास्थ्य पर किस तरह का असर पड़ता है। इस बिंदु पर गहरी पड़ताल करती रोहिणी कृष्णमूर्ति की रिपोर्ट... पढ़िए पहली कड़ी ...

 

सभी इलस्ट्रेशन: रितिका बोहरा / सीएसईविश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले साल 14 जुलाई को ऐलान किया कि लोकप्रिय कृत्रिम स्वीटनर एस्पार्टेम संभवतः इंसानों के लिए कैंसर पैदा करने वाला है। लेकिन 29 साल की सुमित्रा शर्मा को विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस चेतावनी से कोई खास फर्क नहीं पड़ता। वह कहती हैं, “मैं फिर भी शुगर-फ्री विकल्प चुनूंगी। ये मेरे भोजन में शुगर के विकल्प की पूर्ति करते हैं।” शर्मा दिल्ली में रहने वाली एक ग्राफिक डिजाइनर हैं और 2021 से शुगर के विकल्पों का इस्तेमाल कर रही हैं। वह आगे कहती हैं, “मैं मधुमेह की मरीज नहीं हूं, लेकिन मेरे परिवार में मधुमेह का इतिहास रहा है, इसलिए मैंने चीनी बिल्कुल छोड़ दी है। साथ ही, मैं कैलोरी के प्रति सचेत हूं।” शुगर के विकल्प वे पदार्थ होते हैं जिनका इस्तेमाल उन मिठास देने वालों की जगह किया जाता है जिनमें चीनी (सुक्रोज) या शुगर अल्कोहल होता है। इनमें बहुत कम या बिल्कुल कैलोरी नहीं होती क्योंकि चीनी के विपरीत, ये शरीर में टूटकर वे उत्पाद नहीं बनतीं जो ऊर्जा या कैलोरी प्रदान करते हैं।

इनको नॉन-शुगर स्वीटनर (एनएसएस) या नॉन-न्यूट्रिटिव स्वीटनर (एनएनएस) भी कहा जाता है। ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं: कृत्रिम (जो प्रयोगशालाओं में तैयार होते हैं, उदाहरण के लिए, एस्पार्टेम) और प्राकृतिक (जो पौधों से प्राप्त होते हैं, उदाहरण के लिए स्टीविया)। इनका इस्तेमाल टेबलटॉप स्वीटनर के रूप में और साथ ही दुनिया भर में “शुगर फ्री”, “लो-कैलोरी” या “डाइट” लेबल वाले खाद्य पदार्थों में भी किया जाता है।

मधुमेह और मोटापे के मामलों में वैश्विक वृद्धि के कारण बहुत से लोग बीमारी से बचने, वजन कम करने या कैलोरी कम करने के लिए शुगर के विकल्पों का इस्तेमाल कर रहे हैं। यह शुगर के विकल्पों की बिक्री में बढ़ोतरी में भी परिलक्षित होता है। ग्लोबल मार्केट कंसल्टेंसी “द बिजनेस रिसर्च कंपनी” की 2023 की एक रिपोर्ट में शुगर के विकल्पों की बिक्री में 29.4 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, जो 2022 में 20.52 अरब डॉलर से बढ़कर 2027 तक 29.08 अरब डॉलर हो जाएगी।

लेकिन इस बात के कम ही सबूत हैं कि शुगर के विकल्प ब्लड शुगर या वजन को कंट्रोल करने में कारगर हैं। उल्टा, अब कई सारी रिसर्च यह बताती हैं कि शुगर के विकल्प दिल की बीमारियों का कारण बन सकते हैं और कैंसर से जुड़े हो सकते हैं। इतना ही नहीं, ये टाइप-2 डायबिटीज का कारण बन सकते हैं। य तब होता है जब पैनक्रियास ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता।

अमेरिका में दवाओं की सुरक्षा और जनता के स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार संस्था यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) ने 6 कृत्रिम स्वीटनर को मंजूरी दी है और 3 प्राकृतिक स्वीटनर को “सुरक्षित” माना है। इनमें से 5 कृत्रिम और 2 प्राकृतिक स्वीटनर को भारत में भी फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) ने मंजूरी दी है।

हालांकि, कई अध्ययनों से पता चला है कि लगभग सभी शुगर विकल्पों के संभावित स्वास्थ्य खतरे हैं (कुछ ज्यादा, कुछ कम)। विश्व स्वास्थ्य संगठन का एस्पार्टेम पर 14 जुलाई का बयान इसी कड़ी में एक और कड़ी है।



एस्पार्टेम : लोकप्रियता और जोखिम

एस्पार्टेम एक आर्टिफिशियल स्वीटनर है, जिसका उपयोग चीनी की जगह किया जाता है। इसे अमेरिका के यूएसएफडीए और भारत के एफएसएसएआई ने मंजूरी मिली हुई है। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन पाए जाते हैं। इस कार्बनिक यौगिक को शुगर फ्री के नाम से भी जाना जाता है।

पुणे स्थित मार्केट रिसर्च फर्म फॉर्च्यून बिजनेस इनसाइट्स के मुताबिक, वैश्विक बिक्री में यह सभी शुगर विकल्पों में दूसरे स्थान पर है। पुणे स्थित एक अन्य कंपनी एलाइड मार्केट रिसर्च की अप्रैल 2023 की रिपोर्ट बताती है कि 2021 में एस्पार्टेम का सबसे बड़ा बाजार एशिया-प्रशांत क्षेत्र था, जिसमें भारत भी शामिल है और बिक्री का लगभग तीन-पांचवां हिस्सा इसी क्षेत्र से आता था।

1965 में इस आर्टिफिशियल स्वीटनर की खोज के बाद से ही इसके संभावित स्वास्थ्य खतरों को इंगित करने वाले अध्ययन लगातार सामने आए हैं। इसके बावजूद इसकी लोकप्रियता बढ़ी है। 2023 में “इकोटॉक्सिकोलॉजी एंड एनवायरमेंटल सेफ्टी” में प्रकाशित एक शोधपत्र बताता है कि 1990 से 2010 के बीच किसी भी अन्य शुगर विकल्प की तुलना में एस्पार्टेम पर सबसे अधिक (132) अध्ययन किए गए। इसलिए, मार्च 2019 में, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के कैंसर शोध शाखा, अंतर्राष्ट्रीय कैंसर शोध एजेंसी (आईएआरसी) ने 2020-24 में अपने मोनोग्राफ कार्यक्रम के तहत मूल्यांकन के लिए 119 एजेंटों में से एक के रूप में एस्पार्टेम को सूचीबद्ध किया, तो यह संकेत था कि एस्पार्टेम के खिलाफ सबूतों को नजरअंदाज करना बहुत मुश्किल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने डाउन टू अर्थ को ईमेल पर भेजे एक जवाब में कहा, “खाद्य योजक एस्पार्टेम को मनुष्यों और प्रयोगशाला के जानवरों में कैंसर के उभरते साक्ष्यों के आधार पर आईएआरसी मोनोग्राफ कार्यक्रम द्वारा मूल्यांकन के लिए उच्च प्राथमिकता दी गई थी।”

एस्पार्टेम से कैंसर के खतरों के आकलन के लिए डब्ल्यूएचओ के अंतर्राष्ट्रीय कैंसर शोध एजेंसी (आईएआरसी) ने 12 देशों के 25 वैज्ञानिकों का एक कार्यदल बनाया। इस दल ने शोध पत्रों, सरकारी रिपोर्ट्स और नियमन के उद्देश्य से किए गए अध्ययनों का विश्लेषण किया। उनका मकसद सबूतों की ताकत को समझना था ताकि यह तय किया जा सके कि एस्पार्टेम को डब्ल्यूएचओ के 4 कैंसर जोखिम स्तरों में से किसमें रखा जाए। लगभग 1,300 अध्ययनों और 7 दिनों के विश्लेषण के बाद, कार्यदल ने एस्पार्टेम को ग्रुप 2बी में रखने का फैसला किया। इस ग्रुप में वे चीजें आती हैं जिनमें इंसानों में कैंसर पैदा करने के सीमित सबूत या जानवरों में कैंसर पैदा करने के पर्याप्त सबूत पाए गए हैं। (देखें “मुख्य गुनहगार”)

यह वर्गीकरण मुख्य रूप से 3 महामारी संबंधी अध्ययनों पर आधारित है। पहला अध्ययन 10 यूरोपीय देशों के 4,77,206 लोगों पर किया गया था। इसमें शर्करा वाले और कृत्रिम स्वीटनर वाले पेय पदार्थों और हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा (एक प्रकार का लीवर कैंसर), इंट्राहेपेटिक पित्त नली कैंसर और पित्त मार्ग कैंसर के बीच संबंध का आकलन किया गया। शोध के दौरान 1992-1998 में प्रतिभागियों का डेटा (जीवनशैली और व्यक्तिगत इतिहास, शरीर का आकार और आकृति, रक्त के नमूने) इकट्ठा किया गया।

पिछले कुछ समय में, खासकर कृत्रिम स्वीटनर और कैंसर के संबंध को लेकर कई सवाल उठे हैं। हाल के वर्षों में इसे लेकर 3 महत्वपूर्ण अध्ययन हुए हैं।

1. यूरोपीय अध्ययन: इस अध्ययन के नतीजे 2016 में यूरोपियन जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन में छपे थे। इससे पता चला कि कृत्रिम स्वीटनर वाले पेय पदार्थ पीने से लिवर कैंसर (हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा) का खतरा बढ़ सकता है। जितना ज्यादा पीते हैं, उतना ही जोखिम बढ़ता है। लेकिन शुगर वाले पेय पदार्थों से ऐसा कोई सीधा संबंध नहीं मिला।

2. अमेरिकी अध्ययन (डायबिटीज वालों पर): यह अध्ययन 2022 में कैंसर एपिडेमियोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुआ था जिसमें 5,53,874 प्रतिभागियों ने शिरकत की थी। इनमें से 47,485 को डायबिटीज था और 5,06,389 को डायबिटीज नहीं था। अध्ययन के मुताबिक, कृत्रिम स्वीटनर वाला सोडा पीने से डायबिटीज वाले लोगों में लिवर कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, सिर्फ शुगर वाले या कृत्रिम स्वीटनर वाले पेय पदार्थ पीने से सीधे तौर पर कैंसर का संबंध नहीं मिला।

3. अमेरिकी अध्ययन (सामान्य लोगों पर): इस अध्ययन में पाया गया कि ज्यादा शुगर वाले पेय पदार्थ पीने से मोटापे के कारण कैंसर होने का खतरा बढ़ सकता है। वहीं, कृत्रिम स्वीटनर से पैंक्रियाज का कैंसर होने का खतरा बढ़ने की संभावना दिखी। इस अध्ययन में 9,34,777 ऐसे प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिन्हें कैंसर नहीं था। इसके नतीजे कैंसर एपिडेमियोलॉजी बायोमार्कस एंड प्रिवेंशन जर्नल में 2022 में प्रकाशित हुए थे। आईएआरसी ने एस्पार्टेम का वर्गीकरण करते समय सिर्फ इंसानों पर हुए अध्ययनों को नहीं देखा, बल्कि जानवरों पर किए गए शोध को भी माना। उनकी 14 जुलाई की रिपोर्ट में 4 अध्ययन शामिल किए गए, जिनमें बताया गया कि एस्पार्टेम खाने वाले नर और मादा चूहों में ट्यूमर होने का खतरा बढ़ गया था। हालांकि, इन अध्ययनों में कुछ कमियां थीं, इसलिए वैज्ञानिकों का समूह इस बात पर सहमत नहीं हो सका कि जानवरों में कैंसर का सबूत कितना मजबूत है।

कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि सबूत “सीमित” हैं, इसलिए एस्पार्टेम को ग्रुप 2B में रखा गया, जिसका मतलब है कि इससे जानवरों में कैंसर के “सीमित” सबूत मिले हैं। लेकिन कुछ अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि जानवरों पर मिले सबूत “पर्याप्त” हैं, इसलिए एस्पार्टेम को ग्रुप 2A में रखा जाना चाहिए था, जहां इंसानों में सीमित और जानवरों में पर्याप्त सबूत हों।

एस्पार्टेम और कैंसर: डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट की सीमाएं

विश्व स्वास्थ्य संगठन की 14 जुलाई की रिपोर्ट ने एस्पार्टेम को संभावित रूप से कैंसर पैदा करने वाला बताया है। लेकिन इस रिपोर्ट में कुछ कमियों को भी माना गया है। सबसे अहम बात यह है कि रिपोर्ट सिर्फ अनुमान पर आधारित है। ये तीनों अध्ययन ऑब्जर्वेशन पर आधारित हैं।

तीनों ही अध्ययन बताते हैं कि एस्पार्टेम और कैंसर में संबंध हो सकता है, लेकिन सीधे साबित नहीं करते। किसी चीज को कैंसर पैदा करने वाला कहने के लिए ठोस सबूत चाहिए। ऑब्जर्वेशन पर आधारित अध्ययनों में अक्सर पक्षपात या पूर्वाग्रह के तत्व होते हैं। अध्ययन में भाग लेने वालों में पूर्वाग्रह हो सकता है। उदाहरण के लिए, मोटापे से ग्रस्त या ज्यादा कृत्रिम स्वीटनर खाने वाले लोग शायद अध्ययन में शामिल नहीं हुए होंगे। इससे सही नतीजे निकालना मुश्किल हो जाता है। इस रिपोर्ट की एक सीमा ये भी है कि यह सिर्फ बताती है कि एस्पार्टेम और कैंसर में संबंध हो सकता है, लेकिन क्यों होता है, यह नहीं बताती। कैंसर होने के कई कारण होते हैं और एस्पार्टेम जरूरी नहीं उनमें से एक हो।

वैज्ञानिकों का कहना है कि असली कारण समझने के लिए और शोध की जरूरत है। इसके लिए सीधे तौर पर लोगों पर प्रयोग करना मुश्किल है, इसलिए अलग तरीकों से शोध करना होगा। यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया में पोषण और खाद्य विज्ञान की प्रोग्राम डायरेक्टर इवेंजलीन मैंट्जियोरिस ने डाउन टू अर्थ को बताया कि सही निष्कर्ष के लिए ऑब्जर्वेशन के बजाय एक्सपेरिमेंट पर आधारित अध्ययन की जरूरत है। वह अन्य देशों में भी इस तरह के अध्ययन की जरूरत पर जोर देती हैं। अभी तक ज्यादातर अध्ययन अमेरिका और यूरोप से हुए हैं। दुनिया के दूसरे देशों से भी डेटा इकट्ठा करना जरूरी है। हर जगह खानपान, वातावरण और आनुवांशिकी अलग होती है, इसलिए परिणाम भी अलग हो सकते हैं।

एस्पार्टेम पर 3 बड़े अध्ययन

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने करीब 1,300 अध्ययनों का विश्लेषण किया और इन 3 प्रमुख अध्ययनों के आधार पर एस्पार्टेम को “संभावित रूप से कैंसर पैदा करने वाला” बताया

यूरोपीय जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन, 2016

यह शोध बताता है कि कृत्रिम मिठास वाले सॉफ्ट ड्रिंक पीने से लिवर कैंसर (हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा) का खतरा बढ़ सकता है। लेकिन शुगर वाले पेय पदार्थों से कोई सीधा संबंध नहीं मिला

कैंसर एपिडेमियोलॉजी, 2022

यह अध्ययन डायबिटीज (मधुमेह) वाले लोगों पर किया गया। इसमें पाया गया कि जो डायबिटीज वाले लोग कृत्रिम मिठास वाले पेय पदार्थ पीते हैं, उनमें लिवर कैंसर होने का खतरा 1.13 गुना ज्यादा होता है। हालांकि, ऐसा खतरा उन लोगों में नहीं देखा गया जो डायबिटीज से ग्रस्त नहीं हैं।

कैंसर एपिडेमियोलॉजी, बायोमार्कर्स एंड प्रिवेंशन, 2022

ये अध्ययन बताता है कि धूम्रपान नहीं करने वाले लोग भी अगर रोजाना दो से ज्यादा बार कृत्रिम मिठास वाले पेय पदार्थ पीते हैं तो उनमें पैंक्रियाज के कैंसर से मौत का खतरा 1.26 गुना ज्यादा होता है।

एस्पार्टेम पर एफएसएसएआई का रुख

भारत की खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसआई) ने चीनी की जगह इस्तेमाल होने वाले स्वीटनर (जैसे एस्पार्टेम) की सुरक्षा जांचने के लिए एक समिति बनाई है। इस समिति ने सुझाव दिया है कि भारत में ही इस पर शोध हो, सिर्फ दूसरे देशों के नतीजों पर निर्भर न रहा जाए

अभी तक क्या हुआ?

जुलाई 2023 में एफएसएसएआई ने 36 सदस्यों (इनमें एक 22 सदस्यीत समिति, एक 9 सदस्यीय पैनल और 5 एक्सपर्ट शामिल हैं) का एक वैज्ञानिक दल बनाया था। इस दल ने अब तक 2 बार चर्चा की है। अगस्त 2023 में एफएसएसएआई ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें बताया गया कि वह डब्ल्यूएचओ द्वारा एस्पार्टेम पर दिए गए आकलन से सहमत है। एफएसएसएआई ने अभी एस्पार्टेम लेने की दैनिक सीमा में कोई बदलाव नहीं किया है। उन्होंने ये भी कहा कि वो सिर्फ वजन कम करने या डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए स्वीटनर इस्तेमाल करने की सलाह नहीं देते। लेकिन एफएसएसएआई ने भारत में ही स्वीटनर के असर, अन्य बीमारियों से संबंध आदि पर और शोध की जरूरत बताई है

आगे क्या?

एफएसएसएआई ने स्वीटनर और बीमारियों के संबंध पर अभी अंतिम रिपोर्ट जारी नहीं की है। आने वाले महीनों में और रिपोर्ट आने की उम्मीद है

एस्पार्टेम पर अमेरिका का रुख

यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (यूएसएफडीए) का मानना है कि अगर एस्पार्टेम का स्वीकृत मात्रा में सेवन हो तो ये सुरक्षित है

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एस्पार्टेम को संभावित रूप से कैंसर पैदा करने वाला बताया है, लेकिन यूएसएपडीए इससे असहमत है। उसका कहना है कि अगर अनुमति दी गई मात्रा में इस्तेमाल किया जाए, तो एस्पार्टेम सुरक्षित है। यूएसएफडीए का कहना है कि एस्पार्टेम खाने के लिए इस्तेमाल होने वाले सभी चीजों में सबसे ज्यादा अध्ययन किया गया पदार्थ है। यूएसएफडीए ने 14 जुलाई 2023 को एक प्रेस रिलीज में ये बातें कही थीं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के 14 जुलाई के ऐलान के बाद इंटरनेशनल स्वीटनर एसोसिएशन ने कहा कि कम कैलोरी वाले स्वीटनर शुगर और कैलोरी कम करने में मददगार होते हैं, इसलिए इन्हें खतरनाक नहीं माना जाना चाहिए

स्रोत: यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन, खाद्य  योजकों  की  संयुक्त  एफएओ/डब्ल्यूएचओ  विशेषज्ञ  समिति (जेईसीएफए),  शोध पत्र, एफएसएसएआई  का  नोट  गैर-चीनी  मिठास (एनएसएस) और  एस्पार्टेम , अगस्त 2023

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