क्यों काले व प्रदूषित हो रहे हैं उत्तर भारत के ग्लेशियर, वैज्ञानिकों ने ढूंढ़ी वजह

यह अध्ययन उत्सर्जन के स्रोतों से प्रत्येक ग्लेशियर के नमूने पर पाए गए काले कणों के यहां तक पहुंचने के बारे में खुलासा करता है।

By Dayanidhi

On: Friday 05 February 2021
 
Photo : Wikimedia Commons, Pindari Glacier, Uttarakhand, India

भारत के पश्चिमी हिमालय में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, इसका कारण प्रदूषण के विभिन्न स्रोत है। इस शोध के माध्यम से शोधकर्ता प्रदूषकों के स्रोतों का पता लगा कर उन्हें कम करने की रणनीतियां बना रहे हैं। हालांकि इससे पहले के काम ने काले और धूल जैसे एयरोसोल प्रदूषकों का पता लगाया था, लेकिन उनके उत्पत्ति स्रोतों के बारे में पता नहीं लगाया जा सका था। 

ये गहरे कण ग्लेशियर की सतह पर गर्मी को अवशोषित करने के लिए जिम्मेदार हैं, जो इनके पिघलने में तेजी लाते हैं। ऐसे प्रदूषकों की उत्पत्ति का पता लगाने से उनके उत्सर्जन को कम करने या रोकने के लिए रणनीति निर्धारित करने में मदद मिल सकती है। यह प्रतीक सिंह थिंद और उनकी शोध टीम का लक्ष्य था, जिसमें भारत के पंजाब राज्य के इंजीनियरिंग कॉलेज और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सदस्य शामिल थे, जिन्होंने पिछले महीने अपने निष्कर्षों को एटमोस्फियरिक एनवायरनमेंट  पत्रिका में प्रकाशित किया है।  

काले कणों को प्रकाश को अवशोषित करने वाले अशुद्धियों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। ये गहरे काले कण एक ग्लेशियर की सफेदी (अल्बेडो) को बदलने की अपनी क्षमता के लिए जाने जाते हैं। प्रदूषण के कण सफेदी को प्रभावित करते हैं क्योंकि वे आंशिक रूप से ग्लेशियर की श्वेत, चमकदार सतह पर छा जाते है जिसके कारण सौर विकिरण रुक जाता हैं, और ये कण गर्मी को अवशोषित करते हैं जिसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर पिघलते हैं।

अध्ययन में एशियाई, तराई और हिमालय के आसपास के इलाकों के साथ-साथ कारों, ट्रकों, मोटरबाइकों और अन्य वाहनों से पैदा होने वाले प्रदूषण को मुख्य स्रोत के रूप में माना गया है, इसके साथ ही गेहूं के ठूंठ को जलाने की भी पहचान की गई है जिसके कारण क्षेत्र में कणों का उत्सर्जन हो रहा है।

कालिख या काले कणों जैसे वायु प्रदूषक न केवल ग्लेशियरों के लिए बल्कि मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट है कि हर साल, वायु प्रदूषण दुनिया भर में 70 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार है। हानिकारक रसायनों से प्रदूषित हवा के कारण स्ट्रोक, फेफड़ों का कैंसर और हृदय रोग हो सकता है। प्रतीक ने सबसे निकटतम खतरे को लेकर कहा कि कालिख के इन कणों का उत्सर्जन के साथ विभिन्न पर्यावरण के प्रदूषण को कम करने के लिए जरूरी है। काले कणों में कई विषैले प्रदूषक शामिल होते हैं और मनुष्यों के इनके संपर्क में आने से कैंसर पैदा करने वाले (कार्सिनोजेनिक) रोग हो सकते हैं जिनका स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है।

शोधकर्ताओं ने ग्लेशियरों से बर्फ का नमूना लेकर और उनके स्रोत से प्रदूषकों को ट्रैक करने के लिए एक मॉडल का उपयोग किया, जिससे भारतीय पश्चिमी हिमालय में हानिकारक प्रदूषण को कम करने वाले उपायों का पता चलता है।

इन खतरों का सही तरीके से मुकाबला करने और इन प्रदूषकों की उत्पत्ति का पता लगाने के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए, शोधकर्ताओं  ने भारतीय पश्चिमी हिमालय में तीन ग्लेशियरों से बर्फ के नमूने लिए, इस क्षेत्र में शोध को बढ़ाने का उद्देश्य स्थानीय अधिकारियों की सहायता से इन प्रदूषकों के मानवजनित उत्सर्जन को कम करने की योजना बनाना है।

प्रमुख शोधकर्ता और उनकी टीम ने तीन ग्लेशियरों का दौरा करने के लिए दो अलग-अलग क्षेत्रों में अभियान चलाया। टीम ने बर्फ के नमूने एकत्र किए, फिर रासायनिक रचनाओं को निर्धारित करने और प्रदूषकों की पहचान करने के लिए उनका विश्लेषण किया। उन्होंने इस डेटा को एक मॉडल के साथ जोड़ा जो कि प्रदूषण के स्रोतों के स्थान का खुलासा करते हुए वायु प्रदूषकों के मार्ग को ट्रैक करता है।

इस अध्ययन से पता चला है कि सभी काले कण प्रदूषकों की रासायनिक संरचना के पांच मुख्य स्रोतों से मिलान किया जा सकता है जिसमें बायोमास का जलना, वाहन उत्सर्जन, कोयले का जलना, खनिजों की धूल और समुद्री लवण शामिल थे। मॉडल ने अनुमान लगाया कि वनस्पति के जलने, अन्यथा बायोमास और टेलपाइप कार उत्सर्जन के रूप में जाना जाता है, इन ग्लेशियरों पर काले कार्बन प्रदूषण के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार थे। यह खोज महत्वपूर्ण है क्योंकि इस क्षेत्र के निवासियों को खाना पकाने के लिए बायोमास जलाने पर भरोसा करने के लिए जाना जाता है। विशेष रूप से, टीम ने नई दिल्ली जैसे शहरी क्षेत्रों में वाहनों के प्रदूषण के स्रोत की ओर इशारा किया।

यह अध्ययन उत्सर्जन के स्रोतों से प्रत्येक ग्लेशियर के नमूने पर पाए गए काले कणों के यहां तक पहुंचने के बारे में खुलासा करता है। यह कार्य महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन आंकड़ों का उपयोग क्षेत्र में सतह के बर्फ पर गहरे काले कणों के प्रदूषकों के विभिन्न स्रोतों की पहचान करने के लिए किया गया था। प्रतीक ने कहा अध्ययन के निष्कर्ष वैज्ञानिकों और क्षेत्रीय अधिकारियों को इससे निपटने के उपायों को विकसित करने और नई तकनीकों को डिजाइन करने में मदद करेंगे, ताकि मानवजनित उत्सर्जन को कम किया जा सके।

यह शोध इन प्रदूषकों का निरंतर शोध पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर उनके प्रभावों की गहरी समझ हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही साथ ब्लैक कार्बन के स्रोत क्या हैं और हम उनके बारे में क्या कर सकते हैं, इस बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। उत्तर भारत में इस प्रदूषण रहित ग्लेशियरों के पिघलने के प्रभाव को समझना, क्षेत्रीय समुदाय के लिए महत्वपूर्ण है, जो अपने पीने के पानी के लिए इन पर निर्भर हैं। भविष्य के नुकसान को रोकने के लिए स्रोत पर उत्सर्जन को कम करने, सख्त नियम बनाने के लिए समुदाय के सदस्यों, नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों के बीच सहयोग की आवश्यकता है।

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