डाउन टू अर्थ की व्याख्या: क्या है बादल फटने का विज्ञान

बाढ़-प्रभावित भद्राचलम के दौरे पर गए तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने कहा कि बादल फटने के पीछे ‘विदेशी साजिश’ हो सकती है

By DTE Staff

On: Tuesday 19 July 2022
 

भारत, खासतौर से इसके हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्यों में कई बार बादल फटने की घटनाएं होती हैं, ये घटनाएं ज्यादातर मॉनसून के दौरान होती हैं। उत्तराखंड में 2013 में बादल फटने के कारण अचानक आई बाढ़ में हजारों लोग मारे गए थे। यह घटना, देश में 2004 की सूनामी के बाद सबसे भयंकर आपदा के तौर पर दर्ज की गई थी।

मौसम विज्ञानियों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसी चरम मौसम की घटनाएं बार-बार और ज्यादा तीव्रता से हो रही हैं।

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डेम, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी ) ने इन आपदाओं पर प्रकाशित समाचार लेखों से आंकड़े इकट्ठा किया। जिसके मुताबिक, 2021 में हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की घटनाएं करीब तीस और उत्तराखंड में पचास घटनाएं दर्ज की गईं।

यह साल भी कुछ अलग नहीं है: बादल फटने के बाद अचानक आई बाढ़ से आठ जुलाई को जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ गुफा के पास 17 लोगों की मौत हो गई थी। राज्य के प्रशासन के मुताबिक, 16 जुलाई तक इस हादसे में 40 लोग घायल थे। आधिकारिक रिकॉर्ड के हिसाब से साठ लोग अभी भी गायब हैं। जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की शुरुआती घटनाओं में से एक बडगाम जिले में नौ मई की घटना थी, जिसमें कम से कम एक आदमी की जान चली गई थी।

इससे कुछ दिनों पहले ही इसी तरह की एक और घटना में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में करीब छह पर्यटक बह गए थे।

तेलंगाना में मंदिर के शहर के तौर पर चर्चित भद्राचलम में पिछले सप्ताह लगातार बारिश के चलते उफान पर आई गोदावरी नदी की बाढ़ के चलते भी ऐसी ही घटना हुई। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इसमें कम से कम 15 लोग मारे गए।

माीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 17 जुलाई को बाढ़ से प्रभावित इस इलाके के दौरे पर गए राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने इस दौरान कहा कि  बार-बार बादल फटने की घटनाएं विदेशी साजिश का नतीजा हैं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि जैसा कि विशेषज्ञ मानते हैं-जलवायु परिवर्तन की भी इन घटनाओं में सहायक भूमिका हो सकती है।

इसने हमारे सामने सवाल खड़ा किया है कि: बादल फटने की घटनाएं क्यों होती हैं ?

बादल फटना, किसी स्थानीय क्षेत्र में आई अचानक और तेज बारिश का नतीजा होता है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, बादल फटने को उस स्थिति के रूप में परिभाषित करता है, जहां एक विशेष क्षेत्र में बारिश की मात्रा एक घंटे में 100 मिलीमीटर से ज्यादा हो जाती है।

बादल फटने की ये घटनाएं अक्सर आकस्मिक बाढ़ में तब्दील हो जाती हैं। ये घटनाएं आमतौर पर मई से सितंबर के बीच ज्यादा होती हैं, जब देश के ज्यादातर हिस्सों में दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून का मौसम चल रहा होता है।

वह प्रक्रिया, जो इतने कम समय में भारी बारिश के लिए जिम्मेदार होती है, वह ‘पर्वतीय उत्थान’ है। यह वह प्रक्रिया है, जिसमें पहले से बारिश के लिए तैयार बादलों को गर्म हवा की धाराओं के जरिए ऊपर की ओर धकेला जाता है। जैसे-जैसे वे ऊंचाई पर पहुंचते हैं, बादलों के भीतर पानी की बूंदें बड़ी हो जाती हैं और नई बूंदें बन जाती हैं। इन बादलों के भीतर बिजली, बारिश में देरी करने में मदद करती है।

नमी की भारी मात्रा को रोक पाने में नाकाम ये घने बादल अचानक फट जाते हैं। जिसका नतीजा यह होता है कि नीचे के भौगोलिक क्षेत्र में मूसलाधार बारिश होती है और बहुत कम समय में ही जलाशयों में पानी का बेहद ज्यादा प्रवाह होने लगता है।

पर्वतीय क्षेत्रों में यह घटना आमतौर पर ज्यादा होती है क्योंकि वे पहाड़ी ढलानों के साथ नमी से भरी हवा के तेजी से बढ़ने के लिए भौगोलिक-क्षेत्र की पेशकश करते हैं।

इस तरह की आपदा के पूर्वानुमान के लिए डॉप्लर-रडार प्रणाली आदर्श है। 2013 में उत्तराखंड के हादसे के बाद बादल फटने की आशंका वाले क्षेत्रों में निगरानी स्टेशनों को इस प्रणाली से लैस करने की मांग की गई थी।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक वाले स्टेशन अभी भी बुहत कम हैं। यहां तक कि हिमालयी स्टेशनों में भी वे कम हैं, जिसके चलते मौसम की भविष्यवाणी करना मुश्किल हो जाता है। 

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