बैठे ठाले: कार नामा

“एक मैं कार नहीं चलाऊंगा तो क्या वायु-प्रदूषण खत्म हो जाएगा? लोगों की भीड़ का तो कुछ करो”

By Sorit Gupto

On: Friday 05 January 2024
 

सोरित / सीएसईपिछले महीने मुहल्ले के मोटर-ड्राइविंग स्कूल से उन्होंने ड्राइविंग सीख ली थी। कहां वह गाड़ी जिसमें उन्होंने ड्राइविंग सीखी और कहां यह उनकी अपनी चमचमाती कार! ड्राइविंग स्कूल की गाड़ी की सीट मैली थी, एसी काम नहीं करता था, ऊपर से साथ बैठे इंस्ट्रक्टर के शरीर से आती बदबू! डिसगस्टिंग!

आज उनकी नई-चमचमाती कार सामने खड़ी थी। दरवाजा खोल कर जब वह अंदर घुसे तो यह एकदम नई दुनिया थी। उन्होंने एसी ऑन किया और रेडियो चला दिया। सड़क की धूल, ट्रैफिक के शोर और बाहर की उमस उन्हें अब छू भी नहीं सकती थी। कार के अंदर की भीनी-भीनी महक, ठंड और डोलबी साउंड का नशा धीरे-धीरे उन पर तारी हो रहा था कि अचानक उन्हें एक तेज झटका लगा। उनकी कार का एक पहिया सड़क में कीचड़ से भरे गढ्ढे में घुस गया जिससे वह उछल गई।

“सड़कों पर इतने गढ्ढे क्यों हैं? सरकार इसका कुछ करती क्यों नहीं? सब के सब चोर और भ्रष्टाचारी!” उन्होंने सोचा, “ओह! बेचारे पहिए को न जाने कितना दर्द हुआ होगा!”

उनकी कार एक बस स्टॉप के सामने से गुजरी। उन्होंने बस का इंतजार करते लोगों की ओर देखा और मन ही मन सोचा कि अब उन्हें कभी किसी बस के लिए इंतजार नहीं करना होगा। बाहर बारिश शुरू हो चुकी थी। वह एक फ्लाईओवर के नीचे से गुजरे जहां बारिश से बचने के लिए कई स्कूटर, बाइक वालों को देखकर उन्हें हंसी आ गई। हालांकि अभी हफ्ते-दस दिन पहले ही बारिश से बचने के लिए वह भी इसी तरह एक फ्लाईओवर के नीचे खड़े थे।

उन्हें अचानक रोने को मन किया। उन्हें मन किया कि वह अपनी कार से पूछें, “कहां थीं तुम अब तक!” उनके ठीक सामने एक भीड़ से भरी हुई बस जा रही थी। उन्हें बस पर गुस्सा आ गया। सड़क को अगर यह भारी-भरकम बसें घेर लेंगी तो हम कार वाले कहां जाएंगे?

उन्हें बस की भीड़ पर गुस्सा आ गया, जहां देखो गरीब और गंदे रिक्शा-ठेला और पैदल चलते लोग! इतने लोगों को शहरों में नहीं आने देना चाहिए। इन्हीं लोगों से हमारे शहरों में गंदगी है, सड़कों में जाम है। विदेशों में हैं यह ठेला-रिक्शा? इन्हीं लोगों के कारण हम तरक्की नहीं कर पा रहे हैं।

तभी उनके रेडियो में खबरें आने लगीं जिसमें वायु-प्रदूषण का जिक्र था और लोगों को प्राइवेट कार को छोड़कर पब्लिक-ट्रांसपोर्ट अपनाने के लिए कहा जा रहा था। उन्होंने रेडियो को बंद कर दिया।

“जलते हैं यह सब के सब हमारी तरक्की से।” वह बुदबुदाए, “एक मैं कार नहीं चलाऊंगा तो क्या वायु-प्रदूषण खत्म हो जाएगा? लोगों की भीड़ का तो कुछ करो। सब वोट बैंक की राजनीति है। भेज पाओगे उन्हें वापस उनके गांव? हमारे शहरों ने कोई ठेका नहीं ले रखा है सबको रोजगार देने का। जो ज्यादा बच्चे पैदा कर रहे हैं उन्हें हम पड़ोसी देश क्यों नहीं भेज देते? क्यों हैं वह हमारे देश में? क्यों नहीं वह अपने देश चले जाते?”

उनका गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था। उनकी कार उनके घर जाने वाली संकरी सड़क पर जाम में फंस गई थी।

उन्होंने तेजी से हॉर्न बजाया। उन्हें मन किया कि वह इस भीड़ को रौंदते हुए चले जाएं। लेकिन जाने क्यों उन्हें अचानक एक डर ने घेर लिया। उन्हें लगा कि वह अपनी कार में एकदम अकेले हैं और चारों ओर से वह दुश्मनों से घिर गए हैं। उनको लगा कि कार के अंदर उनका दम घुटने लगा है। उन्होंने पूरी ताकत से कार के दरवाजे को खोला और सड़क पर आ गए। वह जाम के बीच से रास्ता बना कर दौड़ने लगे उन्हें लगा कि उन पर कभी भी हमला हो सकता है। सामने एक बस खड़ी थी। हांफते हुए वह बस में चढ़े और उसकी भीड़ में छुप गए।

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