भारत में कैसे लगाई जा सकती है गैरजरूरी सिजेरियन डिलीवरी पर लगाम

भारत में जहां 2015-16 के दौरान 17.2 फीसदी नवजातों का जन्म ऑपरेशन के जरिए हुआ था वहीं 2019-21 में यह आंकड़ा 4.3 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 21.5 प्रतिशत पर पहुंच गया

By Lalit Maurya

On: Sunday 04 February 2024
 
आपरेशन के जरिए जन्में नवजात को थामे चिकित्सा कर्मी; फोटो: आईस्टॉक

एक नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी दिशानिर्देशों को अपनाकर गैर जरूरी सिजेरियन डिलीवरी में कमी की जा सकती है। गौरतलब है कि देश में ऑपरेशन की मदद से होने वाले बच्चों के जन्म यानी सिजेरियन डिलीवरी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) के मुताबिक देश में सिजेरियन के जरिए बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं की तादाद में वृद्धि देखी गई है। आंकड़ों के मुताबिक जहां एनएफएचएस-4 में 2015-16 के दौरान ऑपरेशन के जरिए बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं का आंकड़ा 17.2 फीसदी था जो 2019 से 21 के बीच 4.3 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 21.5 फीसदी पर पहुंच गया।

वहीं शहरी क्षेत्रों में तो यह बढ़कर 32.3 फीसदी पर पहुंच गया है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 17.6 फीसदी दर्ज किया गया है। देखा जाए तो देश में सिजेरियन डिलीवरी के बढ़ते मामले एक बड़ी समस्या को भी उजागर करते हैं।

हालांकि जब स्वास्थ्य कारणों से सी-सेक्शन डिलीवरी की जाती है तो यह जीवनरक्षक हो सकती है। यह बेहतर स्वास्थ्य देखभाल का एक जरूरी हिस्सा है, लेकिन साथ ही इसमें कई तरह के जोखिम भी शामिल होते हैं।

जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित इस नए अध्ययन के मुताबिक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी दिशानिर्देशों की मदद से न केवल प्रसव के दौरान महिलाओं की बेहतर देखभाल की जा सकती है। साथ ही उनकों नुकसान पहुंचाए बिना अनावश्यक तौर पर की जा रही सिजेरियन डिलीवरी को भी कम किया जा सकता है।

गौरतलब है कि अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने नियमित देखभाल की तुलना में लेबर केयर गाइडलाइन से जुड़ी रणनीति के कार्यान्वयन का मूल्यांकन करने के लिए भारत के चार अस्पतालों में पायलट परीक्षण किया है।

दुनिया में ऑपरेशन से हो रहा हर पांचवे बच्चे का जन्म

बता दें कि इस अध्ययन में कर्नाटक के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के शोधकर्ताओं के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय संस्थानों के कई अन्य शोधकर्ता भी शामिल थे।

इस बारे में ऑस्ट्रेलिया के बर्नेट इंस्टीट्यूट और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर जोशुआ वोगेल का कहना है कि, "लेबर केयर गाइड (एलसीजी) को नियमित स्वास्थ्य ​​देखभाल से जोड़ा जा सकता है। इतना ही नहीं इसे व्यस्त और संसाधनों के आभाव में भी नियमित देखभाल में शामिल किया जा सकता है।"

प्रोफेसर जोशुआ के अनुसार वैश्विक स्तर पर प्रसव के दौरान महिलाओं के लिए चिकित्सा और स्वास्थ्य देखभाल के लिए डब्ल्यूएचओ ने एलसीजी को जारी किया था। बता दें कि इन दिशानिर्देशों को 2020 में तैयार किया गया था। उनके मुताबिक हालांकि इसे उस समय के सर्वोत्तम साक्ष्यों के आधार पर बनाया गया था, लेकिन हम अब तक माओं और उनके शिशुओं पर इसके प्रभाव को लेकर पूरी तरह निश्चित नहीं थे। 

उनका आगे कहना है कि हाल के वर्षों में डॉक्टर प्रसव के दौरान जन्म में मदद के लिए आमतौर पर दवाओं के साथ-साथ सर्जरी जैसे विकल्पों पर जोर दे रहे हैं। यह प्रवत्ति कई देशों में बेहद आम है। उनके मुताबिक सही समय पर सर्जरी स्वास्थ्य परिणामों में सुधार कर सकती है, लेकिन उन्हें अक्सर जरूरत न होने पर भी उपयोग किया जाता है।

ऐसे में उनका मानना है कि यह लेबर केयर दिशानिर्देश गैरजरूरी सिजेरियन डिलीवरी को कम करने में मदद कर सकते हैं, जो माओं और उनके बच्चों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो दुनिया में हर पांचवे बच्चे का जन्म ऑपरेशन यानी सिजेरियन के जरिए होता है। अनुमान है कि आने वाले कुछ दशकों में यह आंकड़ा बढ़कर एक-तिहाई पर पहुंच जाएगा। देखा जाए तो यह चलन भारत में भी बेहद आम होता जा रहा है। इसकी पुष्टि सरकारी आंकड़ें भी करते हैं।

भारत में भी बढ़ रहा है सिजेरियन डिलीवरी का चलन

इस बारे में राज्यों के जो आंकड़े जारी किए गए हैं उनसे पता चलता है कि अधिकांश राज्यों में सिजेरियन डिलीवरी की संख्या बढ़ी है और ज्यादातर लोग अब इसके लिए सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की बजाय निजी हेल्थ क्लीनिकों को पसंद कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और असम जैसे राज्यों के आंकड़े इसी प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।

कॉउन्सिल फॉर सोशल डेवलपमेंट (सीएसडी) द्वारा तेलंगाना पर जारी एक कम्पेंडियम से पता चला है कि राज्य में 2019-20 के दौरान करीब 60.7 फीसदी नवजातों के जन्म सी-सेक्शन की मदद से हुए थे। एनएफएचएस -5 के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह आंकड़ा 58.4 फीसदी और शहरों में 64.3 फीसदी था। 

इसी तरह गोवा में आपरेशन से जन्म लेने वाले बच्चों की जो तादाद पिछली बार एनएफएचएस-4 में 31.4 फीसदी थी वो एनएफएचएस-5 में बढ़कर 39.5 फीसदी पर पहुंच गई थी।

वहीं आंध्र प्रदेश में पिछली बार के सर्वेक्षण में सिजेरियन का जो आंकड़ा 40.1 फीसदी था, वो इस बार 42.4 फीसदी पर पहुंच गया। अरुणाचल प्रदेश में भी यह 8.9 फीसदी से बढ़कर 14.8 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 9.9 फीसदी से बढ़कर 15.2 फीसदी और असम में 13.4 फीसदी से बढ़कर 18.1 फीसदी हो गया है।

केरल में भी सिजेरियन डिलीवरी का आंकड़ा 35.8 फीसदी से बढ़कर 38.9 फीसदी पर पहुंच गया है। वहां निजी हेल्थ क्लिनिकों और सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों, दोनों जगहों पर सिजेरियन की तादाद बढ़ी है। हालांकि अन्य राज्यों के विपरीत नागालैंड और मिजोरम में इसके विपरीत प्रवत्ति देखने को मिली है, जहां सिजेरियन डिलीवरी की तादाद घटी है। गौरतलब है कि नागालैंड में यह आंकड़ा 5.8 फीसदी से घटकर 5.2 फीसदी जबकि मिजोरम में 12.7 फीसदी से घटकर 10.8 फीसदी पर पहुंच गया है।

Subscribe to our daily hindi newsletter