अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस विशेष: आर्थिक भागीदारी, नेतृत्व में भागीदारी और स्वयं सहायता समूह

स्वयं सहायता समूह की भूमिका को विकास की मुख्य धारा में शामिल करने का समय है

On: Friday 08 March 2024
 
स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएं निरंतर सशक्त हो रही हैं। फाइल फोटो: रुक्सन बोस

हर्ष मणि सिंह

भारत 6.5 लाख गांव का घर है। गांव का विकास और महिलाओं की भागीदारी टिकाऊ और तेजी से बढ़ती आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की प्राथमिक शर्त है। वित्तीय समावेशन के बाद महिलाएं विकास के पायदान पर ऊंची तरजीह पर पहुंच रहीं हैं। दरअसल 60 के दशक में हक्सूरियन अर्थव्यवस्था और 80 के दशक में शिवरामन समिति की सिफारिशों ने गांव और ग्रामीण महिलाओं की छवि बदल कर रख दी है। स्वयं सहायता समूह और वित्तीय समावेशन ने महिलाओं के लिए गेम चेंजर की भूमिका के रूप में काम किया है। आज भारत में लगभग 1.2 करोड स्वयं सहायता समूह हैं। जिनमें से 88 प्रतिशत सभी महिला स्वयं सहायता समूह हैं।

स्वयं सहायता समूह के प्रभाव का महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सशक्तिकरण पर सकारात्मक और महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। स्वयं सहायता समूह एक समूह के रूप में या समान कमतर आय के रुप में दर्ज स्थिति वाले स्वैच्छिक संगठन के रूप में शुरू होते हैं। एक समूह में 15 से 20 सदस्य होते हैं। यह सदस्य अपनी बचत एकत्रित करते हैं आवश्यकता अनुसार ऋण प्राप्त करते हैं। आरम्भिक स्तर पर समूह में वित्तीय लेनदेन को प्रोत्साहित किया जाता है और बाद में इन्हें अतिरिक्त वित्तीय सहायता के लिए बैंक से संबद्ध किया जाता है।

2006 में बांग्लादेश के डॉ मोहम्मद यूनुस को माइक्रोफाइनेंस में रचनात्मक कार्य हेतु शांति के लिए नोबेल पुरस्कार मिला और उनका माइक्रो फाइनेंस मॉडल न केवल बांग्लादेश में बल्कि एशिया में गरीबी उन्मूलन के एक उपकरण के रूप में बहुत लोकप्रिय हुआ। स्वयं सहायता समूह तरीकों से महिला सशक्तिकरण के लिए अवसर प्रदान करते हैं जैसे कि धन प्रबंधन, वित्तीय निर्णय लेने, बेहतर सामाजिक नेटवर्क, संपत्ति स्वामित्व और आजीविका विविधीकरण से परिचित होना।

सार्वभौमिक दृष्टिकोण के साथ राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन स्वयं सहायता समूह के लिए एक और रणनीतिक बदलाव है। प्रतिभागियों और पदाधिकारी दोनों ने महिला सशक्तिकरण, आत्म सम्मान में वृद्धि, व्यक्तित्व विकास, सामाजिक बुराइयों में कमी, और ग्रामीण संस्थानों में उच्च भागीदारी से संबंधित क्षेत्र में प्रभाव को महसूस किया गया है। कोविड स्वास्थ्य संकट के दौरान स्वयं सहायता समूह ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका कई स्तरों पर रेखांकित की।

स्वयं सहायता समूह ने मास्क, सैनिटाइजर और सुरक्षात्मक गियर के उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाई। झारखंड की पत्रकार दीदी के रूप में महामारी के बारे में जागरूकता पैदा की, केरल में सुपर मार्केट के रूप में आवश्यक सामान वितरित किया, प्रेरणा कैंटीन के रूप में सामुदायिक रसोई चलाई।

उत्तर प्रदेश में, पशु स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं के लिए पशु सखी के रूप में कृषि आजीविका का समर्थन करना, झारखंड में सब्जियों के लिए आजीविका ऑनलाइन बिक्री और वितरण तंत्र, बैंक सखी के रूप में वित्तीय सेवाओं की डिलीवरी, कोविड राहत नकद अंतरण लाभ उठाने के लिए बैंक की भीड़ का प्रबंध करना जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अपना काम सुनियोजित तरीके से किया। एक अनुमान के मुताबिक 23 जनवरी(2022-23) तक डी ए वाई एन आर एल एम के तहत स्वयं सहायता समूह द्वारा 16.9 करोड़ से अधिक मास्क का उत्पादन किया गया।

स्वयं सहायता समूह की भूमिका को विकास की मुख्य धारा में शामिल करने का समय है। पिछले 10 वर्षों में महिलाओं की सशक्तिकरण को अधिक तरजीह दी गई। खुले में शौच से मुक्ति, उज्ज्वला योजना, अपना आवास, मनरेगा और राशन की कार्ड धारक महिलाओं की अपनी पहचान है । अधिक सशक्त महिलाएं का नया विशेषण "लखपति दीदी " है। लखपति दीदियां भारत में 63 मिलियन सूक्ष्म उद्योगों का एक हिस्सा हैं। जहां एक अनौपचारिक महिला उद्यमी सक्रिय श्रम बाल भागीदारी के माध्यम से आर्थिक सशक्तिकरण हासिल करती हैं।

भारत में अनौपचारिक उद्यमिता एक उद्यमी के प्रचलित पश्चिमी विचारों से मिल नहीं खाती। विकासशील देशों में यह एक अलग अनुभव का विषय है। यह आवश्यकता आधारित उद्यमिता का वर्णन करता है जो कम शैक्षिक स्तर, काम का कोई कार्य अनुभव नहीं, और औपचारिक वित्त और व्यापार नेटवर्क तक पहुंच की कमी के बावजूद उद्यमिता के विकास पर आधारित है।

इन बाधाओं के बावजूद अनौपचारिक उद्यमिता भारत में ग्रामीण महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लखपति दीदी बनने के लिए, पूर्ण कुशल वित्तीय साक्षरता ,वित्तीय ज्ञान निर्णय लेने की क्षमता अगर विकसित कर दी जाए तो यह महिलाएं देश की सामाजिक और आर्थिक संरचना से होती हुई राजनीतिक नेतृत्व के लिए भी बली साबित होंगी।

आर्थिक समीक्षा 23-24 के अनुसार पिछले 10 वर्षों में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं की संख्या 2.37 करोड़ से बढ़कर 10 करोड़ हो गई है। इस दौरान बैंक लिंकेज जो इस 22. 9 हजार करोड रुपए का था, बढ़कर 8.28 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। आज अकेले उत्तर प्रदेश में6.68 लाख लखपति दीदी हैं।

स्वयं सहायता समूह समग्र ग्रामीण विकास को अंतिम छोर तक अपनी पहुंच बनाने, समुदायों के विश्वास और एकजुट को आकर्षित करने की क्षमता के कारण लोकप्रिय है। स्वयं सहायता समूह और उनसे जुड़ी महिलाओं को स्थानीय गतिशीलता का ज्ञान है, सदस्यों की गतिविधियों के एकत्रीकरण के माध्यम से तेजी से उत्पादन और सेवा बनाने की क्षमता प्रदान करने के लिए वह अनुकूल स्थिति में हैं।

कौशल और उद्यमिता, वित्तीय समावेशन और सस्ती वित्तीय सेवाएं खेती और किसान समूह को बढ़ावा देना, पोषण स्वास्थ्य और WASH (वाटर सैनिटाइजेशन हाईजीन) सामाजिक समावेशन महिला सशक्तिकरण के प्रमुख कारक हैं। 60 के दशक में हरित क्रांति से उपजी आत्मनिर्भरता ने किस तरह क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी और गठबंधन सरकार को हाशिए से केंद्र में ला दिया।

छोटे क्षेत्रीय दल का प्रतिनिधित्व भारतीय लोकतंत्र के ढांचे में आ गया। इस बार सरकार महिलाओं के हाथ में कमान देना चाहती है। निश्चित रूप से सशक्त महिलाएं जिनके पास अपनी आर्थिक स्वतंत्रता है उन्हें राजनीतिक मामलों में दखल देने से कोई रोक नहीं सकता।

लेखक आईएसडीसी इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं  

 

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