2030 तक वैश्विक सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन जाएगा जलवायु परिवर्तन: सैन्य विशेषज्ञ

सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 2040 तक जबरिया विस्थापन और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होने की संभावना है

By Kiran Pandey

On: Monday 09 March 2020
 
Photo: Vikas Choudhary

अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य पेशेवरों के एक समूह का मानना है कि पानी पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव के कारण अगले दशक में वैश्विक सुरक्षा के लिए जोखिम बढ़ जाएगा।

जलवायु और सुरक्षा पर अंतर्राष्ट्रीय सैन्य परिषद (इंटरनेशनल मिलिट्री काउंसिल ऑन क्लाइमेट एंड सिक्योरिटी) ने दिसंबर 2019 में एक सर्वे किया। यह सर्वे 56 सुरक्षा और सैन्य विशेषज्ञों के साथ ही दुनिया भर के चिकित्सकों के बीच जलवायु सुरक्षा जोखिमों की धारणा का आकलन करने के लिए किया गया था।

ये सर्वे रिपोर्ट वर्ल्ड क्लाइमेट एंड सिक्योरिटी रिपोर्ट में प्रकाशित हुआ था। रिपोर्ट के अनुसार, 93 प्रतिशत सैन्य विशेषज्ञों ने माना कि जल सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव 2030 तक वैश्विक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण जोखिम उत्पन करेगा। लगभग 91 प्रतिशत ने माना कि ये जोखिम 2040 तक गंभीर या विनाशकारी हो जाएंगे। 

संघर्ष व विस्थापन का बुरा असर

अधिकांश विशेषज्ञों का मानना ​​था कि 2040 तक विस्थापन और प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होगी और इससे देशों के भीतर संघर्ष बढ़ेगा। 94 प्रतिशत से अधिक विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य सुरक्षा संकट के और बढने की आशंका जताई। 86 प्रतिशत विशेषज्ञों ने जलवायु परिवर्तन के कारण 2040 तक वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ने और राष्ट्रों के भीतर संघर्ष होने का आकलन किया है।

इस रिपोर्ट में अफ्रीका, आर्कटिक, यूरोप, भारत-एशिया प्रशांत, मध्य-पूर्व, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण-मध्य अमेरिका और कैरिबियन देशों में वैश्विक और क्षेत्रीय जलवायु और सुरक्षा जोखिमों का एक अवलोकन पेश किया गया है।

संयुक्त राज्य अमेरिका के सेंटर फॉर क्लाइमेट एंड सिक्योरिटी पर बने राष्ट्रीय सुरक्षा, सैन्य और खुफिया पैनल ने चेतावनी दी है कि अगले 30 वर्षों में उन देशों को भी गंभीर सुरक्षा जोखिमों का सामना करना पड़ेगा, जहां अभी वार्मिंग का स्तर कम है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले विस्थापन में सैन्य और मानवीय हस्तक्षेप की जरूरत होगी। 

मौसम में अनियमितता का असर

आईएमसीसीएस की रिपोर्ट में युगांडा का जिक्र है, जहां पूर्वी अफ्रीका में फैल रहे रेगिस्तानी टिड्डियों से बचने के लिए सेना की मदद ली गई थी. नाइजीरिया में, 2016 और 2018 के दौरान, चरवाहों और किसानों के बीच संघर्ष के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा था। अफ्रीका में लगभग 268 मिलियन (एक चौथाई आबादी) पशुपालक महाद्वीप के कुल जमीन के 43 प्रतिशत हिस्से में रहते थे. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर पर्याप्त ध्यान न देने और उचित नीतियों के कारण वहां जमीन संबंधी संघर्ष काफी बढ़ गए।   

सक्रिय होने का समय

रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों द्वारा अपनी रक्षा रणनीति में अपनाए गए सुरक्षा प्रथाओं पर प्रकाश डाला गया है।

उदाहरण के लिए, विदेशी मामलों, रक्षा और व्यापार पर ऑस्ट्रेलिया की सीनेट समिति, ने जलवायु परिवर्तन को खतरा और बोझ को कई गुणा बढाने वाला माना है। हाल ही में जंगल में लगी आग को बुझाने में सहायता देने के लिए 6,400 से अधिक सैनिकों को बुलाया गया था।

ऑस्ट्रेलिया का रॉयल कमीशन भविष्य में होने वाले फॉरेस्ट ऑपरेशन में सैन्य उपयोग को नियमित करने के लिए एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है। न्यूजीलैंड ने भी जलवायु परिवर्तन को सुरक्षा जोखिम के रूप में माना है।   

कितने तैयार है हम?

एक तरफ तो अफ्रीकी संघ ने जलवायु परिवर्तन को सुरक्षा के लिए खतरा मान लिया है, लेकिन इससे निपटने के लिए इसकी सैन्य तैयारी में भारी कमी है। रिपोर्ट इस बात की याद दिलाती है कि जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम करना और अनुकूलन को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।

एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के रक्षा मंत्रियों (भारत समेत) को जलवायु और सुरक्षा पर सात विशेषज्ञ कार्यकारी समूह (ईडब्ल्यूजी) बनाने के लिए कहा गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन पर ज्ञान और इससे निपटने की क्षमता काफी कमजोर है।

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