नदियों में भारी धातुओं के प्रदूषण से बढ़ सकता है एंटीबायोटिक प्रतिरोध: शोध

वैज्ञानिकों ने इस बात की तस्दीक की है कि नदियों में भारी धातुओं की अधिक मात्रा एंटीबायोटिक प्रतिरोध के स्तर को बढ़ा सकता है।

By Dayanidhi

On: Wednesday 18 May 2022
 

एक नए शोध में भारत में गंगा और यमुना नदियों और यूके की टाइन नदी के जलग्रहण क्षेत्र के गाद या तलछट में एंटीबायोटिक और धातु प्रतिरोध की मात्रा का पता लगाया है। शोध में कहा गया है कि पुराने खनन और औद्योगिक गतिविधि के कारण टाइन नदी के जलग्रहण क्षेत्र में भारी धातुओं की मात्रा अधिक पाई गई है।

ये भारी धातुएं नदियों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के स्तर को बढ़ाने के लिए जानी जाती हैं। ऐसा ही भारतीय नदियों में भी देखा गया है, जो नदियां खासकर औद्योगिक गतिविधि वाले इलाकों के निकट से बहती है। यह शोध यूके के न्यूकैसल यूनिवर्सिटी और दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी द्वारा किया गया है।

टीम ने भारी धातुओं की मात्रा, धातु प्रतिरोध जीन (एमआरजी) और एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीन (एआरजी) की अधिकता के बीच संबंधों की जांच की। अध्ययन से पता चलता है कि एमआरजी और एआरजी में बहुत अधिक वृद्धि वहां होती है जहां धातु का स्तर अधिक होता है। यह दर्शाता है कि धातु प्रदूषण के पहुंच वाले इलाकों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध में वृद्धि हुई है, भले ही एंटीबायोटिक स्पष्ट न हों।

परिणाम बताते हैं कि धातु प्रदूषण वहां पाए जाने वाले बैक्टीरिया पर भी असर डालता है। जिसमें फर्मिक्यूट्स और बैक्टेरॉइडोटा धातु प्रदूषण की अधिकता वाली जगहों पर सबसे अधिक मात्रा में फाइला बैक्टीरिया पाया गया है। ये बैक्टीरिया धातु से प्रदूषित वातावरण में आम हैं और जीन कैसेट के समूहों में एमआरजी और एआरजी ले जाने के लिए जाने जाते हैं, जो बताता है कि धातु के सम्पर्क में आने से एंटीबायोटिक प्रतिरोध हो सकता है।

अध्ययन से पता चलता है कि अलग-अलग धातुओं के संयोजन सबसे मजबूत जीवाणु प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा देते हैं उनमें शामिल हैं कोबाल्ट और निकल, तथा  कोबाल्ट, जिंक और कैडमियम का संयोजन है।

न्यूकैसल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और अध्ययनकर्ता डेविड ग्राहम कहते हैं कि यह जरूरी नहीं कि स्वास्थ्य के लिए खतरा हो, लेकिन यह दर्शाता है कि बिना एंटीबायोटिक प्रदूषण वाली एक नदी या नाले में अभी भी अन्य प्रदूषकों के कारण एंटीबायोटिक प्रतिरोध बढ़ सकता है। हालांकि, यमुना जैसी नदी में, जिसमें कई अन्य प्रदूषकों के साथ भारी मात्रा में धातुएं होती हैं, यह एंटीबायोटिक प्रतिरोध को फैलाने को लेकर काफी चिंता बनी हुई है।

दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की प्रोफेसर तथा प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. सोनिया गुप्ता ने कहा कि धातुओं के अधिक संपर्क से बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के लिए सह-चयन की क्षमता होती है, जिससे वे कई एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधी बन जाते हैं।

डॉ गुप्ता ने यह भी बताया कि भारी धातुओं से होने वाले एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रभाव तब तेज हो जाते हैं जब धातुओं के उच्च स्तर को अन्य प्रदूषक जैसे एंटीबायोटिक्स, डिटर्जेंट और अन्य रसायनों के साथ मिलाया जाता है, जो एक स्वास्थ्य समाधान के हिस्से के रूप में भारी धातु प्रदूषण को कम करने के महत्व को उजागर करता है। यह समाधान एआरजी के फैलने को कम करने के लिए होता है।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध, जिसे एएमआर भी कहा जाता है, यह दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य का अहम मुद्दा है। जिसका बैक्टीरिया, परजीवी, वायरस और कवक के कारण होने वाले संक्रमणों की बढ़ती संख्या के प्रभावी उपचार पर प्रभाव पड़ता है। एंटीबायोटिक का उपयोग मानव और जानवरों के कचरे में प्रतिरोध के वेरिएंट के लिए चयन करता है, जो अपशिष्ट जल के माध्यम से पर्यावरण में पहुंच सकता है और पूरे प्रकृति में एआरजी और एएमआर बैक्टीरिया फैल सकता है।

Subscribe to our daily hindi newsletter