क्या लॉकडाउन ने वास्तव में यमुना साफ की?
यमुना नदी में 80 प्रतिशत घरेलू सीवेज बहता है, औद्योगिक प्रदूषण में केवल 10-20 प्रतिशत प्रदूषण भार ही होता है
On: Thursday 09 April 2020
कोविड-19 के बाद देशभर में लॉकडाउन है। ऐसे में, दिल्ली के उधोग भी बंद हैं। इस बीच राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहने वाले लोग यमुना नदी को साफ लिखते हुए उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब वायरल कर रहे हैं। दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा ने भी हाल ही में कहा था कि जल बोर्ड द्वारा कराए गए परीक्षण में यमुना नदी के पानी की गुणवत्ता में सुधार पाया गया है।
सोशल मीडिया में वायरल हो रही ऐसी तस्वीरें और खबरें कितनी विश्वसनीय हैं, जबकि यमुना नदी में 80 प्रतिशत घरेलू सीवेज बहता है, औद्योगिक प्रदूषण में केवल 10-20 प्रतिशत प्रदूषण भार ही होता है। उद्योग बंद हैं, लेकिन घरेलू सीवेज उसी मात्रा में नदी में बह रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि दिल्ली में उद्योगों के बंद होने के बाद यमुना नदी में प्रदूषण के स्तर में बहुत असर नहीं पड़ सकता है, क्योंकि कोलिफॉर्म बैक्टीरिया, जो अनुपचारित सीवेज के माध्यम से नदी में चला जाता है, वह नदी को प्रदूषित करना जारी रखता है।
यमुना नदी के 2016 के मूल्यांकन में निजामुद्दीन और ओखला ब्रिज जैसे क्षेत्रों में प्रति 100 मिलीलीटर में 92 लाख सबसे संभावित संख्या (एमपीएन) के रूप में उच्च कोलीफॉर्म गणना दिखाई गई थी। वहीं, सरकारी मानकों के अनुसार अगर, फिकल कोलीफॉर्म प्रति 100 मिली. 500 से 2,500 मिली. के बीच होता है तो नदी के पानी को स्नान के लिए उपयुक्त माना जा सकता है।
विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (सीएसई) की कार्यक्रम प्रबंधक जल सुष्मिता सेनगुप्ता कहती हैं कि पल्ला और निजामुद्दीन जैसे क्षेत्रों में उच्च मल संबंधी कोलीफॉर्म है, जो नीचे नहीं आया है। यमुना में केवल 50 प्रतिशत सीवेज है, जबकि बहुत-सा अनुपचारित सीवेज अभी भी उसमें बह रहा है। उन्होंने आगे कहा कि औद्योगिक हॉटस्पॉट के पास स्थिति बेहतर हो सकती है, क्योंकि प्रदूषण भार में योगदान करने वाले कारखाने बंद हैं।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सदस्य सचिव प्रशांत गर्गवा के अनुसार, यमुना में अब तक प्रदूषण पर लॉकडाउन के प्रभाव को मापने के लिए कोई वास्तविक समय या तुलनात्मक डेटा नहीं है। उन्होंने कहा कि सीपीसीबी ने दिल्ली में नदी के पानी की गुणवत्ता जांचने के संबंध में पहले से ही चार-पांच बिंदुओं से नमूने एकत्र किए हैं और इसका विश्लेषण किया जा रहा है कि क्या वाकई लॉकडाउन के बाद गुणवत्ता में अंतर आया है।
वह कहते हैं कि ऐसे अन्य कारक हैं, जो जल प्रदूषण को दूर करने में मदद कर रहे हैं, जैसे कि ताजे पानी की रिहाई। डीजेबी नदी में कुछ पानी छोड़ रहा है, जिससे प्रदूषकों को पतला करने में मदद मिल सकती है। फिर भी, रिपोर्ट तैयार होने के बाद ही वास्तविक तथ्य सामने आएंगे।
उधर, गंगा नदी को भी प्रदूषित करने में घरेलू सीवेज ही मुख्य कारण है। नदी के किनारे स्थित 50 शहरों के जरिए हर दिन लगभग 2,723-30 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज उत्सर्जित किया जाता है। सीपीसीबी द्वारा रखी गई निगरानी के आधार पर तैयार किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि गंगा के किनारे 36 निगरानी इकाइयों में से 27 में स्नान के लिए पानी सही था।
डेटा में पाया गया कि पानी कुछ स्थानों पर पीने के लिए भी उपयुक्त था, जहां जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग (बीओडी) तीन मिलीग्राम प्रति लीटर मिलीग्राम से कम था, हालांकि सीपीसीबी के वास्तविक समय के आंकड़ों की अपनी सीमाएं हैं और पूरी तस्वीर नहीं दे सकती है।
सीएसई के सलाहकार देवदत्त बसु कहते हैं कि वास्तविक समय में बीओडी माप गलतियों को प्रतिबिंबित कर सकता है। यह बीओडी को मापने के लिए थोड़ा मुश्किल है। 10-15 प्रतिशत गलती भी एक बड़ी गलती हो सकती है। शास्त्रीय पद्धति में त्रुटि बहुत कम रहती है, लेकिन अब स्पेक्ट्रोस्कोपिक विधि के माध्यम से मापन किया जा रहा है, जिसमें वास्तविक समय में कुछ त्रुटियां हैं, क्योंकि वास्तविक समय में मल संदूषण को नहीं मापा जाता है।