उज्ज्वल त्योहारों का स्याह पक्ष: प्रकाश प्रदूषण में इजाफा कर रहे क्रिसमस, रमजान, दीवाली जैसे उत्सव

By Lalit Maurya

On: Wednesday 23 August 2023
 
कृत्रिम प्रकाश की बदौलत रात में जगमगाती धरती; फोटो: नासा अर्थ ओब्सर्वेटरी

एक नई रिसर्च कै मुताबिक क्रिसमस, रमजान, दीवाली और चीनी नया साल जैसे उत्सव रात के समय प्रकाश की तीव्रता में भिन्नता लाते हैं, जो उत्सव के आधार पर अलग-अलग हो सकती है।

देखा जाए तो यह अध्ययन समाज में प्रकाश प्रदूषण के स्तर और सांस्कृतिक गतिविधियों के बीच अंतर्संबंधों को प्रकट करता है। अध्ययन के अनुसार इसका प्रभाव अब केवल शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं हैं। इसका कहीं न कहीं असर दूसरे जीवों पर भी पड़ रहा है।

यह अध्ययन ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के शोधकर्ताओं के सहयोग से इंस्टीट्यूट डी सिएनसिस डेल मार (आईसीएम-सीएसआईसी) और म्यूजियो नैशनल डी सिएनसियास नेचुरल्स (एमएनसीएन-सीएसआईसी) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल पीपल एंड नेचर में प्रकाशित हुए हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने त्योहारों पर होते प्रकाश प्रदूषण को समझने के लिए 2014 से 2019 की उपग्रहों से प्राप्त छवियों की मदद ली है। इनकी मदद से उन्होंने रात में रोशनी की तीव्रता से जुड़ी व्यापक जानकारियों को एकत्र किया है।

रिसर्च के मुताबिक हमारी निर्धारित दिनचर्या और सामाजिक प्रवृत्ति प्रकाश प्रदूषण को बढ़ा सकती है। यह बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों और समारोहों के दौरान विशेष रूप से अनुभव की जा सकती है। इसमें रात के समय चलने वाले उत्सवों के दौरान होने वाला कृत्रिम प्रकाश का उपयोग शामिल होता है। जैसा कि क्रिसमस, रमजान, दिवाली, या चीनी नव वर्ष को होने वाले समारोह में देखने को मिलता है।

त्योहारों से मेल खाता प्रकाश प्रदूषण का पैटर्न

शोधकर्ताओं ने इस बात के सबूत प्रस्तुत किए हैं, जो दर्शाते हैं कि यह महत्वपूर्ण घटनांए शहरी प्रकाश प्रदूषण में होने वाली वैश्विक वृद्धि में योगदान करती हैं। विश्लेषण से पता चला है कि ईसाई देशों में क्रिसमस के दौरान (दिसंबर-जनवरी) प्रकाश प्रदूषण अपने चरम पर होता है, जबकि मुस्लिम देशों में यह रमजान (मई से जुलाई के बीच) को और हिंदू देशों में दिवाली (अक्टूबर-नवंबर) के साथ मेल खाता है। वहीं चीन और वियतनाम के मामले में, प्रकाश प्रदूषण का चरम पर होना अस्थाई रूप से नए साल के जश्न (जनवरी-फरवरी) के साथ मेल खाता है।

आईसीएम-सीएसआईसी और इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर फ्रांसिस्को रामिरेज का कहना है कि, "यह समझना कि इंसानी गतिविधियां प्रकाश प्रदूषण को कैसे प्रभावित करती हैं, इसके प्रभाव का आंकलन करने के साथ इसके संभावित समाधान डिजाईन करने के लिए महत्वपूर्ण है।"

उनके मुताबिक जहां पिछले शोधों ने देशों के आर्थिक विकास को उनके प्रकाश प्रदूषण के पैटर्न से जोड़ा है, वो सामान्य तौर पर दर्शाता है कि जो देश सबसे ज्यादा संपन्न हैं वो सबसे अधिक प्रदूषण करते हैं। हालांकि यह पहला मौका है जब शोधकर्ताओं ने इसका आंकलन किया है कि कुछ सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियां कैसे वैश्विक स्तर पर प्रकाश प्रदूषण के पैटर्न को प्रभावित करती हैं।

पिछले कुछ दशकों में इंसानी विकास के साथ प्रकाश प्रदूषण की समस्या भी बढ़ी है। तकनीकी विकास के साथ कृत्रिम प्रकाश के रंगों और तीव्रता में भी बदलाव आया है, जो हम मनुष्यों के साथ-साथ दूसरे अन्य जीवों को भी प्रभावित कर रहा है। शोध के मुताबिक जैसे-जैसे आर्थिक विकास और आबादी में विस्तार होगा, यह प्रभाव प्राकृतिक पर्यावरण के लिए और भी अधिक हानिकारक होते जाएंगे। जो शहरों की सीमाओं से परे भी अपना प्रभाव डालेंगें।

गौरतलब है कि इससे पहले यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के वैज्ञानिकों द्वारा बढ़ते प्रकाश प्रदूषण पर किए एक अन्य अध्ययन में सामने आया है कि दुनिया में बढ़ता प्रकाश प्रदूषण जीवों के देखने की क्षमता को विचित्र तरह से प्रभावित कर रहा है।

इस बारे में आईसीएम-सीएसआईसी से जुड़ी शोधकर्ता डॉक्टर मार्टा कोल का कहना है कि, "त्योहारों और कई लोगों के इकट्ठा होने के साथ रात के समय की गई रोशनी की घटनाएं पूरे वर्ष प्रकाश की तीव्रता के सामान्य पैटर्न को बदल देती हैं। यह विभिन्न प्रजातियों को प्रभावित कर सकता है।" "इस तरह की परिस्थितियां कई प्रजातियों को प्रभावित करती हैं जो कृत्रिम प्रकाश की ओर आकर्षित होती हैं। इसके अक्सर हानिकारक परिणाम होते हैं।"

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह अध्ययन मानव उत्सवों से जुड़े प्रकाश प्रदूषण की निरंतर निगरानी के महत्व पर जोर देता है। साथ ही कृत्रिम प्रकाश के नकारात्मक प्रभावों को कम करने और उसके बेहतर उपयोग के लिए विश्वव्यापी रणनीतियों की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। यह जरूरी है कि जहां तक मुमकिन हो रात में कृत्रिम प्रकाश का उपयोग कम से कम किया जाए। साथ ही तीव्रता को सीमित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।

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