उत्तराखंड: रायपुर आपदा के लिए कितना जिम्मेवार है अवैध खनन

19 अगस्त को बादल फटने के कारण रायपुर में भारी तबाही मच गई थी

By Megha Prakash

On: Tuesday 23 August 2022
 


‘मेरे भाई ने मुझे सुबह डेढ़ बजे जगाया। उसकी आवाज डर के मारे कांप रही थी। उसने मुझसे खिड़की से बाहर देखने के लिए कहा। पहले, मैंने सोचा कि बाहर से आ रही आवाज, भारी बारिश की होगी, जो रात में 11 बजे के करीब शुरू हुई थी। लेकिन, जल्दी ही मुझे महसूस हुआ कि यह बारिश की आवाज नहीं थी, बल्कि सोंग नदी पूरे उफान पर थी और उग्र रूप से बह रही थी। उसके बाद हमने गांव के लोगों के साथ अपने-अपने घरों से निकलकर सुरक्षित जगह पर पहुंचना शुरू किया।’ यह वाकया नीरज पंवार ने डाउन टू अर्थ को बताया, जो उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के रायपुर ब्लॉक के कुमालदा गांव के रहने वाले हैं।

खबरों के मुताबिक, 19 अगस्त को सोंग नदी के जल संग्रहण क्षेत्र के ऊपरी इलाकों में बादल फटा था। इसके अलावा, रात भर लगातार बारिश ने नदी में जलस्तर बढ़ा दिया था। हालांकि देहरादून स्थित मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह इस घटना को बादल फटना नहीं कहते। अपने बयान में उन्होंने कहा कि इस इलाके में बारह घंटों के दौरान भारी बारिश हुई थी। परिभाषा के मुताबिक, बादल फटने की घटना तब मानी जाती है, जब किसी इलाके में एक घंटे में एक सौ मिमी से ज्यादा बारिश होती है।

घाटी और नदी
रायपुर ब्लॉक में दो घाटियां - सोंग और बंदाल मिलती हैं। सोंग नदी, मसूरी पर्वतश्रेणी के दक्षिण से शुरू होती है, जहां रादी शीर्ष पर इसका उद्गम है। एक से पांचवें क्रम की कई धाराएं मिलकर सोंग नदी बनाती हैं। ये नदियां मालदेवता में जाकर मिल जाती हैं।

सोंग के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में, चिफल्डी धारा, तौलिया कटाल गांव के पास इसमें गिरती है। सोंग नदी के ऊपरी मार्ग की ओर, रगड़, कोटि, ऐरला सीमावर्ती गांव हैं। ये सभी गांव, टिहरी गढ़वाल के चंबा ब्लॉक के अंतर्गत आते हैं।

बार-बार होने वाली चरम मौसम की घटनाएं
यह इलाका पहले से ही चरम मौसम की घटनाओं के प्रति संवेदनशील रहा है। 15 अगस्त, 2014 को बंदाल नदी की बाढ़ ने सरखेत गांव को जलमग्न कर दिया था। तब मालदेवता, सिल्ला-क्यारा मोटर रोड भी बह गई थी। यह गांव पहले भी चरम मौसम की घटनाओं से प्रभावित होता था और आज भी हो रहा है। इस बार भी यह गांव बर्बाद हो गया है।

नाम न जाहिर करने की शर्त पर एक स्थानीय निवासी ने बताया - ‘ हालांकि 1983 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पाइराइट फॉस्फोराइट एंड केमिकल लिमिटेड (पीपीसीएल) ने इलाके में भू खनन करना छोड़ दिया था। लेकिन, नदी के किनारे सामग्री-निष्कर्षण के नाम पर अवैध खनन आज भी जारी है।’ यह बताने वाली महिला देहरादून के प्रेमनगर से अपने भाई की तलाश में यहां आई थीं। उन्हें उनकी ससुराल में बताया गया था कि पीपीसीएल से दो किलोमीटर दूर मायके में उनका घर मलबे में दब गया है।

बादल फटने और नदी द्वारा नुकसान पहुंचाने की घटनाओं के बार-बार होने के पीछे कई कारण हैं। जलवायु परिवर्तन पर शोध कर रहे देहरादून निवासी आयुष जोशी के मुताबिक, इन घटनाओं के पीछे के कई कारणों में से एक है - सोंग घाटी में बड़े पैमाने पर मानवजनित हस्तक्षेप।

रायपुर को संरक्षित वन की श्रेणी में रखा गया है, लेकिन पिछले कुछ समय में यहां कई तरह का निर्माण बढ़ा है। उदाहरण के लिए, नदी पर एक पुल बनाया जाना प्रस्तावित है, सड़कों को काटा जा रहा है, जो इस इलाके को टिहरी से जोड़ेंगी।

देहरादून की वकील रीनू पॉल सवाल करती हैं,-‘नदी के वैज्ञानिक अध्ययन और आकलन के बिना सोंग नदी पर बांध कैसे प्रस्तावित हो सकता है। पॉल ने घाटी को संरक्षित रखने के लिए कई याचिकाएं दायर की हैं।

खनन, अतिक्रमण और पहाड़ी को काटना  
गांववालों का आरोप है कि कई रिसॉर्ट्स और छोटे भोजनालयों ने नदी के तल पर अतिक्रमण कर लिया है। हाल के सालों में, खनन गतिविधि में वृद्धि हुई है, और नदी को साध लिया गया है,। 32 साल के पंवार कहते हैं -‘इस इलाके में एक बार चूने के पत्थर का खनन किया गया था लेकिन काफी पहले उसे बंद कर दिया गया था। हालांकि अब इस इलाके में खनन फिर बढ़ गया है।

तेज गति से होने वाले निर्माण-कार्यो के साथ ही पहाड़ी को काटने और नदी के तल पर अतिक्रमण ने भी मुश्किलें बढ़ाई हैं। यह इसलिए हो रहा है क्योेंकि गांववालोें ने उस जगह पर रिसॉर्ट्स बनाने के लिए अपनी जमीनें बेची है।

नदी के तल पर अतिक्रमण ज्यादा हो रहा है जबकि बड़ेे स्तर पर किए जाने वाले खनन से नदी सिकुड़ रही है। उदाहरण के लिए, सोंग नदी से मालदेवता में मिलने वाली बांदल नदी भी खनन की भुक्तभोगी है। रंजीत सिंह पंवार के गांव, धंतू का सेरा के ठीक ऊपर छमरोली गांव है, जहां बादल फटा था।

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