पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण से इतर जमीनी ओजोन प्रदूषण एक नया खतरा : सीएसई

2020 स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट में कहा गया है कि ओजोन के कारण मृत्यु की आयु-मानकीकृत दर भारत में सबसे अधिक है। 

By DTE Staff

On: Friday 03 June 2022
 
Illustration: Tarique Aziz

वर्ष 2022 इतिहास में सबसे ज्यादा गर्म रहने वाले वर्षों में से एक है। इस साल ही व्यापक रूप से जमीनी ओजोन प्रदूषण देखा गया है जिससे दिल्ली-एनसीआर की हवा अत्यधिक जहरीली हो गई है। आमतौर पर गर्म दिन मानकों से अधिक ओजोन स्तर को रिकॉर्ड करते है जबकि इस बार गर्मी में स्टेशनों का प्रसार काफी बड़े लैंडस्केप पर है। यदि छह बड़े महानगरों की बात की जाए तो दिल्ली-एनसीआर के बाद इनमें मुंबई दूसरे स्थान पर है, उसके बाद कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई और बंग्लुरु शामिल हैं। वहीं,अन्य महानगरों की तुलना में चेन्नई और बंग्लुरू में कम आवृत्ति के बावजूद अवधि अधिक रिकॉर्ड की गई है।

यह जानकारी विश्व पर्यावरण दिवस से पहले सेंटर फार साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) की ओर से जारी की गई जो कि सीएसई में अर्बन लैब की वायु गुणवत्ता ट्रैकर पहल का हिस्सा है।

सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा “इससे पहले कि हम पार्टिकुलेट मैटर के प्रदूषण की समस्या को नियंत्रित कर पाते जमीनी स्तर के जहरीले ओजोन का खतरा हमारे सिर पर मंडराने लगा है। चेतावनी के संकेतों के बावजूद इस समस्या ने पर्याप्त नीति या जनता का ध्यान आकर्षित नहीं किया है।अपर्याप्त निगरानी, ​​सीमित डेटा और प्रवृत्ति विश्लेषण के अनुचित तरीकों ने इस बढ़ते जहरीले जोखिम की समझ को कमजोर कर दिया है। उन्होंने कहा कि "अगर इस समस्या के लिए जल्दी समाधान के कदम नहीं उठाए गए तो यह आने वाले वर्षों में एक गंभीर स्वास्थ्य संकट के रूप में सामने आ सकता है।"

ओजोन प्रदूषण को लेकर स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े भी जुटते जा रहे हैं। 2020 स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर रिपोर्ट में कहा गया है कि ओजोन के कारण मृत्यु की आयु-मानकीकृत दर भारत में सबसे अधिक है। जमीनी ओजोन के मौसमी आठ घंटे की दैनिक अधिकतम सांद्रता ने 2010 और 2017 के बीच भारत में सबसे अधिक लगभग 17 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की है। इसकी रोकथाम के लिए विभिन्न शहरों और क्षेत्रों में क्या हो रहा है, आज इसकी गहरी समझ की आवश्यकता है।

जमीनी स्तर के ओजोन की जहरीली प्रकृति के कारण ओजोन के लिए राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक केवल अल्पकालिक एक्सपोजर (एक घंटे और आठ घंटे का औसत) के लिए निर्धारित किया गया है। यानी इसे एक घंटे से लेकर आठ घंटे के औसत के आधार पर मापा जाता है। यह देखने के लिए इसकी रोकथाम के लिए कितना अनुपालन किया जा रहा है उन दिनों की संख्या रिकॉर्ड की जाती है जिसमें ओजोन अपने सामान्य मानकों से अधिक रहा है। एक वर्ष में 98 फीसदी समय जमीनी ओजोन प्रदूषण को अपने सामान्य मानकों की हद में रहने के लिए मानक तय किए गए हैं। यानी इस प्रदूषण की रोकथाम इस तरह करनी है कि एक वर्ष में दो फीसदी दिन (आठ दिन से अधिक नहीं) ही ऐसे हो सकते हैं जब ओजोन प्रदूषण अपने सामान्य मानक से अधिक जाएं। यह भी तय किया गया है कि लगातार दो दिन तक ओजोन प्रदूषण नहीं होना चाहिए। 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) वैश्विक अनुभव से पता चलता है कि समुचित उपाय का अभाव है। खासतौर से पश्चिमी देशों में पार्टिकुलेट मैटर पर नियंत्रण किया गया है लेकिन इसी दर्मियान नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) और ओजोन की समस्या बढ़ गई है। वहां ओजोन प्रदूषण को कम करने के लिए बेंचमार्क सेट किए जा रहे हैं जबकि भारत में अभी ओजोन प्रदूषण कम करने को लेकर कोई टार्गेट नहीं किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम में भी पार्टिकुलेट मैटर को कम करने का टार्गेट रखा गया है लेकिन नाइट्रोजन ऑक्साइड और पेट्रोल पंप, वाहन, पावर प्लांट के उत्सर्जन से निकलने वालेवोलाटाइल ऑर्गेनिक कंपाउंड को कम करने का टार्गेट नहीं रखा गया है। 

वहीं सीएसई के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक अविकल सोमवंशी ने कहा “केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा दैनिक एक्यूआई  निर्धारित करने के लिए शहर के सभी स्टेशनों के डेटा का औसत निकालने का मानक अभ्यास जमीनी स्तर के ओजोन के लिए काम नहीं करता है क्योंकि यह एक अल्पकालिक और अति-स्थानीयकृत प्रदूषक है।

सीएसई ने कहा कि इसका नियंत्रण बेहद जरूरी है क्योंकि ओजोन प्रदूषण के कारण कई स्वास्थ्य के गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं। इससे अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मनरी डिजीज हो सकता है। खासतौर से ऐसे बच्चों जिनके अविकसित फेफड़े हैं या फिर वृद्धों को इसके गंभीर दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। यह क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस या काफी तीव्रता वाले अस्थमा अटैक का कारण बन सकता है। 

दिल्ली-एनसीआर विश्लेषण के मुख्य बिंदु

हीटवेव : जमीनी ओजोन को वृहद भौगोलिक स्तर पर बढ़ाने के लिए हीटवेव एक प्रमुख कारक बना। इस साल मार्च में ही जमीनी ओजोन का प्रसार शुरू हो गया था जो कि अप्रैल में बेहद खतरनाक रहा। ओजोन का प्रसार वर्ष में कभी भी हो सकता है लेकिन यह एक छोटे से पॉकेट में घटित होता है। इसके वृहद प्रसार के लिए गर्मी और जबरदस्त धूप वाले मौसम की शर्त जुड़ी होती है, जो कि गर्मीयों के समय खासतौर से मई में होता है। लेकिन इस वर्ष मार्च में ही ओजोन का प्रसार शुरू हो गया।

दिल्ली-एनसीआर में बीते चार वर्षों में सबसे ज्यादा ओजोन प्रदूषण का प्रसार हुआ। मार्च-अप्रैल में यह रिकॉर्ड किया गया। सभी 16 स्टेशन पर मार्च-अप्रैल में ओजोन अपने मानक स्तर से अधिक पाया गया। यदि बीते वर्ष से तुलना करें तो मार्च-अप्रैल में यह 33 फीसदी ज्यादा रिकॉर्ड किया गया। 2020 में लॉकडाउन के कारण जमीनी ओजोन को पैदा करने वाली गतिविधियां थमी हुई थीं और 10 स्टेशनों पर इसमें कमी पाई गई थी। हालांकि एक चीज यह देखी गई कि इस गर्मी में इसका प्रसार भले ही ज्यादा भौगोलिक सीमा पर हुआ लेकिन इसकी अवधि कम हुई है। मसलन यदि औसत आठ घंटे के मानक के हिसाब से इसका रोजाना औसत 4.4 घंटे अधिक रहा हालांकि, यह बीते वर्ष दर्ज 4.6 के मुकाबले कम है। 

नई दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली सबसे ज्यादा जमीनी ओजोन से त्रस्त रहे। दिल्ली के बाहर ग्रेटर नोएडा सबसे बड़ा हॉटस्पॉट रहा। वहीं, पूर्वी और केंद्रीय दिल्ली में काफी खराब ट्रेंड देखने को मिल रहा है। ग्राउंड लेवल ओजोन हॉटस्पॉट वहां ज्यादा हैं जहां नाइट्रोजन ऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर कम है।  

लॉकडाउन के मुकाबले घंटे का जमीनी ओजोन स्तर 23 फीसदी बढ़ गया है। 

 

Subscribe to our daily hindi newsletter