सूखे का दंश : आंध्र प्रदेश के अनंतपुरमु में आधी रह गई है खेती की जमीन

कई दशकों से बारिश की कमी, एक ही प्रकार की खेती और किसानों पर बढ़ते कर्ज के बोझ के कारण यह जिला पिछड़ रहा है

By G Ram Mohan

On: Wednesday 27 February 2019
 
Credit: Aparna Pallavi

अनंतपुरमु की तरह ही कुछ अन्‍य जिले भी यह दर्शा सकते हैं कि किस प्रकार सूखा किसानों की कमर जोड़ सकता है। आंध्र प्रदेश का रायलसेना क्षेत्र कृषि विशेषज्ञों के समक्ष चुनौती बना हुआ है। यहां तक कि चारों दक्षिणी जिलों में से अनंतपुरमु जिला, जिले पहले अनंतपुर के नाम से जाना जाता था, ऐतिहासिक रूप से सबसे ज्‍यादा खराब हालत में रहा है।

बारिश संबंधी आंकड़े दर्शाते हैं कि यह जिला 100 वर्ष से भी अधिक समय से सूखे से प्रभावित रहा है। पिछले कुछ समय में स्थिति और खराब हुई है। मसलन यहां 272.8 मिली‍मीटर बारिश दर्ज की गई है जो सामान्‍य वर्षा की लगभग आधी है और एक दशक में सबसे कम है।

अनंतपुरमु के टैंकों में पानी के कम स्‍तर से यह समस्‍या अधिक स्‍पष्‍ट हो जाती है। जनवरी 2019 में जिले के 163 टैंकों में केवल 1.75 हजार मिलियन क्‍यूबिक फुट (टीएमसी फुट) पानी था जो 1,263 टैंकों में 26.3 टीएमसी फुट पानी की क्षमता से काफी कम है। जिले की मध्‍यम सिंचाई परियोजनाओं में से भैरावानी टिप्‍पा परियोजना में केवल 0.038 टीएमसी फुट (क्षमता 2 टीएमसी फुट), योगी वेमना जलाशय में 0.432 टीएमसी फुट (क्षमता 0.9) पानी है जबकि अपर पेन्‍नार परियोजना मृतप्राय है।

जिला प्रशासन इस सीमित पानी का पीने के लिए तथा 1.05 लाख एकड़ में फैली फसल की सिंचाई के लिए बंटवारा करने की समस्‍या में उलझा हुआ है। सामाजिक कार्यकर्ता एसएम बाशा बताते हैं कि यहां के केवल एक तिहाई गांवों में पीने का पानी उपलब्‍ध है।

कृषि क्षेत्र के कम होने से यह समस्‍या स्‍वत: स्‍पष्‍ट हो जाती है। वर्ष 2010 में 10 लाख हेक्‍टेयर से अधिक भूमि पर खेती करने का अनुमान था। वर्ष 2017 के आते-आते इसमें से आधे से ज्‍यादा भूमि कृषि योग्‍य नहीं रही थी।

गैर-लाभकारी संगठन एसिओन फ्रेटर्ना इकोलॉजी सेंटर के वाईवी मल्‍ला कहते हैं, “अनंतपुरमु की लाल मिट्टी लंबे समय तक पानी को रोक कर नहीं रख सकती। पिछले दो दशकों में केवल तीन मॉनसून सामान्‍य रहे हैं तथा तालाब दस साल में एक बार भर पाते हैं।”

सिर्फ मूंगफली की खेती करने के तरीके से भूमि की उर्वरता में कोई सुधार नहीं हुआ है जबकि पहले एक से अधिक फसलें उगाने से इसमें मदद मिलती थी। रेड्डी बताते हैं, “कृत्रिम उर्वरक तेजी से मिट्टी से पानी का वाष्‍पीकरण करते हैं।”

चालीस वर्ष पहले, जिले में तीन वर्ष में एक बार सूखा पड़ता था। लेकिन वर्ष 2000 से सूखा पड़ने की दर की बढ़ोतरी हुई है। रेड्डी ने यह भी बताया कि खेती के मौसम से इतर अनियमित वर्षा (जैसे, 1.6 मि.मी. की सामान्‍य वर्षा की तुलना में पिछली जनवरी में 10.4 मि.मी. वर्षा) से किसानों को थोड़ा फायदा हुआ है।

इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि प्रशासन ने अनंतपुरमु के सभी 63 मंडलों को सूखा प्रभावित घोषित कर दिया है। जिले से संयुक्‍त कृषि निदेशक एसके हबीब बाशा कहते हैं, “आखिरी बार जून 2018 में मॉनसून सामान्‍य रहा था। जुलाई और अगस्‍त में मॉनसून में 70 और 66 प्रतिशत की कमी आई जिसमें 72 दिन बिना बारिश के गुजरे थे। इससे मूंगफली की 5.4 लाख एकड़ की फसल प्रभावित हुई थी।”

अक्‍टूबर में थोड़ी बारिश होने के बाद सीधा जनवरी में बारिश हुई जिस कारण चने की पूरी फसल बर्बाद हो गई।

जिले की 3.6 लाख आबादी (2011 की जनगणना के अनुसार) पर फसलों के इस प्रकार बर्बाद होने का व्‍यापक वित्‍तीय प्रभाव पड़ता है। अखिल भारतीय किसान सभा के जिला सचिव आर. चन्‍द्र शेखर रेड्डी का कहना है, “किसान अपने नुकसान की भरपाई की उम्‍मीद में दोबारा कर्ज ले लेते हैं।” ये दोबारा लिए गए कर्ज 2017-18 में तीन गुना से अधिक बढ़कर 4,576 करोड़ हो गए। इस प्रकार दोबारा कर्ज लेने की कीमत चुकानी पड़ती है। कृषि ऋण पर 7  प्रतिशत सालाना ब्‍याज के अलावा शुल्‍क और कर भी देने पड़ते हैं।

हालांकि राज्‍य सरकार ने पिछले दशक में किसानों को 2,885 करोड़ रुपए दिए हैं लेकिन मूंगफली पर किए गए 30,290 करोड़ रुपए के अनुमानित निवेश की तुलना में यह बहुत कम है। इसके अलावा उपज बेचने से उन्‍हें 60,000 करोड़ रुपए प्राप्‍त हुए थे जिसके बाद अनुमानित नुकसान 1 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया था। किसान सभा का दावा है कि पिछले पांच वर्षों में हर महीने पांच से छ: किसानों से आत्‍महत्‍या की है।

कार्यकर्ता बाशा कहते हैं, “सरकार इन आत्‍महत्‍या की घटनाओं से इनकार करती है।”

कृषि संकट में दस गुना बढ़ोतरी हुई है। रबी 2017 में 10,000 से कुछ अधिक किसानों की तुलना में रबी 2018 में एक लाख से अधिक किसान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) में शामिल हुए हैं जो भारत में केंद्र द्वारा वित्‍तपोषित फसल बीमा योजना है।

न तो यह बीमा और न ही व्‍यापक वित्‍तीय क्षेत्र इस मामले में बहुत मददगार साबित हुआ है। रपटाडु मंडल के हंपापुरम गांव के किसान टी. रामानजनुयलु ने डीटीई से बातचीत में बताया कि मौसम आ‍धारित फसल बीमा योजना (डब्‍ल्‍यूबीसीआईएस) के लिए सूचीबद्ध 60 प्रतिशत से अधिक लोगों को कुछ नहीं मिलेगा, जबकि बाकी बचे लोगों को भी पैसा मिलना बाकी है।

यह योजना वर्षा की मात्रा में आधार पर कार्य करती है, फिर चाहे वह वर्षा सब जगह समान रूप से हो या न हो। पीएमएफबीवाई स्‍थानीय अंतर को तो ध्‍यान में रखती है लेकिन अनंतपुरमु की मुख्‍य फसल मूंगफली पर यह लागू नहीं है। हालांकि इसी राज्‍य के श्रीकाकुलम में ऐसा नहीं है जबकि यहां कुल क्षेत्रफल के केवल 10 प्रतिशत हिस्‍से पर ही मूंगफली की खेती होती है।

बैंक देरी से बीमा का भुगतान करने पर कोई ब्‍याज नहीं देते लेकिन चूक अगर किसानों से हो तो वे उन्‍हें नहीं छोड़ते। इसी गांव के एक अन्‍य किसान वाई. संजीवा रेड्डी बताते हैं, “सोने के बदले लिए गए कर्ज के मामले में भी यदि एक दिन की देरी हो जाए तो ब्‍याज दोगुना हो जाता है। वहीं बैंक 35,000 रुपए का सोना लेकर केवल 15,000 रुपए का कर्ज देते हैं।”

गोलापल्‍ली के किसान डी. दसारा रेड्डी कहते हैं, “राज्‍य सरकार भी कोई खास मदद नहीं करती। वर्ष 2014 में कृषि ऋण माफ करने के वादे के बावजूद एन. चन्‍द्रबाबू नायडू सरकार ने इस बारे बहुत कोई खास प्रगति नहीं की है। हमारे 1.5 लाख रुपए के कर्ज में से केवल 8,000 रुपए माफ किए गए हैं।” वर्ष 2014-15 में लगातार 15 दिन बारिश होने के कारण उनकी मूंगफली की फसल बर्बाद हो गई थी। अधिकारियों ने उन्‍हें 30,000 रुपए देने का वादा किया था लेकिन उन्‍हें कुछ भी नहीं मिला।

भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के जिला सचिव वी. रामभूपल कहते हैं, “जिले में विभिन्‍न योनजाओं के लाभार्थियों के लगभग 1,644 करोड़ रुपए बकाया हैं।”

यहां अन्‍य अवसरों की भी कमी है। यहां तक कि महात्‍मा गांधी राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना का भी पूरा इस्‍तेमाल नहीं किया गया है। आंध्र प्रदेश कृषि श्रमिक संघ के ओ. नलप्‍पा बताते हैं, “2,98,689 लोगों को रोजगार मिला है जबकि 7,98,289 लोगों के पास रोजगार कार्ड है। केवल 64,606 लोगों को पूरे 100 दिनों का रोजगार मिल पाया है। भुगतान में डेढ़ साल तक की देरी होती है।” 

बाशा जैसे कार्यकर्ता राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच सांठगांठ का आरोप लगाते हैं। वह कहते हैं, “ठेकेदारों और राजनेताओं में मिलीभगत है, जिस कारण सूखे की विभीषिका को कम करने के लिए दिया जाने वाला पैसा कम पड़ जाता है।”

रामभूपल बताते हैं कि पिछली कांग्रेस सरकार ने अपने आखिरी दिनों में अयप्‍पन समिति गठित की थी। उन्‍होंने आरोप लगाया कि नायडू की तेलुगु देशम पार्टी ने इसका नाम बदलकर एनटीआर आशायम करने के अलावा ज्‍यादा कुछ नहीं किया।

उनके अनुसार, इस जिले में केवल 7 प्रतिशत भूमि पर सिंचाई होती है, इसलिए इसे स्‍थायी तौर पर सूखा प्रभावित जिला घोषित कर देना चाहिए (जहां भी सिंचित क्षेत्र 10 प्रतिशत से कम है) जिसकी सिफारिश स्‍वामीनाथन समिति ने भी की थी।

इसके अलावा, जैसा कि मल्‍ला रेड्डी बताते हैं, अनंतपुरमु एकमात्र ऐसा जिला है जहां के जंगलों में पेड़ नहीं बचे हैं। पहले वाली स्थिति हासिल करने के लिए दो- तीन वर्ष तक केवल जैविक तरीके अपनाने होंगे।

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