एक दिल्लीवासी से उसके जीवन के औसतन 10 और उत्तरप्रदेश में 8 साल छीन रहा है वायु प्रदूषण

आज देश की शत प्रतिशत दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है। यह प्रदूषण उन्हें हर पल मौत की और ले जा रहा है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 14 June 2022
 

देश में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन चुका है। यह समस्या उत्तर भारत में कुछ ज्यादा ही गंभीर है। आंकड़ों की माने तो भारत दुनिया का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर है। इस बढ़ते प्रदूषण का सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा वायु प्रदूषण को लेकर जो गुणवत्ता मानक तय किए हैं उनके आधार पर देखें तो देश की सारी आबादी यानी 130 करोड़ भारतीय आज ऐसी हवा में सांस ले रहे है जो उन्हें हर पल बीमार बना रही है, जिसका सीधा असर उनकी आयु और जीवन गुणवत्ता पर पड़ रहा है। विडंबना देखिए कि जहां हम विकास की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं वहीं देश की 63 फीसदी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जहां प्रदषूण का स्तर देश के अपने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से भी ज्यादा है।

हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा नवीनतम वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक प्रकाशित किया है जिसके अनुसार दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है। यहां वायु प्रदूषण की स्थिति इतनी गंभीर हो चली है कि वो हर दिल्लीवासी के जीवन के औसतन 10.1 साल लील रही है। वहीं बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते लखनऊ में रहने वाले लोगों की उम्र 9.5 साल तक घट सकती है।

रिपोर्ट के अनुसार यह स्थिति सिर्फ दिल्ली, लखनऊ जैसे शहरों तक ही सीमित नहीं है। देश में बढ़ता वायु प्रदूषण, विशेष रूप से पीएम2.5 एक औसत भारतीय की जीवन सम्भावना को पांच साल तक कम कर रहा है। मतलब यह कुपोषण और धूम्रपान से भी कहीं ज्यादा खतरनाक है। जहां कुपोषण के चलते मां और बच्चे की जीवन सम्भावना में 1.8 वर्षों की कमी आ रही है वहीं धूम्रपान के चलते लोगों के जीवन के औसतन 1.5 वर्ष कम हो रहे हैं।

क्यों जरुरी है वायु प्रदूषण में कमी करना

इंडेक्स के अनुसार यदि देश डब्लूएचओ के वायु गुणवत्ता मानक को हासिल कर लेता है तो जहां दिल्ली, उत्तर प्रदेश को इससे सबसे ज्यादा फायदा होगा। वहीं पंजाब में रहने वाले हर शख्स की जीवन सम्भावना भी 7.4 वर्ष बढ़ जाएगी, जबकि बिहार में यह आंकड़ा प्रति व्यक्ति 7.9 वर्ष होगा। इसी तरह पश्चिम बंगाल में भी हर व्यक्ति की जीवन सम्भावना औसतन 5.9 वर्ष, झारखण्ड में 5.6 वर्ष और छत्तीसगढ में भी 5.5 वर्ष तक बढ़ सकती है।       

रिपोर्ट की मानें तो  न केवल भारत में बल्कि दुनिया में भी गंगा का मैदानी इलाका दुनिया का सबसे प्रदूषित क्षेत्र है। अनुमान है कि वायु प्रदूषण का वर्तमान स्तर ऐसे ही बना रहता है तो इस क्षेत्र में पंजाब से लेकर पश्चिम बंगाल तक रहने वाले करीब 51 करोड़ लोग जोकि देश की आबादी का 40 फीसदी है, अपने जीवन के औसतन 7.6 साल खो देंगें।

गौरतलब है कि ईपीआईसी द्वारा जारी इस वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक में जीवन वर्षों पर पड़ने वाले वायु प्रदुषण के प्रभाव की गणना, विश्व स्वास्थ्य संगठन के पीएम2.5 के लिए जारी 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के स्तर के आधार पर की गई है, जिसे इंसानी स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित बताया गया है। मतलब की यदि किसी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता इससे ज्यादा खराब होती है तो वो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है।

रिपोर्ट के अनुसार देश में पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) का स्तर साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। जो 1998 की तुलना में 2020 में 61.4 फीसदी बढ़ गया है। इससे औसत जीवन सम्भावना 2.1 वर्ष घट गई है। देखा जाए तो पूरी दुनिया में 2013 से प्रदूषण में जितना इजाफा हुआ है उसके 44 फीसदी के लिए अकेला भारत जिम्मेवार है।

ऐसा नहीं है कि भारत सरकार प्रदूषण को कम करने के लिए प्रयास नहीं कर रही है। वर्ष 2019 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) की शुरआत की थी, जिसका लक्ष्य 2024 तक पीएम 2.5 के स्तर में 2017 की तुलना में 20 से 30 फीसदी की कटौती करना है।

देखा जाए तो यदि देश अपने इस लक्ष्य को हासिल कर लेता है तो इससे एक औसत भारतीय की जीवन सम्भावना में 1.4 वर्षों का इजाफा हो जाएगा, जबकि एक औसत दिल्लीवासी की उम्र 2.6 साल बढ़ जाएगी। हालांकि यह काम इतना आसान भी नहीं है क्योंकि आज भी देश की 63 फीसदी से ज्यादा आबादी अपने ही राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक से ज्यादा दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है।

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