बारिश के पैटर्न में आते बदलावों से 2040 तक गंगा के निचले इलाकों में पड़ सकती है सूखे की मार

रिसर्च से पता चला है कि 2040 तक इस क्षेत्र में होने वाली औसत मासिक वर्षा में सात से 11 मिलीमीटर प्रतिदिन की उल्लेखनीय कमी आ सकती है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 20 September 2023
 
सिंचाई के लिए खेतों को साफ करता किसान; फोटो: आईस्टॉक

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि निकट भविष्य में गंगा बेसिन के निचले इलाकों में खेती पर सूखे की मार पड़ सकती है। शोधकर्ताओं ने इसके लिए औसत बारिश में आने वाली कमी को जिम्मेवार माना है। शोध से यह भी पता चला है कि निकट भविष्य में इस क्षेत्र में होने वाली औसत मासिक वर्षा में सात से 11 मिलीमीटर प्रतिदिन की उल्लेखनीय कमी आ सकती है।

इसी तरह निकट भविष्य में देश के पूर्वी घाट में मौजूद नदी घाटियों में होने वाली दैनिक वर्षा में 20 फीसदी तक की कमी आ सकती है। हालांकि दूर भविष्य में यहां होने वाली दैनिक वर्षा में 15 फीसदी तक की वृद्धि होने का अंदेशा है। महानदी, ब्राह्मणी, सुवर्णरेखा और सिंधु बेसिन के निचले क्षेत्रों में भी कुछ ऐसे ही हालात सामने आ सकते हैं।

शोध के मुताबिक बढ़ते तापमान और घटती बारिश से न केवल पैदावार पर असर पड़ेगा साथ ही इसकी वजह से गन्ने की मिठास भी प्रभावित होगी। बता दें कि गन्ना गंगा नदी घाटी में बोई जाने वाली एक प्रमुख फसल है।

वहीं दूसरी तरफ अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उन नए संभावित शहरी क्षेत्रों की भी पहचान की है, जहां भविष्य में लगातार भारी बारिश के चलते बाढ़ आने का खतरा पैदा हो सकता है। अनुमान है कि बारिश के पैटर्न में आते इन बदलावों से पश्चिमी घाट के साथ-साथ मुंबई और पुणे जैसे महानगरों में बाढ़ गंभीर रूप ले सकती है।

इसी तरह मानसून में भारी बारिश के चलते हैदराबाद, बेंगलुरु और चेन्नई में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा। ऐसे में शहरी योजनाकारों और नीति निर्माताओं को इस उभरते खतरे से निपटने के लिए सक्रिय तौर पर कदम उठाने की आवश्यकता होगी।

अध्ययन बीएचयू के डीएसटी-महामना जलवायु परिवर्तन उत्कृष्ट शोध केन्द्र से जुड़े शोधकर्ता पवन चौबे और प्रोफेसर आर के मल्ल द्वारा किया गया है। इस रिसर्च के नतीजे जर्नल अर्थ्स फ्यूचर में प्रकाशित हुए हैं। इसके मुताबिक बारिश में आते इन बदलावों से धान, गेहूं, मक्का, कपास, बाजरा, आलू, रागी, ज्वार और गन्ना जैसी फसलों पर असर पड़ सकता है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है। उसके चलते दुनिया भर में बाढ़-सूखा जैसी हाइड्रो-क्लाइमेट आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है। भारत भी इससे बचा नहीं है। यही वजह है कि शोधकर्ताओं ने अपने इस नए अध्ययन में भविष्य में बारिश के पैटर्न में आते बदलावों के चलते भारतीय नदी घाटियों में आने वाली बाढ़ और सूखा जैसी घटनाओं का जायजा लिया है।

बढ़ते तापमान के साथ देश भर में बदल रहा है मौसम का मिजाज

इसके लिए शोधकर्ताओं ने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के साथ-साथ विश्लेषण के लिए सीएमआइपी-6 जलवायु मॉडल का उपयोग किया है। इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके अनुसार निम्न उत्सर्जन परिदृश्य यानी एसएसपी1-2.6 के तहत पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर के नदी क्षेत्रों में अत्यधिक बारिश की आवृत्ति में वृद्धि होने की आशंका है। इसका मतलब है कि इन क्षेत्रों में पहले से कहीं ज्यादा भारी बारिश की घटनाएं देखने को मिल सकती हैं, जिससे बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।

इसके अतिरिक्त, रिसर्च से यह भी पता चला है कि कम उत्सर्जन परिदृश्य में 2060 तक पश्चिमी भारत में होने वाली भारी बारिश की तीव्रता चार से दस फीसदी तक बढ़ सकती है। हालांकि यदि अगले कुछ दशकों की बात करें तो यह वृद्धि मुख्य रूप से केवल राजस्थान के कुछ हिस्सों और पश्चिम की ओर बहने वाली नदी घाटियों में केंद्रित होगी।

इसी तरह एसएसपी2-4.5 के तहत ऊपरी गंगा और सिंधु बेसिन में भारी बारिश की तीव्रता में 14.3 फीसदी की उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। भारी बारिश की तीव्रता में होती वृद्धि से जल प्रबंधन और बाढ़ को लेकर की जा रही तैयारियों पर अच्छा खासा असर पड़ सकता है।

वहीं यदि उच्च-उत्सर्जन परिदृश्यों के तहत देखें तो देश में चुनौतियां कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले सकती हैं। उच्च-उत्सर्जन यानी एसएसपी-8.5 परिदृश्य में देखें तो देश में उत्तरी, मध्य और पश्चिमी नदी घाटियों को और भी अधिक चरम जलवायु घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है।

कहीं न कहीं यह उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के साथ-साथ इसके प्रभावों को कम करने के लिए शमन से जुड़े प्रयासों के महत्व को भी रेखांकित करता है। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बदतर होती स्थिति से निपटने के लिए प्रभावी रणनीति बनाने का भी सुझाव दिया है। 

हाल ही में द यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास ने अपने अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला था कि कैसे दुनिया भर में मौसम का मिजाज तेजी से बदल रहा है। कभी जिन क्षेत्रों में सूखा पड़ रहा था वहां एकाएक बाढ़ आ जाती है। वैज्ञानिकों ने इन बदलावों के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेवार माना है, जिसकी वजह से इस तरह की घटनाएं बार-बार सामने आ रहीं हैं।

ऐसा ही कुछ अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित अध्ययन में भी सामने आया है, जिसके मुताबिक वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान न केवल लम्बी अवधि में बल्कि हर दिन होने वाली बारिश को भी प्रभावित कर रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो इसकी सबसे बड़ी वजह जलवायु में आता बदलाव है, जिसकी वजह से मौसम का मिजाज पूरी तरह बदल रहा है। मौसम इतना अनियमित होता जा रहा है, कि उसका पूर्वानुमान तक करना कठिन होता जा रहा है।

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