प्रेरणा: कचरा इकट्ठा कर संवार रही हैं बिखरी जिंदगी

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर की सुनीता सारकेल की कहानी, उनकी जुबानी

By DTE Staff

On: Wednesday 11 October 2023
 

सूखा कचरा, गीला कचरा, दुर्गंध और बहुत कुछ। इसी कचरे को ठिकाने लगाने में जिंदगी को मुकम्मल ठिकाना मिला। मेरी कहानी शुरू होती है छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर से, जहां मैं बिलासपुर से ब्याह कर आई थी, लेकिन पति ने 2014 में छोड़ दिया। यह वैसा समाज था जहां पति का साथ छूटने के बाद आपका कोई नहीं रह जाता है। पति ने जगह नहीं दी तो फिर पिता के घर में भी आपके लिए जगह नहीं बचती।

मैंने अपने पति और ससुराल वालों से मदद की कोई गुहार नहीं लगाई। मायके भी लौटना मुनासिब नहीं समझा। केवल एक बैग उठाया, अपने नवजात को गोद में लिए सब को छोड़ दिया। आजीविका के लिए हाथ-पांव मारना शुरू किया और दो वक्त की रोटी पाने की आस में पहले सिलाई-कढ़ाई करने का ही सोच पाई। अपनी इसी सोच को अमल में लाने के इरादे से महिलाओं के एक समूह से जुड़ गई। इस समूह को वह काम मिला था, जिसे समाज में सबसे अधिक तिरस्कार की नजर से देखा जाता है, यानी घर-घर जाकर कचरा इकट्ठा करने का काम।

ऐसी महिलाओं के बीच खुद को पाने के बाद मैंने खुद की आजीविका के लिए स्वयंसेवी संस्था बनाई। एक औरत के लिए इस तरह का काम शुरू करना आसान नहीं था। घर-घर जाकर कचरा इकट्ठा करना पहले तो मेरे लिए ही बहुत मशक्कत भरा था। शायद इसी कारण से मेरी कई साथिनों ने इस काम को छोड़ भी दिया।

लेकिन, मैं डटी रही और आखिर मेरी मेहनत रंग लाई। अपने लिए छत का इंतजाम करने में सफल रही। आठ साल पहले जब यह सफर मैंने शुरू किया था तो मालूम नहीं था कि हम कहां जाएंगे। लेकिन मन में एक आस तो थी ही, और हमने यह मान लिया है कि किसी भी तरह के काम में आप सफल हो सकते हैं। शुरुआती दिक्कतों के बावजूद धीरे-धीरे ही सही हम महिलाओं का आत्मविश्वास और मजबूत होता गया। कचरा इकट्ठा करने से ही प्रति माह लगभग साढ़े 15 लाख रुपए तक की कमाई हो जाती है। इसके बाद कचरा निष्पादन और फिर रीसाइकल्ड, प्लास्टिक से बने ग्रेन्यूल, रद्दी और अन्य बेकार सामानों को बेचकर अमूमन 10-12 लाख रुपए की कमाई प्रतिमाह अलग से हो जाती है।

हमारा संगठन अंबिकापुर के सभी 18 वेस्ट मैनेजमेंट सेंटर में काम करता है। हम सब अब गोधन न्याय योजना में भी अपना योगदान दे रहे हैं। मई 2020-जनवरी से 2023 तक में एक करोड़ 70 लाख रुपया मात्र गोबर से बने उत्पाद यानी कि वर्मी कंपोस्ट बेचकर कमाया है, जिसमें शुद्ध मुनाफा 41 लाख रुपए का हुआ है।

स्थानीय स्तर पर 2020 से अपना गोधन इंपोरियम भी है, जहां पर हम महिलाएं गोबर से बने उत्पाद जैसे वर्मी कंपोस्ट, अगरबत्ती, दीया, यहां तक की गोबर से निर्मित पेंट भी बेचती हैं। अब तक इंपोरियम से 12 लाख रुपए की कमाई हो चुकी है। हमने हाल ही में गोबर से पेंट बनाने का काम भी शुरू किया है। हम सालाना आयकर रिटर्न भी भरते हैं। हमारा वार्षिक टर्नओवर साढ़े चार से पांच करोड़ रूपए है और वर्तमान में 470 महिलाएं हैं।

अंबिकापुर शहर को स्वच्छ घोषित करने में सराहनीय योगदान देने के लिए हमारे संगठन को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिले हैं। जिले की तत्कालीन जिलाधीश ऋतु सैन ने हमारी हौसला अफजाई की थी और कहा था कि आप लोगों को शुरू में सरकार मदद करेगी, लेकिन यदि आपको अपने पैरों पर खड़े होना है तो इस कार्य को खुद ही संभालना होगा। बस, उनकी इस बात ने ही मेरे लिए प्रेरणा का काम किया। कचरे की दुर्गंध को अपने दम पर हमने आत्मनिर्भरता की खुशबू में बदल दिया।

Subscribe to our daily hindi newsletter