हजारों साल पहले लद्दाख के ठन्डे मरुस्थल में आती थी भीषण बाढ़, अध्ययन में हुआ खुलासा

विश्लेषण से पता चला है कि कभी यहां का तापमान तुलनात्मक रूप से काफी ज्यादा था, जिस वजह से ग्लेशियरों के पिघलने के कारण भीषण बाढ़ आया करती थी

By Lalit Maurya

On: Thursday 17 June 2021
 

आज से करीब तीन से 15 हजार साल पहले लद्दाख हिमालय के ठंडे मरुस्थलीय क्षेत्र में भीषण बाढ़ आया करती थी। इस बात की जानकारी वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के शोधकर्ताओं ने दी है। शोध से पता चला है कि इतिहास में इस क्षेत्र में इतनी बड़ी बाढ़ भी आई थी, जिसका जल स्तर नदी के वर्तमान जल स्तर से 30 मीटर से भी ऊपर चला गया था।

जिसका मतलब यह हुआ कि आज जिस तरह तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में नाटकीय रूप से बदलाव आ सकता है। जिससे लद्दाख में आने वाली बाढ़ की संख्या में इजाफा हो सकता है। ऐसे में यह जरुरी हो जाता है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए उचित योजना बनाई जाएं और उसमें इस पहलु को भी ध्यान में रखा जाए।

आमतौर पर भारत की प्रमुख नदियों में प्राकृतिक रूप से बर्फ और हिमनदों के पिघलने और मानसून के दौरान होने वाली बारिश के चलते बड़े पैमाने पर बाढ़ आती है। जिसके लिए भारत में ग्रीष्म ऋतु में आने वाले मानसून और पश्चिमी एवं पूर्वी एशियाई ग्रीष्मकालीन मानसून का भी हाथ होता है। यह बाढ़ न केवल वहां के प्राकृतिक स्वरुप में बदलाव कर रही है साथ ही वहां जीवन और अर्थव्यवस्था पर भी असर डाल रही है।

इन बाढ़ की घटनाओं के लिए कई तरह के कारक जैसे हिमनदों और भूस्खलन के कारण झील में होने वाले विस्फोट, बादल फटने, मानसून में होने वाली जबरदस्त बारिश का नतीजा होती हैं। इन सभी का पूरी तरह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है यही वजह है कि इनके पूर्वानुमान में हमेशा अनिश्चितता बनी रहती है। यदि भारत में उपलब्ध बाढ़ सम्बन्धी रिकॉर्ड को देखें तो हमारे पास पिछले करीब 100 वर्षों के रिकॉर्ड उपलब्ध हैं। जो हिमालय में आने वाली बाढ़ की घटनाओं को समझने के लिए काफी नहीं है इसके लिए इतिहास में पीछे जाकर समझने की जरुरत है।

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने     

इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों के एक दल ने हिमालय क्षेत्र में जांस्कर और सिंधु के कठिन इलाकों में जाकर बाढ़ के भूगर्भीय संकेतों को समझने का प्रयास किया है, जोकि तीन से 15 हजार साल पुराने हैं। इस बारे में विस्तृत जानकारी जियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका जर्नल में प्रकाशित की गई है।

बाढ़ अपने साथ उम्दा रेत और गाद भी बहाकर लाती है, जिसे वो ताकत के कम होने पर जमा कर देती है। वैज्ञानिकों ने जंस्कार और सिंधु नदी के किनारों पर इसी तलछट का विश्लेषण किया है, जिसे स्लैक वाटर डिपॉजिट कहते हैं। उन्होंने इस बात का पता लगाने की कोशिश की है कि इस क्षेत्र में कब और कितनी बाढ़ आई थी। उन्होंने इसके समय को मापने के लिए ऑप्टिकली स्टिमुलेटेड ल्यूमिनेसेंस (ओएसएल) और 14सीके एक्सेलेरेटेड मास स्पेक्ट्रोमेट्री नामक तकनीक का उपयोग किया था।

विश्लेषण से पता चला है कि लद्दाख के इस ठन्डे मरुस्थल में नदी के वर्तमान स्तर से 30 मीटर से अधिक ऊंची बाढ़ आई थी। उनके अनुसार नदी के निकट सक्रिय बाढ़ वाले मैदानों का उपयोग मनुष्यों द्वारा भी किया जाता था। संभवतः इन स्थानों को शिविर बनाने और खाना पकाने के लिए किया जाता है। यहां बाढ़ के तलछट से चूल्हों की मौजूदगी के भी निशान मिले हैं। विश्लेषण से पता चला है कि कभी यहां का तापमान तुलनात्मक रूप से काफी ज्यादा था, जिस वजह से ग्लेशियरों के पिघलने के कारण भीषण बाढ़ आया करती थी।

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