नई तकनीक: खेत में ही बनेगी पराली से खाद
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री ने कहा, मशीनों की खरीद के लिए जितनी सब्सिडी दी जा रही है, उतने ही पैसे में पूरी पराली को डी-कंपोज किया जा सकता है
On: Wednesday 16 September 2020
पराली से होने वाले प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा ने बायो डी कंपोजर नामक तकनीक विकसित की है। इस तकनीक की मदद से खेत में ही पराली से खाद बना ली जाएगी। 16 सितंबर को दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने इसका डेमोस्ट्रेशन देखा। दिल्ली सरकार के अनुसार, इस तकनीक की मदद से खेतों में पराली जलाने की समस्या का समाधान होने की उम्मीद है। गोपाल राय ने कहा कि दिल्ली के किसानों को दिल्ली सरकार सभी सुविधाएं उपलब्ध कराएगी, जबकि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को वहां की सरकारें सुविधाएं उपलब्ध कराएंगी। इसके लिए हम राज्य सरकारों, केंद्र सरकार और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से बात करेंगे।
गोपाल राय ने कहा कि दिल्ली के अंदर पराली बहुत कम पैदा होती है, लेकिन पंजाब के अंदर 20 मिलियन टन पराली पैदा होती है। पिछले साल वहां करीब 9 मिलियन टन पराली जलाई गई। हरियाणा के अंदर करीब 7 मिलियन टन पराली पैदा होती है, जिसमें से 1.23 मिलियन टन पराली जलाई गई थी। इस वजह से दिल्ली के लोगों को प्रदूषण का सामना करना पड़ा था।
गोपाल राय ने कहा कि पिछले दिनों हमारी पूसा के डायरेक्टर से मुलाकात हुई थी। उन्होंने बताया कि हमने एक टेक्नोलॉजी विकसित की है। अगर डी-कंपोजर के माध्यम से खेत में ही पराली पर केमिकल का छिड़काव किया जाए, तो वहीं पर पराली खाद बन सकती है। आज उसी का डिमोस्ट्रेशन देखने हम यहां आए हैं।
गोपाल राय के अनुसार, हम चाहते हैं कि इसके छिड़काव में जो भी खर्चा आए, वह सरकार उठाए। उन्होंने आगे कहा कि जितना मशीनों की खरीद के लिए सब्सिडी दी जा रही है, उतने ही पैसे में पूरी पराली को डी-कंपोज किया जा सकता है। इसकी सफलता के बाद किसानों के ऊपर जो आर्थिक बोझ है, वह खत्म हो जाएगा। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हम पराली को लेकर केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों से बात करेंगे। इसमें केंद्र सरकार की अहम भूमिका होगी। उन्होंने आश्वास्त किया कि दिल्ली में इस योजना पर जो भी लागत आएगी, उसका पूरा खर्च सरकार उठाएगी।