वैश्विक प्लास्टिक समझौता: कहीं ढोंग तो नहीं कर रहे हैं ज्यादातर देश

प्रस्तावित वैश्विक प्लास्टिक समझौते पर पहले दौर की वार्ता को प्लास्टिक इंडस्ट्री ने हाईजैक कर लिया, क्योंकि संबंधित देश निजी हित के ऊपर नहीं उठ पाए

By Siddharth Ghanshyam Singh

On: Wednesday 22 February 2023
 
2060 तक प्लास्टिक कचरे के तीन गुना होने का अनुमान है। अनुमानित कचरे का दो-तिहाई हिस्सा पैकेजिंग, उपभोक्ता उत्पादों और वस्त्रों से बना होने की उम्मीद है (फोटो: विकास चौधरी)

2024 तक प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए 2 दिसंबर, 2022 को पुंटा डेल एस्टे (उरुग्वे) में बैठक आयोजित हुई। इस मसले पर वैश्विक संधि तैयार करने के लिए जिम्मेदार वार्ताकारों के बीच यह इस प्रकार की पहली बैठक थी।

28 नवंबर से शुरू हुई इस पांच दिवसीय अंतर-सरकारी वार्ता समिति की बैठक में शामिल देशों ने अलग-अलग स्वरों में बात की और अपने व्यक्तिगत हितों को तवज्जो दी।

दूसरी तरफ, बैठक में प्लास्टिक इंडस्ट्री का मजबूत प्रतिनिधित्व देखा गया, जिसने इस संधि का मुखर विरोध किया। गौरतलब है कि 28 फरवरी से 2 मार्च, 2022 के बीच नैरोबी (केन्या) में आयोजित पांचवें संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण असेम्बली (यूएनईए) के दौरान इस संधि पर संयुक्त राष्ट्र के 195 सदस्य देशों ने सहमति व्यक्त की थी।

इस वार्ता प्रक्रिया में क्षेत्रीय समूहों के सदस्य-देशों के साथ-साथ ऐसे समूह (मेजर ग्रुप्स) भी शामिल थे जिनमें नागरिक समाज और अन्य हितधारक थे। इसके अलावा इस वार्ता में ऐसे पर्यवेक्षक (व्यक्ति और संस्थाएं) भी शामिल थे जो संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तहत नामांकित तो नहीं थे लेकिन इस समझौते में उनकी भी हिस्सेदारी थी।

आश्चर्यजनक रूप से उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने सदस्य-देशों के प्रतिनिधिमंडलों और मेजर ग्रुप्स के हिस्से के रूप में इस कार्यक्रम में भाग लिया। इंडस्ट्री जगत ने क्षेत्रीय समूह की बैठकों में भी भाग लिया, जो अलग-अलग आयोजित किए गए थे और जिसमें सदस्य-देशों ने इस मुद्दे पर अपना रुख तय किया था।

इनमें से अधिकांश बैठकें बंद कमरे में होती थीं और अक्सर नागरिक समाज को इसमें भागीदारी की अनुमति नहीं होती थी। उदाहरण के लिए, एशिया-पैसिफिक क्षेत्र ने अपनी क्षेत्रीय बैठकों में नागरिक समाज संगठनों को भागीदारी नहीं करने दी लेकिन इंडस्ट्री जगत को अनुमति थी।

यूके स्थित गैर-लाभकारी एनवायरमेंट इन्वेस्टीगेशन एजेंसी की ओसियन कैंपेन लीडर क्रिस्टीना डिक्सन कहती हैं, “प्लास्टिक प्रदूषण से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार कंपनियों को ऐसी बैठकों में भाग लेने की अनुमति देना जहां प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ बातें होनी है, गलत है।

हम प्लास्टिक उत्पादकों को इस प्रक्रिया पर नियंत्रण रखने की अनुमति नहीं दे सकते, जबकि दूसरी ओर कमजोर समुदाय इस बात के लिए संघर्ष कर रहे हैं कि उनकी आवाज सुनी जाए।”

बैठक में पहला कार्यक्रम मल्टी-स्टेकहोल्डर फोरम से जुड़ा था। इसका उद्देश्य पर्यावरण न्याय समूहों, कचरा बीनने वालों, सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों, पर्यावरणविदों और पेट्रोकेमिकल उद्योग के बीच बातचीत के लिए एक कॉमन ग्राउंड तलाशना था।

यूएस स्थित गैर-लाभकारी ग्लोबल एलायंस फॉर इनसिनरेशन अल्टरनेटिव्स के साइंस एंड पालिसी निदेशक, नील टांगरी कहते हैं, “यह असफलता का एक नुस्खा है। इस संधि प्रक्रिया को तम्बाकू नियंत्रण पर फ्रेमवर्क कन्वेंशन का पालन करना चाहिए था, जिसने तम्बाकू उद्योग को अपनी वार्ताओं से बाहर कर दिया। प्लास्टिक/पेट्रोकेमिकल उद्योग समाधान का हिस्सा नहीं है, बल्कि समस्या है।”

यह भेदभाव यहीं खत्म नहीं हुआ। आमतौर पर संयुक्त राष्ट्र की बैठकों में सदस्य देशों, मेजर ग्रुप्स और पर्यवेक्षकों को अपने विचार प्रकट करने के लिए एक खास समय आवंटित किया जाता है और वे चर्चाओं को सही दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। क्षेत्रीय समूहों और सदस्य-देशों को आम तौर पर पहले बोलने का मौका मिलता है, उसके बाद मेजर ग्रुप्स और अंत में, अगर समय हो तो पर्यवेक्षक भी अपनी बात रखते हैं। लेकिन संधि को अंतिम रूप देने के लिए आयोजित शेष चार बैठकों के लिए मेजर ग्रुप्स और पर्यवेक्षकों को एक साथ रखने का निर्णय लिया गया। जाहिर है, नागरिक समाज के पास अपनी चिंताओं को सामने लाने के लिए कम समय होगा।

इस बीच, प्रारंभिक चर्चा से कुछ भी ठोस नहीं निकला। यहां तक कि सदस्य देश निर्णय लेने की प्रक्रिया बनाने को लेकर भी आम सहमति तक पहुंचने में विफल रहे। जहां कुछ देशों ने दो-तिहाई बहुमत से मतदान पर जोर दिया, वहीं भारत सहित कई अन्य ने बैठक में निर्णय लेने के लिए पूर्ण सहमति की मांग की।

इसका अर्थ है कि अगर सदस्य-देशों में से किसी एक को भी समस्या है, तो विवादास्पद बिंदुओं पर फिर से चर्चा करनी होगी। बैठक में अपनी स्थिति (राय) के आधार पर सदस्य-देशों को तटस्थ, महत्वाकांक्षी या असंदिग्ध के रूप में बांटा जा सकता है। नॉर्वे और रवांडा ने कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि की मांग की जो तीन सिद्धांतों के इर्द-गिर्द हो।

पहला, प्लास्टिक की खपत और उत्पादन को एक लक्षित स्तर तक रोकना, दूसरा एक ऐसी अर्थव्यवस्था बनाना जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य की रक्षा करता हो और तीसरा पर्यावरणीय रूप से मजबूत प्रबंधन और प्लास्टिक कचरे की रीसाइक्लिंग।

असंदिग्ध समूह ने देशों द्वारा उनकी क्षमताओं के आधार पर स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं की बात की। सबसे बड़े प्लास्टिक उत्पादक देशों में से एक अमेरिका ने कहा कि देशों को प्लास्टिक प्रदूषण के सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों और प्रकारों को स्वेच्छा से प्राथमिकता देने की अनुमति दी जानी चाहिए। सऊदी अरब ने जोर देकर कहा कि संधि पर बातचीत करते समय तेल उत्पादक देशों के हितों पर विचार किया जाना चाहिए।

चीन ने स्वैच्छिक प्रतिबद्धताओं के आह्वान को इस आधार पर सही ठहराया कि सार्वभौमिक प्रतिबद्धताओं को लागू करना मुश्किल होगा। भारत समेत तटस्थ देश बातचीत के दौरान ज्यादातर खामोश रहे।

बैठक में एकमात्र सकारात्मक निर्णय के रूप में कचरा बीनने वालों के दोस्तों के समूह की स्थापना का निर्णय लिया गया, जो एक स्वैच्छिक संस्था होगी। यह सदस्य-देशों के प्रतिनिधियों के बीच नियमित सूचना आदान-प्रदान, संवाद और परामर्श के लिए एक मंच के रूप में काम करेगा और बहस में बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन की बात को शामिल किए जाने के महत्व को रेखांकित करेगा।

कुल मिलाकर, जिस गति से पहली बैठक में बातचीत आगे बढ़ी, उसने नागरिक समाज को चिंतित कर दिया कि क्या 2024 की समय-सीमा को पूरा किया जा सकेगा। यह चिंता तब और बढ़ जाती है जब ओईसीडी के ग्लोबल प्लास्टिक आउटलुक के नवीनतम पूर्वानुमान के अनुसार, प्लास्टिक कचरा के 2060 तक तिगुना होने का अनुमान है।

प्लास्टिक कचरा 2019 में 353 मिलियन टन था जो अगले चार दशक में बढ़कर 1,014 मिलियन टन हो जाएगा। इसमें से दो तिहाई पैकेजिंग, उपभोक्ता उत्पादों और टेक्सटाइल इंडस्ट्री के कारण पैदा होगा।

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