खतरे में गौरा का गांव, गौरा देवी की प्रतिमा भी हटाई

जंगलों को बचाने के लिए जिस गांव रैणी से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई, आज उसी गांव पर अस्तित्व का संकट बना हुआ है

By Trilochan Bhatt

On: Friday 18 June 2021
 
चिपको आंदोलन का नेतृत्व करने वाली स्वर्गीय गौरा देवी की प्रतिमा को हटा दिया गया। फोटो: त्रिलोचन भट्ट

इस वर्ष 7 फरवरी को ग्लेशियर टूटने से तबाह हुआ चिपको नेता गौरा देवी का गांव रैणी हाल के दिनों की बारिश के बाद पूरी तरह से असुरक्षित हो गया है। गांव के ठीक नीचे जमीन लगातार खिसक रही है। इस गांव के होकर चीन बाॅर्डर तक सेना को रसद पहुंचाने का एक मात्र मोटर मार्ग टूट गया है। हालात ये हैं कि करीब 20 साल पहले गांव में लगाई गई गौरादेवी की प्रतिमा को भी हटा दिया गया है। 17, जून की शाम जब गौरा देवी की प्रतिमा को हटाया गया, उस समय माहौल बेहद भावुक था। जंगलों को बचाने में गौरा देवी की सहयोगियों में से एक बुजुर्ग महिला बाली देवी फूट-फूटकर रोने लगी। उन्हें देख गांव की अन्य महिलाओं के भी आंसू छलक आये। महिलाओं का कहना था कि गौरा देवी की प्रतिमा के लिए कोई दूसरी जगह तलाश किये बिना प्रतिमा को हटाना ठीक नहीं है। फिलहाल यह प्रतिमा गांव के ही एक घर में रखी गई है।

इस वर्ष 7 फरवरी को चमोली जिले में ऋषिगंगा क्षेत्र के कैचमेंट एरिया में हैंगिंग ग्लेशियर के टूटने से आई बाढ़ में सुप्रसिद्ध चिपको नेता स्व. गौरा देवी का रैणी गांव में बुरी तरह से प्रभावित हो गया था। एक जल विद्युत परियोजना के निर्माण के लिए इस गांव में काफी पहले से पहाड़ों को खोदा जा रहा था। गांव वाले लगातार इस योजना का विरोध कर रहे थे। जब परियोजना पर काम नहीं रुका तो रैणी के लोगों ने विस्थापन की मांग की। इस मांग पर भी ध्यान नहीं दिया गया। इस बीच 7 फरवरी, 2021 की घटना से गांव मोटर मार्ग वाला पुल बह गया। कुछ घरों को भी नुकसान पहुंचा।

इस घटना के बाद से गांव वालों ने विस्थापन की मांग तेज कर दी थी। लोगांे ने धरना भी दिया, लेकिन सरकारी स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाये गये। पहले जल विद्युत परियोजना के लिए पहाड़ों को काटे जाने और फिर 7 फरवरी की बाढ़ से असुरक्षित हो चुके रैणी गांव के नीचे हाल के दिनों की बरसात के बाद लगातार जमीन खिसक रही है। चार घर किसी भी समय ढह सकते हैं। गांव के ज्यादातर घरों और जमीन में दरारें आ गई हैं। कुछ परिवार अपने घर छोड़कर ज्यादा सुरक्षित समझे जा रहे दूसरों के घरों में चले गये हैं तो कुछ परिवार जोशीमठ में रह रहे हैं।

तीन दिन पहले गांव के नीचे मोटर मार्ग पूरी तरह से बह गया। तब से इस मार्ग पर वाहनों की आवाजाही बंद है। इससे न सिर्फ रैणी से आगे के करीब 20 गांवों का सड़क संपर्क टूट गया है, बल्कि बाॅर्डर पर सेना को रसद और अन्य जरूरी सामान पहुंचाने में भी बाधा आ रही है। अब गांव के पास सड़क नये सिरे से बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए पुरानी सड़क से ऊपर पहाड़ी को काटकर वाहनों की आवाजाही के लायक सड़क बनाने की योजना है। जिस जगह से नये सिरे से सड़क बननी है, ठीक उसी जगह गौरा देवी का प्रतिमा स्थल है। प्रतिमा को हटाये बिना सड़क बनाना संभव नहीं था, लिहाजा करीब 20 वर्ष पहले स्थापित की गई गौरा देवी की प्रतिमा को हटा दिया गया है। फिलहाल इस प्रतिमा के लिए कोई दूसरी जगह तय नहीं की गई है,  प्रतिमा गांव के एक घर में रखी गई है।

रैणी के ग्राम प्रधान मोहन सिंह रावत बताते हैं कि गांव पूरी तरह असुरक्षित है। हम पहले से गांव को सुरक्षित जगह पर विस्थापित करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई इस पर ध्यान नहीं दे रहा है। अब रोड को ऊपर की तरफ ले जाने के लिए फिर से पहाड़ को काटा जाएगा इससे गांव और असुरक्षित हो जाएगा। गांव वाले इस सड़क को न बनने देने पर जोर दे रहे थे, लेकिन इससे आगे के दो दर्जन गांवों के साथ-साथ सेना भी प्रभावित होगी, इसलिए सड़क का विरोध न करने का फैसला किया गया है। मोहन सिंह रावत के अनुसार अब उनकी मांग गांव को जल्दी से जल्दी विस्थापित करने की है। इसके लिए गांव में अब धरना देने की तैयारी की जा रही है।

जोशीमठ के सामाजिक कार्यकर्ता अतुल सती कहते हैं कि चमोली जिले की नीति घाटी में करीब दो दर्जन गांव हैं, जो सामरिक दृष्टि से भी बेहद संवेदनशील हैं। इनमें रैणी गांव भी शामिल है। वे कहते हैं रैणी को असुरक्षित बनाने के लिए सरकार पूरी तरह से जिम्मेदार है। उच्च हिमालयी क्षेत्र में जल विद्युत परियोजनाओं का लगातार विरोध होने के बाद भी जबरन इस क्षेत्र में परियोजनाएं थोपी गई। 7 फरवरी इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम था। अब रैणी गांव किसी भी हालत में रहने लायक नहीं रह गया है। इसका विस्थापन बेहद जरूरी है।

राज्य में 352 गांव संवेदनशील
रैणी उत्तराखंड को अकेला गांव नहीं है, जो आपदा की दृष्टि से संवेदनशील है। राज्य सरकार ने ऐसे 352 गांवों की पहचान की है, जिन्हें विस्थापित करना बेहद जरूरी है। इनमें से 51 गांवों को अति संवेदनशील माना गया है। इन गांवों को दूसरी जगहों पर विस्थापित करने की कवायद पिछले कई वर्षों से चल रही है। राज्य सरकार ने हर वर्ष हर जिले में दो-दो गांवों की विस्थापित करने की भी योजना बनाई थी। इस योजना के तहत 3.25 लाख रुपये प्रति परिवार बजट तय किया गया था।  लेकिन, कम बजट और जमीन न मिल पाने के कारण अब तक एक भी संवेदनशील गांव का विस्थापन नहीं किया जा सका है। राज्य सरकार ने 130 गांवों को ट्रीटमेंट के जरिये सुरक्षित करने की भी योजना बनाई है, लेकिन यह योजना भी पिछले कई वर्षों से धरातल पर नहीं उतर पाई है

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