कार्बेट टाइगर रिजर्व में प्लास्टिक कचरा, कैसे होगा समाधान

कार्बेट टाइगर रिजर्व क्षेत्र में प्लास्टिक कचरा खाते बाघ और हाथी की तस्वीर वायरल होने के बाद कई सवाल उठ रहे हैं 

By Varsha Singh

On: Tuesday 16 July 2019
 
वन संरक्षक डॉ. पराग मधुकर धकाते द्वारा सोशल मीडिया पर शेयर की गई तस्वीर।

प्लास्टिक प्रदूषण के खतरे से वन्यजीव भी नहीं बचे हैं। हाल ही में कार्बेट टाइगर रिजर्व क्षेत्र में एक गुलदार की प्लास्टिक चबाते हुए तस्वीर कैमरे में कैद हुई। ये तस्वीर जंगल के अंदर मौजूद प्लास्टिक कचरे को लेकर आगाह करती है। जिसका सीधा असर वन्यजीवों की सेहत पर पड़ रहा है।

वेस्टर्न सर्कल, हल्द्वानी के वन संरक्षक डॉ पराग मधुकर धकाते ने प्लास्टिक का पैकेट चबाते हुए गुलदार की तस्वीर साझा की। डाउन टु अर्थ से बातचीत में वह कहते हैं कि इन तस्वीरों के सामने आने के बाद अब ये हमारी ज़िम्मेदारी हो गई है कि हम जंगल से प्लास्टिक हटाएं। इसके लिए अगस्त महीने में जंगल में स्वच्छता अभियान चलाया जाएगा। जंगल से जुड़े एंट्री प्वाइंट्स पर हम साफ-सफाई करेंगे। साथ ही प्राइवेट कंपनी या स्वंय सेवी संस्था की मदद से जंगल के अंदर भी सफाई अबियान शुरू करा रहे हैं। वे कहते हैं कि इससे पहले जंगल के अंदर कभी सफाई अभियान नहीं चलाया गया। स्वच्छता अभियान शहरों में चलाए जाते थे। उनके मुताबिक ये प्रदूषण इस हद तक बढ़ गया है कि अब ये जंगल में भी फैल गया है। हम ऐसी कल्पना भी नहीं की थी। डॉ धकाते कहते हैं कि जंगल के पास किसी भी तरह का कूड़ा-कचरा नहीं डालना चाहिए।

उनकी इस बात के ये मायने हैं कि जंगल में प्लास्टिक कचरा मौजूद हैं, जंगल में सफाई की जरूरत है, ये प्लास्टिक जानवरों के पेट में पहुंच रहा है, जब हमने गुलदार के मुंह में प्लास्टिक की थैली देख ली, तो थोड़ा सहम गए।

डॉ पीएम धकाते कहते हैं कि जो लोग जंगल के पास से गुजरते हैं, वे खाने-पीने की चीजें रास्ते में फेंक देते हैं। जंगल के जानवर आसानी से उपलब्ध हो रहे इस तरह के भोजन की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उनके मुताबिक वन्यजीवों के लिए जंगल में पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध है, फिर भी वे खाने-पीने की चीजों के लिए सड़कों या रिहायशी इलाकों की तरफ आ रहे हैं। जबकि जंगली जानवरों को ऐसी आदत नहीं लगनी चाहिए, जिससे वो आबादी की ओर आकर्षित हों। उनके मुताबिक यदि हमने अपने कचरे का वैज्ञानिक निदान नहीं किया तो भविष्य में इस तरह की घटनाएं बढ़ेंगी। साथ ही मानव-वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ेगा।

जंगल को सफाई अभियान की नहीं कचरा प्रबंधन की जरूरत है

वेस्ट वॉरियर संस्था से जुड़ी मीनाक्षी पांडे कार्बेट में स्वच्छता को लेकर पिछले 6 वर्षों से कार्यरत हैं। उनका कहना है कि पिछले 6 सालों से वे कार्बेट पार्क के अधिकारियों को लगातार जंगल में मौजूद कचरे के प्रबंधन के लिए प्रस्ताव दे रही हैं। उनके मुताबिक कार्बेट प्रशासन वहां वेस्ट मैनेजमेंट के लिए तैयार ही नहीं है। मीनाक्षी कहती हैं कि हम कचरा प्रबंधन में कार्बेट प्रशासन की मदद को तैयार हैं लेकिन अधिकारी हमें कहते हैं कि जंगल में कचरा है ही नहीं।

मीनाक्षी बताती हैं कि वर्ष 2016 में उनकी संस्था की तरफ से कराये गये सर्वेक्षण में कार्बेट के अंदर करीब 350 होटल थे। जिनकी संख्या अब बढ़कर 400 तक पहुंचने का अनुमान है। ये सर्वेक्षण राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के लिए किया गया था। इसके साथ ही कार्बेट के दक्षिण पूर्वी हिस्से पर बसे रामनगर की आबादी करीब एक लाख है। ये सारा कचरा कार्बेट पार्क के दक्षिणी हिस्से के ठीक बाहर मौजूद गदेरे में फेंका जाता है। हर रोज एक लाख आबादी का कचरा और 350-400 होटल का कचरा इसी ट्रेंचिंग ग्राउंड में फेंका जाता है। तो क्या कार्बेट में रहने वाले बाघ, हाथी, गुलदार और अन्य जानवर इस कचरे तक नहीं आते होंगे। कार्बेट पार्क के ठीक बाहर मौजूद ट्रेचिंग ग्राउंड क्या कार्बेट प्रशासन की ज़िम्मेदारी नहीं है।

रामनगर पालिका परिषद के प्रभारी अधिशासी अधिकारी मनोज दास कहते हैं कि अभी हमें कूड़ा फेंकने के लिए ट्रेंचिंग ग्राउंड नहीं मिला है। लेकिन इसके लिए औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं। पूछड़ी गांव में वन भूमि पर ट्रेचिंग ग्राउंड के लिए जगह मिली है। अभी शहर का कूड़ा सांवलबे गांव के कोसी पास नदी से करीब एक किलोमीटर दूर ग्राउंड में फेंका जाता है। इससे पहले कार्बेट पार्क के ठीक बाहर गदेरे में ही कूड़ा फेंका जाता था। लेकिन हाईकोर्ट के निर्देश के बाद इसे नदी से एक किलोमीटर दूर फेंका जाने लगा है। मनोज दास के मुताबिक अभी कूड़ा निस्तारण के लिए उनके पास कोई व्यवस्था नहीं है। प्लास्टिक कचरे को वे ट्रकों में भरकर रोज़ाना हल्द्वानी के वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में भेजते हैं। कोसी नदी से एक किलोमीटर दूर कचरा फेंकने की जगह क्या वन्यजीवों के पहुंच में नहीं होगी?

कार्बेट पार्क के अंदर मौजूद होटल का कचरा नगर पालिका परिषद के कार्य क्षेत्र से बाहर है और वो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जिम्मेदारी में आता है। तो होटल गीले और सूखे कचरे को अलग करते हैं या नहीं, वे कहां कचरा फेंकते हैं, रामनगर से इसकी निगरानी नहीं की जा पाती।

हल्द्वानी में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय प्रबंधक डीके जोशी कहते हैं कि कार्बेट के अंदर मौजूद होटल अपने कचरे का निस्तारण पूरी जिम्मेदारी से करते हैं। वे बायोडिग्रेडबल वेस्ट तो खुद ही कंज्यूम कर लेते हैं और प्लास्टिक समेत अन्य कचरा कबाड़ीवालों को बेच देते हैं। डीके जोशी के मुताबिक होटल अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखते हैं, इसलिए वे कचरा इधर-उधर क्यों फेकेंगे। उनके बयान से स्पष्ट है कि होटलों के कचरे की निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं है।

एक बार फिर पन्नी चबाते हुए गुलदार की तस्वीर पर लौटते हैं। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के डॉ बिवास पांडव कहते हैं कि पन्नी में कुछ ऐसा भोजन रहा होगा, जिसकी तरफ गुलदार आकर्षित हुआ। उनके मुताबिक ये तस्वीर पर्यावरण और वन्यजीवों की सेहत के लिए खतरे की घंटी की तरह है कि प्लास्टिक अब जंगली जानवरों के बीच भी पहुंच रहा है। जंगली जानवर अभी तक प्लास्टिक के हमले से बचे हुए थे। लेकिन हमने इसका निस्तारण नहीं किया तो प्लास्टिक की मार वन्यजीवों की सेहत पर भी पड़ेगी।

 

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