दिल्ली में क्यों हो रही है स्मॉग टावर्स लगाने में देरी, सुप्रीम कोर्ट ने जताई हैरानी

दिल्ली में स्मॉग टावर्स लगाने में देरी क्यों हो रही है| इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताते हुए 21 जुलाई को एक आदेश जारी किया है

By Lalit Maurya, Susan Chacko

On: Thursday 23 July 2020
 

दिल्ली में स्मॉग टावर्स लगाने में देरी क्यों हो रही है|  इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताते हुए 21 जुलाई को एक आदेश जारी किया है, जिसमें इस मामले पर रिपोर्ट सबमिट करने के लिए कहा गया है| गौरतलब है कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 13 जनवरी को एक आदेश जारी किया था| जिसमें तीन महीने के भीतर स्मॉग टॉवर लगाने का निर्देश दिया गया था।

इस उद्देश्य के लिए एक समझौता किया जाना था। इसपर केंद्र और दिल्ली सरकार ने एक हलफनामे द्वारा यह सूचित किया था कि इन टावर्स को लगाने के लिए  स्थानों का चुनाव हो चुका है। लेकिन तीन महीनों के बाद भी न तो समझौते किया गया और न ही इसकी जरुरी ड्राइंग प्राप्त की गई थी|

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) और दिल्ली सरकार को निर्देश दिया है कि यदि ड्राइंग अब तक एकत्र नहीं की गई हैं तो उन्हें जल्द से जल्द कलेक्ट किया जाए। साथ ही सात दिनों के अंदर समझौते पर हस्ताक्षर किये जाए| और इसपर हो रही कार्यवाही पर एक रिपोर्ट कोर्ट में प्रस्तुत की जाए|

क्या हैं यह स्मॉग टावर्स

स्मॉग टावर दुनिया में वायु प्रदूषण से निपटने की एक नई तकनीक है| जिसमें लगे एग्जास्ट फैन एक ओर से दूषित हवा को अंदर खींचते हैं और उसे साफ़ हवा में बदलकर दूसरी ओर से बाहर छोड़ते हैं। इसे एक तरह का बहुत बड़ा एयर प्यूरीफायर कह सकते हैं| हालांकि एक टावर कितनी हवा को साफ़ करेगा यह उसके साइज पर निर्भर करता है|

गौरतलब है कि दिल्ली के भीड़भाड़ भरे इलाके लाजपत नगर में 20 फीट ऊंचा स्मॉग टावर को लगाया गया था| यह टावर इलाके की 500 से 750 मीटर के दायरे की हवा को शुद्ध कर सकता है| इस टावर की मदद से प्रतिदिन ढाई से 6 लाख क्यूबिक मीटर हवा साफ की जा सकती है| इस टावर की कीमत करीब 7 लाख रुपये है और इसको चलाने पर करीब 30 हजार रुपये हर महीने का खर्च आता है| इसे सौर ऊर्जा से भी चलाया जा सकता है|

क्यों जरुरी है दिल्ली के लिए यह स्मॉग टावर्स

देश की राजधानी दिल्ली जोकि दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से भी एक है| यहां की हवा इतनी जहरीली हो चुकी है कि 25 नवंबर 2019 को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में प्रदूषण पर बयान देते हुए कहा था कि “दिल्ली नरक से भी बदतर” हो गई है| विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा 2018 में जारी सबसे प्रदूषित शहरों के डेटाबेस के अनुसार दिल्ली में पीएम 10 का स्तर 292 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर और पीएम 2.5 का स्तर 143 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर मापा गया था| जोकि डब्लूएचओ द्वारा तय मानकों से कई गुना ज्यादा है| यह माप वार्षिक औसत के आधार पर मापी गई थी| जबकि सर्दियों में और दिवाली के आसपास तो इसका स्तर इससे भी कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है| वहीं सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली देश के तीन सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है|

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी वायु प्रदूषण को स्वास्थ्य के लिए एक बड़े खतरे के रूप में चिन्हित किया है| आलम यह है कि भारत सहित दुनिया की करीब 90 फीसदी आबादी दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है| हर साल वायु प्रदूषण के कारण करीब  88 लाख लोगों की मौत हो जाती है| वहीं इसके चलते शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का स्तर भी गिरता जा रहा है| जिसके कारण हिंसा, अवसाद और आत्महत्या के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। जबकि हाल ही में किए गए एक शोध से पता चला था कि प्रदूषित हवा में सांस लेने से सांस संबंधी विकारों का खतरा बढ़ जाता है, जो कोरोनोवायरस के रोगियों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है|

गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने वित्त वर्ष 2020-2021 के लिए 65,000 करोड़ रुपये के बजट का प्रस्ताव रखा था लेकिन इसमें पर्यावरण व प्रदूषण में सुधार के लिए लिए कुल बजट के आधे फीसदी से भी कम का प्रस्ताव रखा है। केजरीवाल सरकार ने भी अपने बजट भाषण में यह दोहराया था कि सरकार के प्रयासों से  बीते वर्षों में वायु प्रदूषण में 25 फीसदी की कमी आई है और अगले पांच सालों में दो-तिहाई कम करने का लक्ष्य तय किया गया था। लेकिन केवल 52 करोड़ के बजट में यह कैसे संभव होगा यह सोचने का विषय है|

ऐसे में दिल्ली को वायुप्रदूषण के खतरे से बचाने के लिए यह स्मॉग टावर्स एक कारगर उपाय हो सकता है| जिससे इसपर लगाम लगाई जा सकती है|

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