सीवेज ट्रीटमेंट में फेल साबित हो रहे हैं दिल्ली, हरियाणा और यूपी

 एनजीटी ने तीनों राज्यों को जल्द सीवेज मैनेजमेंट को मजबूत करने का आदेश दिया है, 30 अप्रैल 2020 तक प्रगति रिपोर्ट देनी होगी

By Bishan Papola

On: Thursday 05 March 2020
 

केंद्र सरकार यमुना एक्शन प्लान के तहत 1993 से यमुना की सफाई में दो चरणों में 1514.70 करोड़ रूपए खर्च कर चुकी है, जिसमें दिल्ली, हरियाणा और उत्तर-प्रदेश को भी फंड मुहैया कराया जाता है, लेकिन ये तीनों राज्य यमुना को प्रदूषित करने में सबसे आगे हैं। सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित अभिकरण (एनजीटी) भी इस संबंध में तीनों ही प्रदेशों की सरकारों को कई बार दिशा-निर्देश दे चुके हैं, लेकिन अभी तक तीनों ही राज्य अपने-अपने क्षेत्र में सीवेज सिस्टम स्थापित करने में विफल हुए हैं।

एनजीटी के निर्देश के बाद बनाई गई यमुना मॉनिटरिंग कमेटी (वाईएमसी) की तीसरी रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई है। यह रिपोर्ट 5 मार्च को एनजीटी में जमा कराई गई। इस रिपोर्ट के बाद एनजीटी के न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने तीनों ही राज्यों को सीवेज एवं स्लज मैनेजमेंट सुनिश्चित करने का आदेश दिया है और 30 अप्रैल 2020 तक प्रगति रिपोर्ट जमा करने को कहा है। एनजीटी ने तीनों राज्यों से पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप लगाई गई जुर्माना राशि भी जल्द जमा करने का आदेश दिया है। अगर, राज्य यह धनराशि जल्द जमा नहीं करेंगे तो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड-सीपीसीबी को तीनों राज्यों की सरकारों को नोटिस भेजना होगा।

एनजीटी ने 13 जनवरी 2015 के एनजीटी के आदेश की तिथि के बाद यमुना नदी को पहुंचे नुकसान का आकलन करने को भी कहा है। सीपीसीबी, एनएमसीजी, एनईईआरआई, आईआईटी रूड़की और दिल्ली की संयुक्त टीम से यह काम पूरा कराने का निर्देश दिया है। यह काम तीन महीने के अंदर पूरा करने का निर्देश दिया है। एनजीटी ने तीनों राज्यों के मुख्य सचिवों को भी अधिकारियों की जवाबदेही तय उनके खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है।

तीनों राज्यों पर लगाया गया था 10-10 करोड़ का जुर्माना

एनजीटी ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि यमुना के कायाकल्प के लिए पिछले 25 वर्षों से प्रयास किए जा रहे हैं। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट व एनजीटी के दिशा-निर्देशों के बाद भी कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आए हैं। इसके बाद 26 जुलाई 2018 को दो सदस्यीय यमुना निगरानी समिति(वाईएमसी) का गठन किया गया, जो समय-समय पर एनजीटी को रिपोर्ट देती रही है। समिति की तीसरी रिपोर्ट में भी जो तथ्य सामने आए हैं, उससे साफ होता है कि दिल्ली, उत्तर-प्रदेश और हरियाणा राज्यों से बहने वाला औद्योगिक और आवासीय अपशिष्ट अभी भी निरंतर उसी रूप से नालों से बहते हुए यमुना नदी में पहुंच रहा है। औद्योगिक, आवासीय और अन्य अपशिष्ट को शोधित करने में विफल रहने पर एनजीटी ने तीनों राज्यों पर 10-10 करोड़ का जुर्माना भी लगाया था, इसके लिए डीडीए पर भी 50 लाख का जुर्माना लगाया गया था। इसके अलावा एनजीटी कहा था कि 1 जुलाई 2020 के बाद कोई भी सरकार नाले में अनुपचारित सीवेज बहाते पाई गई तो उसे 10 लाख रूपए प्रति माह के हिसाब पर्यावरण क्षतिपूर्ति के रूप में जुर्माना भरना होगा। साथ ही, एसटीपी और सीवेज नेटवर्क अधूरे कार्य के लिए भी प्रति माह 10 लाख रूपए भुगतान करने का आदेश दिया था।

हरियाणा से आता है 500 एमएलडी सीवेज

यमुना मॉनिटरिंग कमेटी की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अगर, यमुना में प्रदूषण के स्तर को कम करना है तो हरियाणा से आने वाले 500 एमएलडी सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट को नदी में मिलने से रोकना होगा और गाजियाबाद भी करीब 65 एमएलडी सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट यमुना में बहा रहा है। दिल्ली में नजफगढ़ और शाहदरा ड्रेन के जरिए सबसे अधिक अपशिष्ट यमुना नदी में बह रहा है। कुल 3026 एमएलडी सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट के मुकाबले इन दो नालों के जरिए 2400 एमएलडी सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट यमुना तक पहुंच रहा है। इस मुद्दे को लेकर यमुना सफाई अभियान से जुड़े पर्यावरणविद् मनोज मिश्रा ने याचिका डाली थी।

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