सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड से बने सल्फेट से वातावरण में फैलती है धुंध व कोहरा

एक अध्ययन में कहा गया है कि धुंध और कोहरे को कम करने के लिए हमें प्रदूषक तत्व एसओ2 और एनओएक्स को रोकना होगा, वर्ना यह तेजाबी बारिश (एसिड रेन) का रूप ले सकती है

By Dayanidhi

On: Saturday 28 December 2019
 
Photo: Vikas Choudhary

सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) के ऑक्सीकरण से हवा में सल्फेट बनता है, जो वायुमंडल में धुंध और वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।

सल्फर डाइऑक्साइड और हवा में बने (एयरबोर्न) सल्फेट बनना सामान्य प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में विशेष रूप से, सल्फेट उत्पादन में नाइट्रोजन ऑक्साइड की भूमिका स्पष्ट नहीं है। सल्फेट प्रदूषण सीधे उत्पन्न नहीं होता है, जबकि नाइट्रोजन ऑक्साइड वाहनों, कोयला, डीजल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न होता है। एक अध्ययन के दौरान यह पता चला है। यह अध्ययन नेचर जियोसाइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। 

यह अध्ययन कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टैक्नोलॉजी की टीम ने मिल कर किया। इस टीम का नेतृत्व प्रोफेसर वाईयू जियानजेन ने किया। अध्ययन में पाया गया कि नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स) कम होने की परिस्थितियों में एनओएक्स हाइड्रॉक्सिल रेडिकल के साइक्लिंग को उत्प्रेरित करता है, जो एसओ2 का एक प्रभावी ऑक्सीडेंट है, और इस प्रकार यह सल्फेट का निर्माण करता है। धुंध-कोहरे की स्थिति में एनओएक्स बहुत अधिक मात्रा में होता है। एनओएक्स, एसओ2 के प्रमुख ऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है और इस प्रकार सल्फेट के निर्माण को बढ़ाता है।

इन निष्कर्षों से स्पष्ट है कि अत्यधिक प्रदूषित धुंध-कोहरे की स्थिति में सल्फेट के स्तर को कम करने के लिए सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2) और एनओएक्स दोनो के उत्सर्जन पर नियंत्रण आवश्यक है। प्रो यू ने कहा कि नीति निर्माताओं को एनओएक्स के उत्सर्जन को नियंत्रित करने पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि घने धुंध-कोहरे के लिए सल्फेट की अहम भूमिका है, एसओ 2 और एनओएक्स के उत्सर्जन से यह बनता है।

चूंकि सल्फेट प्रमुख घटकों में से एक है जो धुंध को बढ़ावा देने और इसकी वजह से एसिड वर्षा हो सकती है। इस अध्ययन ने प्रदूषण, धुंध-कोहरे को फैलाने वाले प्रमुख प्रदूषक को नियंत्रित करने के अधिक प्रभावी उपायों का आधार तैयार किया है। इससे हवा की गुणवत्ता में सुधार होगा और समग्र रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य और पारिस्थितिक प्रणालियों का बेहतर संरक्षण होगा।

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