महानगरों के प्रदूषण पर भी कोरोनावायरस का शिकंजा!

कोरोनावायरस के खतरे को देखते हुए देश के तमाम हिस्सों में सड़कों पर उतरने वाले वाहनों की संख्या में खासी कमी आई है। इसका असर प्रदूषण पर भी दिख रहा है

On: Tuesday 24 March 2020
 
फोटो: विकास चौधरी

पार्थ कबीर
कोरोनावायरस ने हम इंसानों के साथ-साथ प्रदूषण पर भी शिकंजा कसा हुआ है। वायरस का संक्रमण रोकने के लिए हो रहे जनता कर्फ्यू और लॉक डाउन जैसे उपायों से सड़कों पर उतरने वाले वाहनों की तादाद में खासी कमी आई है। इससे खासतौर पर वाहनों के धुएं से होने वाले नाइट्रोजन आक्साइड और पीएम 2.5 के प्रदूषण में गिरावट आई है। केन्द्र सरकार द्वारा संचालित संस्था सफर की ताजा रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।

सफर के शोध के मुताबिक वर्ष 2018 और वर्ष 2019 की तुलना में पुणे में नाइट्रोजन आक्साइड और पीएम 2.5 के प्रदूषण में 45 फीसदी, अहमदाबाद में 50 फीसदी और मुंबई में 45 फीसदी की कमी आई है।

इन शहरों में पांच मार्च से लेकर अभी तक के प्रदूषण के आंकड़ों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया। शोध के मुताबिक पांच मार्च से तेरह मार्च तक दिल्ली में भी नाइट्रोजन आक्साइड के प्रदूषण में गिरावट आने का रुख था। लेकिन, 13 मार्च के बाद 18 मार्च तक इसमें थोड़ी बढ़ोतरी होने का रुख देखने को मिला। हालांकि, 18 मार्च के बाद से इसमें लगातार गिरावट देखने को मिल रही है।

सफर ने जनता कर्फ्यू वाले दिन यानी 22 मार्च को प्रदूषण की स्थिति पर अलग से भी रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक इस दिन दिल्ली की हवा में नाइट्रोजन आक्साइड के प्रदूषण में 20 फीसदी तक कमी देखने को मिली है। सफर के मुताबिक दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में तीन जगहों पर नाइट्रोजन आक्साइड की मात्रा में सबसे ज्यादा कमी दर्ज की गई है। मथुरा रोड पर इस दौरान 46 फीसदी, दिल्ली यूनिवर्सिटी क्षेत्र में 48 फीसदी और नोएडा क्षेत्र में 50 फीसदी तक की कमी नाइट्रोजन आक्साइड के प्रदूषण में रिकार्ड की गई। इसी प्रकार, मुंबई में 30 फीसदी और पुणे में 20 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई। अहमदाबाद में इस दौरान सबसे ज्यादा 53 फीसदी तक की गिरावट आई।

पता हो कि दिल्ली जैसे शहर में होने वाले कुल प्रदूषण में 41 फीसदी के लिए वाहनों के धुएं को जिम्मेदार माना जाता है। इसी के चलते प्रदूषण की रोकथाम के लिए वाहनों की संख्या को सीमित करने जैसे उपायों को शामिल किया जाता रहा है। प्रदूषण रोकने के लिए दिल्ली सरकार की ओर से सम-विषम जैसी योजनाएं भी लागू की जा चुकी हैं। हालांकि, दोपहिया वाहन और टैक्सी में चलने वाले वाहनों को छूट देने के चलते इस बात का सही-सही अंदाजा लगाना मुश्किल रहा है कि इससे प्रदूषण में कितनी गिरावट आई थी।

इससे पूर्व चीन में भी कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा प्रभाव के दिनों में नाइट्रोजन ऑक्साइड के प्रदूषण में भारी कमी आने का खुलासा किया गया था। इस संबंध में नासा की ओर से सेटेलाइट की तस्वीरों को भी जारी किया गया था। वहां भी वाहनों की रफ्तार थमने और फैक्टरियों को बंद करने से नाइट्रोजन आक्साइड के प्रदूषण में खासी कमी आई थी।

यूं तो वाहनों के धुएं में तमाम किस्म के खतरनाक प्रदूषक होते हैं। लेकिन, यह वातावरण में होने वाले नाइट्रोजन आक्साइड और पीएम 2.5 के प्रदूषण के लिए मुख्यतौर पर जिम्मेदार माना जाता है। वातावरण में नाइट्रोजन आक्साइड के प्रदूषण के लिए इसे 60 से 80 फीसदी तक जिम्मेदार माना जाता है जबकि पीएम 2.5 कणों के प्रदूषण के लिए वाहनों के धुएं को 35 से 50 फीसदी तक जिम्मेदार माना जाता है। ये दोनों ही प्रदूषक इंसान की सेहत के लिए बेहद हानिकारक माने जाते हैं।

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