दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में पारंपरिक बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली अधिक कारगर

यह एक ऐसी प्रणाली है जिसका भारत मौसम विज्ञान विभाग अभी मुकाबला नहीं कर सकता क्योंकि ऐसे छोटे-छोटे स्थानीय पैमानों पर बाढ़ की चेतावनी जारी करना विभाग के लिए बहुत ही मुश्किल होता है

By Anil Ashwani Sharma

On: Monday 13 February 2023
 

जलवायु परिवर्तन की मार भारत में बारिश को और घातक बना रही है। ऐसे में भारत सहित पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के मौसम का पूर्वानुमान लगाना लगातार कठिन होते जा रहा है, क्योंकि इस क्षेत्र में आने वाला मानसून अब और अधिक अनियमित होता जा रहा है।

वैश्विक तापमान की वृद्धि बारिश को और भयावह बना रही है। इसी प्रकार की भयावह बारिश आज से चार साल पहले यानी केरल में 2018 में आई थी। इस बारिश का किसी को किसी भी प्रकार का पूर्वानुमान नहीं था। और इस बारिश ने राज्य के सभी जलाशयों को पूरा भर दिया था।

लगातार बारिश से लोग मानसून से ऊब चुके थे। ऐसे ही एक भारी बारिश के दिन ईबी इमैनुएल (कोट्टयाम जिले के किदंगूर गांव में मीनाचिल नदी संरक्षण परिषद के सचिव) के फोन पर पड़ोसियों के संदेश बार-बार आने लगे कि मीनाचिल नदी उफान पर है। ऐसी हालात में उन्होंने महसूस किया कि रेतीली नदी के किनारे रहने वाले 90 गरीब परिवार पर बाढ़ का असन्न खतरा मंडरा रहा है।

इमैनुएल ने जल्दी से अन्य सामुदायिक कार्यकर्ताओं और कोट्टायम अग्निशमन के विभागीय लोगों को एकत्रित किया और उन परिवारों को बाढ़ से बचाने के लिए दूसरे स्थान पर ले गए। ध्यान रहे कि इमैनुएल एक पारंपरिक बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली का संचालन करते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि राज्य के छोटे-छोटे स्थानों पर मौसम विज्ञान विभाग की भविष्यवाणी सटीक नहीं बैठती। ऐसे में यह पारंपरिक प्रणाली ही ग्रामीण इलाकों के लिए अब भी बहुत कारगर साबित हो रही है।

ध्यान रहे कि केरल में अगस्त, 2018 में सामान्य से 164 प्रतिशत अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई थी। इस भारी बारिश के होने पर स्थानीय निवासी प्रलयम ने तो यहां तक कहा कि यह तो दुनिया को समाप्त करने जैसी बाढ़ है। 1924 के बाद से राज्य में यह सबसे बड़ी बाढ़ थी। भारत सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार 400 से अधिक लोग मारे गए, दस लाख से अधिक विस्थापित हुए और 4.25 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ था।

इमैनुएल कहते हैं कि 2018 के बाद से बारिश की बूंदों की टप-टप आवाजें मुझे बहुत परेशान करने लगी हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं था, जब पूरे मौसम में बारिश होती रहती थी और हम शांति से सोते रहते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। ईबी इमैनुएल किदंगूर गांव में मीनाचिल नदी संरक्षण परिषद के सचिव हैं और वहां स्थानीय लोगों के साथ मिलकर बाढ़ पूर्व-चेतावनी प्रणाली चलाते हैं।

2018 की अत्यधिक बारिश ने इमैनुएल और समुदाय के अन्य सदस्यों की एक टीम ने अपने समूह में और सदस्यों को बढ़ाने के लिए प्रयास किया है। इसका कारण है कि दक्षिण एशिया में मानसून लगातार असामान्य होते जा रहा है। ध्यान रहे कि इमैनुएल द्वारा चलाई जा रहा प्रणाली पूरी तरह से स्थानीय निवासियों द्वारा विकसित की गई है और साथ ही इसके लिए जो भी पैसे की जरूरत हुई है उसे भी स्थानीय स्तर पर ही जुटाया गया है।

इनका नेटवर्क मीनाचिल नदी के किनारे बसे लगभग 75 किलोमीटर तक के गांवों तक फैला हुआ है। इनके नेटवर्क में स्कूली बच्चे, शिक्षक और अन्य स्थानीय निवासी शामिल हैं। और यह समूह तूफान के दौरान प्रतिदिन और यहां तक कि प्रति घंटे मौसम आ रहे बदलाव को अपने पारंपरिक ज्ञान से मापते हैं।

स्थानीय परिस्थितियों और अपने पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करते हुए वे सभी लोग इमैनुएल और उनकी टीम द्वारा बनाई गई मैसेजिंग सेवा व्हाट्सएप पर भेजते हैं। इसके बाद बाढ़ की चेतावनी जारी की जाती है और उनके इन प्रयासों को अब तक व्यापक स्तर पर मान्यता मिली हुई है।

नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार यह एक ऐसी प्रणाली है जिसका भारत मौसम विज्ञान विभाग अभी मुकाबला नहीं कर सकता है क्योंकि ऐसे स्थानीय पैमानों पर बाढ़ की चेतावनी जारी करना विभाग के लिए बहुत ही मुश्किल होता है। शुरुआती चेतावनियों के संदर्भ में पुणे में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के एक जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी कोल कहते हैं कि हमें उस स्वर्णिम काल के लिए दूर भविष्य में कहीं इंतजार करना होगा जो सामुदायिक समूह के वैज्ञानिक सलाहकार हैं।

जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ते जा रहा है, वैसे-वैसे इस प्रकार की चेतावनी प्रणालियों की आवश्यकता और बढ़ रही है। पूरे दक्षिण एशिया में प्राकृतिक मौसमी आपदाएं अब बारंबार और उनकी तीव्रता में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ध्यान रहे कि इस क्षेत्र में वैश्विक आबादी का लगभग एक-चौथाई हिस्सा बसता है, जिसमें 60 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर हैं। यही स्थिति उन्हें विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील बनाता है।

वैज्ञानिक अपने पूर्वानुमानों और पूर्व-चेतावनी प्रणालियों को बेहतर बनाने के लिए लगातार शोध कर रहे हैं, विशेष रूप से वर्षा-संबंधी आपदाओं के लिए, जो इस क्षेत्र में सबसे अधिक नुकसान का कारण बनती जा रही हैं। यह एक चुनौती है क्योंकि उष्णकटिबंधीय मौसम स्वाभाविक रूप से मध्य अक्षांशों की स्थितियों की तुलना में अधिक चंचल होता है, जहां सबसे घनी आबादी वाले देश स्थित हैं। और वर्तमान में मौसमी पूर्वानुमान मॉडल मूल रूप से विश्य के इस हिस्से के लिए डिजाइन नहीं किए गए थे।

ऐसे हालात में स्थिति और भी जटिल हो गई है क्योंकि जलवायु परिवर्तन और शहरी विकास ने खतरे के तरीकों को बदल दिया है और यहां तक कि मौसम के व्यवहार को भी बदल दिया है। पुणे में आईएमडी में जलवायु अनुसंधान और सेवाओं के प्रमुख के.एस. होसालिकर कहते हैं कि उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में भविष्यवाणी की यह समस्या हर जगह है। और जलवायु परिवर्तन इसे और कठिन बनाते जा रहा है। 

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