व्यायाम से मस्तिष्क को मिलने वाले फायदे को कम कर सकता है वायु प्रदूषण

अध्ययन के निष्कर्षों का उपयोग व्यायाम के दौरान वायु प्रदूषण से लोगों को होने वाले खतरे को दूर करने के लिए किया जा सकता है

By Dayanidhi

On: Friday 10 December 2021
 

अधिक प्रदूषण वाले इलाकों में व्यायाम करने से फेफड़ों में कणों का जमाव हो सकता है तथा मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है। एक नए अध्ययन में इस बात  की जांच की गई कि अधिक वायु प्रदूषण में शारीरिक गतिविधि से मस्तिष्क में किस तरह का प्रभाव पड़ता है।

अध्ययन से पता चलता है कि अधिक वायु प्रदूषण वाले इलाकों में शारीरिक गतिविधियां करने से इसका अधिक फायदा नहीं होता है। शारीरिक गतिविधियां जैसे जॉगिंग, खेलना आदि व्यायाम से मस्तिष्क को किसी तरह का कोई लाभ नहीं पहुंचता। अध्ययन में जिन चीजों की जांच की गई, उनमें तंत्रिका तंतु की अति-तीव्रताएं शामिल थीं, जो मस्तिष्क के तंत्रिका तंतु और दिमाग में चोट के बारे में बताती हैं।

एरिज़ोना विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ता मेलिसा फर्लोंग ने कहा कि भारी व्यायाम करने से वायु प्रदूषण के संपर्क में वृद्धि हो सकती है। पूर्व अध्ययनों ने मस्तिष्क पर वायु प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभाव भी दिखाए हैं। उन्होंने बताया कि हमने यह भी देखा कि जहां वायु प्रदूषण कम होता है वहां शारीरिक गतिविधि से मस्तिष्क को लाभ होता है।

इसका मतलब यह नहीं है कि लोगों को व्यायाम नहीं करना चाहिए। कुल मिलाकर, मस्तिष्क पर वायु प्रदूषण का प्रभाव मामूली पाया गया। यह उम्र बढ़ने के एक वर्ष के प्रभाव के लगभग आधे के बराबर है, जबकि मस्तिष्क पर तेज व्यायाम के प्रभाव बहुत अधिक थे, ये प्रभाव लगभग तीन साल छोटे होने के बराबर हैं।

अध्ययन में यूके बायोबैंक के एक बड़े बायोमेडिकल डेटाबेस, जिनमें 56 वर्ष की औसत आयु वाले 8,600 लोगों को शामिल किया गया। लोगों को नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर सहित प्रदूषण के सम्पर्क में आने से खतरा हो सकता है। इनका अनुमान भूमि उपयोग से होने वाले वायु प्रदूषण, यातायात, कृषि और वायु प्रदूषण के औद्योगिक स्रोतों के आधार पर एक मॉडल तैयार किया गया।

प्रतिभागियों के वायु प्रदूषण के जोखिम को चार समान समूहों में बांटा गया था, इसमें वायु प्रदूषण के सबसे कम स्तर से लेकर अधिकतम स्तर तक शामिल था।

प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक गतिविधि को एक सप्ताह के लिए एक गति-पहचान उपकरण के साथ मापा जाता था जिसे उन्होंने एक्सेलेरोमीटर कहा था। फिर शोधकर्ताओं ने उनके शारीरिक गतिविधि पैटर्न को इस पर निर्भर किया कि उन्हें कितनी तेजी से शारीरिक गतिविधि करने को मिली, जो कि प्रति सप्ताह 30 मिनट या उससे अधिक नहीं थी।

जिन लोगों को हर हफ्ते सबसे अधिक तेज शारीरिक गतिविधि मिली, उनमें औसतन 800 घन सेंटीमीटर ग्रे मैटर वॉल्यूम था, जबकि उन लोगों में औसतन 790 घन सेंटीमीटर ग्रे मैटर वॉल्यूम था, जिन्होंने कोई तेज व्यायाम नहीं किया था। यहां बताते चले कि मस्तिष्क में ग्रे मैटर का आशय बुद्धि से है। शोधकर्ताओं ने दिखाया कि वायु प्रदूषण के जोखिम ने ग्रे मैटर की मात्रा पर शारीरिक गतिविधि के प्रभावों को नहीं बदला।

हालांकि, शोधकर्ताओं ने पाया कि वायु प्रदूषण के जोखिम ने वाइट मैटर की अति-तीव्रता को देखते हुए तेज शारीरिक गतिविधि के प्रभावों को बदल दिया। मस्तिष्क में वाइट मैटर 'तंत्रिका तंतु' वाले हिस्से को कहा जाता है। उम्र, लिंग और अन्य सहसंयोजकों को जोड़ने के बाद, शोधकर्ताओं ने पाया कि तेज शारीरिक गतिविधि ने कम वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में वाइट मैटर की अधिकता को कम कर दिया था, लेकिन अधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में ये लाभ नहीं पाए गए।

शोधकर्ताओं ने कहा कि इस पर अधिक शोध करने की आवश्यकता है। लेकिन यदि हमारे निष्कर्षों को अपनाया जाता है, तो सार्वजनिक नीति का इस्तेमाल व्यायाम के दौरान वायु प्रदूषण से लोगों के खतरे को दूर करने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, चूंकि वायु प्रदूषण की एक सबसे अधिक मात्रा यातायात से आती है, भारी यातायात से दूर रास्तों पर दौड़ने या साइकिल चलाने को बढ़ावा देना अधिक फायदेमंद हो सकता है।

यह अध्ययन केवल एक वर्ष के दौरान होने वाले वायु प्रदूषण के दौरान किया गया है और वायु प्रदूषण का स्तर साल-दर-साल अलग-अलग हो सकता है। यह शोध अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के मेडिकल जर्नल, न्यूरोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

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