ढह जाने के करीब है श्रीलंका में स्वास्थ्य व्यवस्था, गर्भवती महिलाओं के लिए स्थिति कहीं ज्यादा बदतर
श्रीलंका में इस समय करीब 2.2 लाख महिलाएं गर्भवती हैं, जिनमें से करीब 1.5 लाख महिलाएं ऐसी हैं जो अगले छह महीनों में अपने बच्चों को जन्म दे सकती हैं
On: Thursday 18 August 2022


गहराते आर्थिक संकट के बीच श्रीलंका में स्वास्थ्य व्यवस्था ढह जाने के करीब आ चुकी है। वहीं यदि गर्भवती महिलाओं की बात करें तो उनके लिए स्थिति बद से बदतर हो चली है। दवाइयों का अभाव है। मरीजों को बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। वहीं उपकरणों की भी किल्लत है।
अक्टूबर 2021 में जब रुचिका को मालूम हुआ कि वो दूसरी बार गर्भवती हैं, तो उन्होंने कभी यह कल्पना भी नहीं थी कि उन्हें अपने जीवन के इतने बुरे दौर से गुजरना होगा। उन्हें इस बात का अहसास भी नहीं था कि अपने बच्चे को जन्म देने से कुछ घंटे पहले का समय उन्हें भीड़ भरी कतार में गुजरना होगा। यहां तक की स्थिति इतनी बदतर हो जाएगी कि उन्हें हॉस्पिटल पहुंचने के लिए भी मिन्नतें करनी होंगी।
रुचिका गुजरा समय याद करते हुए बताती हैं कि, “भीड़ में ज्यादातर लोगों का रवैया सहानुभूतिपूर्ण था। अधिकारियों ने मेरे हालात जानने और जरुरी चिकित्सा दस्तावेजों की जांच-पड़ताल के बाद मुझे ईंधन खरीदने की अनुमति दे दी जिसकी मुझे अस्पताल पहुंचने के लिए सख्त जरुरत थी, लेकिन फिर भी ईंधन लेने के लिए खड़ी लोगों की भीड़ में कुछ ऐसे लोग थे जो हम पर चिल्ला रहे थे।“
अगले दिन जब वो अपने बच्चे को जन्म देने के लिये बिल्कुल उपयुक्त समय पर अस्पताल पहुंची तो उन्हें पता चला कि ईंधन ही एकमात्र चिंता का विषय नहीं है।
वो याद करते हुए बताती हैं कि उन्हें करीब दो महीन पहले इस बात के लिए कहा गया था कि महिलाओं को अपने बच्चों को सुरक्षित जन्म देने के लिए सरकारी अस्पताल आते समय दस्ताने, ब्लेड, और अन्य बुनियादी सामान लाना होगा, क्योंकि अस्तपाल के पास यह जरुरी सामान खत्म हो गया था और उसके आने की कोई सम्भावना और गारंटी भी नहीं थी।
उन्होंने बताया कि वो उस समय बहुत घबरा गई थी। उन्होंने तुरंत अपने डॉक्टर को फोन किया और चिकित्सा सामान की उपलब्धता के बारे में जानना चाहा। साथ ही उन्होंने इस बात का भी जायजा लिया कि उन्हें खुद क्या-क्या तैयारियां करनी हैं।
रुचिका को डॉक्टर से यह जानकर तसल्ली हुई कि फिलहाल अस्पताल के पास जरुरी चिकित्सा सामान उपलब्ध है। लेकिन डॉक्टर इस बात का आश्वासन नहीं दे सके कि दो महीने बाद क्या स्थिति होगी, जब उनके बच्चे का जन्म अपेक्षित था। हालात के और ज्यादा बदतर होने की चिंता में उन्होंने डॉक्टर से दो बार पूछा कि क्या मेरे बच्चे का जन्म सुरक्षित होगा, जबकि उसमें दो महीनों का समय बाकी था। डॉक्टर ने बच्चे के स्वास्थ्य पर जोखिम को देखते हुए, कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। हालांकि उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर वो समय पर हॉस्पिटल पहुंच जाएंगी तो वो और उनका बच्चा स्वस्थ रहेंगें।
इसके अलावा रुचिका को इस बात की भी चिंता सताने लगी कि क्या हॉस्पिटल स्टाफ के लिए जरुरी ईंधन उपलब्ध होगा क्योंकि उन्होंने इस तरह की कई खबरे सुनी थी कि डॉक्टर और नर्सें, मौजूदा ईंधन संकट के चलते हॉस्पिटल नहीं पहुंच पा रहे हैं।
एक रुचिका ही नहीं अनगिनत महिलाओं की है यही व्यथा
बच्चे के जन्म के बाद भी उनके परिवार की जद्दोजहद खत्म नहीं हुई। जब उनकी साढ़े चार साल की दूसरी बेटी बीमार पड़ी तो उन्हें उसके लिए नेबुलाइजर खरीदने के लिए छह केमिस्ट के चक्कर लगाने पड़े। बच्चे का जन्म होने के बाद रुचिका के ऑपरेशन केटांके कटवाने की तारीख भी कब की गुजर चुकी है, वो अब भी अपने डॉक्टर से मिलने वाली इस जानकारी की प्रतीक्षा कर रही हैं कि वो अपने टांके कटवाने कब आएं।
देखा जाए तो श्रीलंका में यह सिर्फ रुचिका की व्यथा ही नहीं है। श्रीलंका में न जाने कितनी गर्भवती महिलाएं आज खुद को एक ऐसी दुनिया में खड़ा पाती हैं, जिसकी वो कुछ महीने पहले कल्पना भी नहीं कर सकती थी। देश में मौजूदा संकट यौन व प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को बड़े पैमाने पर शिथिल कर रहा है।
इनमें जच्चा-बच्चा से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर गर्भ निरोधकों तक उनकी घटती पहुंच तक शामिल हैं। इतना ही नहीं महिलाओं के प्रति होती हिंसा की रोकथाम और उसपर कार्रवाई करने वाली सेवाएं भी कमजोर हुई हैं।
श्रीलंका स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, देश में इस समय लगभग 2.15 लाख महिलाएं गर्भवती हैं, जिनमें से 11 हजार किशोर आयु की बच्चियां हैं। वहीं करीब 1.5 लाख गर्भवती महिलाएं ऐसी हैं जो अगले छह महीनों में अपने बच्चों को जन्म दे सकती हैं।
ऐसे में मौजूदा संकट के बीच देश में उन गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की स्थिति क्या होगी उसका अंदाजा आप स्वयं ही लगा सकते हैं। बुनियादी ढांचे और परिवहन संबंधी चुनौतियों के बीच महिलाओं के लिये अपने बच्चों को जन्म देना एक बड़ी चुनौती है। कुशल चिकित्सा देखभाल से दूरी उनके लिए जीवन-मृत्यु का प्रश्न है।