अनाधिकृत विज्ञापनों से पटे शहर खो हो रहे हैं शहरी परिदृश्य और राजस्व

शहरों में लगातार अवैध विज्ञापन सरकार द्वारा संचालित स्वच्छ भारत मिशन को बट्टा लगा रहे हैं

By Ashish Kumar Chauhan

On: Tuesday 03 January 2023
 
Photo: Ashish Kumar Chauhan

वर्तमान में, देश का हर छोटा-बड़ा शहर अवैध पोस्टर और विज्ञापन सामग्री से पटा मिलता हैं। डाउन टू अर्थ टीम ने पाया कि अवैध लगे विज्ञापन शहरों के परिदृश्य को बहुत अधिक क्षति पहुंचाते हैं। इससे न सिर्फ गंदगी होती है अपितु इन पोस्टर और विज्ञापनों के अल्पकालीन उपयोग के पश्चात यह शहर में जनित कूड़े में अपना भाग बढ़ाते हैं।

जहां एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 अक्टूबर 2021 से कचरा मुक्त शहर थीम आधारित स्वच्छ भारत मिशन 2.0 की शुरुआत की थी। वहीं शहरों में लगातार अवैध विज्ञापन सरकार द्वारा संचालित मिशन को बट्टा लगा रहे हैं।

यहां अवैध विज्ञापन का तात्पर्य ऐसे अनधिकृत, अनुमति विहीन विज्ञापनों जैसे- प्रचार सामग्री, होर्डिंग, बैनर, पोस्टर इत्यादि से है जो सरकारी सूचना पट्ट, रोड डिवाइडर, स्ट्रीट लाइट पोल, खंभाें और किसी भी दीवारों पर चिपकाए, पेंट किए गए अथवा फिक्स किए गए मिलते हैं। अवैध विज्ञापन, प्रचार सामग्री में प्रायः पेपर, प्लास्टिक बैनर, प्लास्टिक थ्रेड, डोरी, लोहे और लकड़ी के फ्रेम, केमिकल एडहेसिव, कील, तार, पेंट आदि पाए जाते हैं।

इस प्रकार के कूड़े में सुखे कचरे की मात्रा होने के साथ-साथ प्लास्टिक और डोमेस्टिक हजार्ड्स वेस्ट का भी हिस्सा होता है। इस प्रकार अतिरिक्त विज्ञापन और पोस्टर के अपशिष्ट को अन्ततोगत्वा नगर निकाय द्वारा ही उठाया जाता है। जिससे संबंधित निकायों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सिटी सैनिटेशन और सॉलि़ड वेस्ट मैनेजमेंट के कार्यों पर अतिरिक्त समय और धन की हानि होती है।

डाउन टू अर्थ ने विश्लेषण में पाया कि शहरों में लगे अवैध पोस्टर और विज्ञापन सामग्री से नगर निकायों को निम्न प्रकार से वित्तीय क्षति पहुंचती है।
1. अवैध पोस्टर और विज्ञापन सामग्री से प्रति निकाय कुल वार्षिक बजट का 1 से 5 प्रतिशत की राजस्व हानि ।
2. अवैध पोस्टर और विज्ञापन से पटे धूमिल शहरों को स्वच्छ बनाने के लिए संबंधित निकायों पर आने वाला वित्तीय बोझ / अतिरिक्त खर्च।
3. अल्पकालीन प्रयोग के बाद छोटे बड़े पोस्टर, होर्डिंग, विज्ञापन और प्रचार सामग्री को हटाने, संग्रहण करने, समुचित प्रसंस्करण और परिवहन पर एक लाख से कम जनसंख्या वाली शहरी निकायों द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कम से कम 15 से 20 प्रतिशत कुल सालाना बजट का खर्च करना पड़ता है और वही एक लाख से और 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाली शहरी निकायों को सालाना बजट का लगभग 5 से 10 प्रतिशत अतिरिक्त वित्तीय खर्च के रूप में उठाना पड़ता है।
4. इन अवैध पोस्टर, विज्ञापन सामग्री से स्थानीय लोगों में शहर स्वच्छता को लेकर एक प्रकार का नकारात्मक संदेश भी जाता है क्योंकि जहां एक और एस.बी.एम. 2.0 गाइडलाइन के अनुसार देश के कुल 3901 सेंसस टाउन में स्वच्छता के प्रति लोक जागरूकता और व्यावहारिक परिवर्तन हेतु लगभग 6271 करोड रुपए का बजट निकायों के लिए आवंटित किया गया है। वहीं कुछ लोग धड़ल्ले से बेखौफ होकर अनधिकृत विज्ञापन प्रचार सामग्री को शहर में कहीं भी चिपकाए जा रहे हैं। 

Photo: Ashish Kumar Chauhan


लखनऊ नगर निगम के पर्यावरण अभियंता संजीव प्रधान ने डाउन टू अर्थ को बताया कि 10 लाख से 30 लाख की जनसंख्या वाली शहरी निकाय को कुल वार्षिक बजट का 10 से 15 प्रतिशत आय विज्ञापन पटल से प्राप्त हो सकता है परंतु शहरी निकाय की स्थिति व्यापारिक गतिविधियों के परिपेक्ष में और वहां की जनता के रुझान, इनकम स्टेटस आदि भी महत्वपूर्ण बिंदु होते हैं जो विज्ञापन पट व पांइट/ बिन्दु की संख्या और इससे होने वाली आय को प्रभावित कर सकते हैं।

औरास आदर्श नगर पंचायत के अधिशासी अधिकारी ने बताया कि 50,000 से कम जनसंख्या जनसंख्या वाली शहरी निकायों में अधिकृत विज्ञापन एवं प्रचार सामग्री से नगर निकाय को वार्षिक बजट का कुल 8 से 10% ही राजस्व की प्राप्ति होती है। जबकि शहरी निकाय को अनधिकृत विज्ञापन सामग्री से जनित कूड़े के प्रबंधन में इस घटक की आय का 3 गुना खर्च करना पड़ता है।

कहीं ना कहीं यह छोटे-छोटे मुद्दे शहर के लिए बड़ी समस्या का सबब भी बन रहे हैं और सरकार द्वारा संचालित योजनाओं जैसे स्वच्छ भारत मिशन पर अनाधिकृत विज्ञापन, प्रचार सामग्री और पोस्टर बाजी से प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

क्या है समाधान:
1.अवैध पोस्टर चिपकाने और विज्ञापन सामग्री लगाने वालों (वेंडर और ठेकेदार) पर शहर को गंदा करने पर सॉलि़ड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016, संबंधित नगर निकाय अधिनियम की विभिन्न धाराओं और निकाय के नवीनतम कानून के अनुसार कठोर कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
2. बारंबार कृत्य दोहराने वाले चयनित विज्ञापन प्रचारक स्वामी पर आर्थिक दंड लगाया जाना चाहिए। अर्थदंड के रूप में प्राप्त राजस्व का उपयोग लगाए गए या चिपकाए गई प्रचार सामग्री को हटाने एवं विज्ञापन जनित अपशिष्ट प्रबंधन के उपयोग में लाई जा सकती है।
3. नगर निकाय अपनी सीमा अंतर्गत ऐसे सभी स्थलों का चिन्हित करें जिसे विज्ञापन पटल के रूप में प्रयोग में लाया जा सके और इन चिन्हित विज्ञापन पट या बिंदुओं को ई-टेंडर अथवा उचित टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से योग्य निविदा दाता को आवंटित किया जा सके।
4. मानक के अनुरूप, बायोडिग्रेडेबल और रीसाइकिलेबल, इको फ्रेंडली और डिजिटल विज्ञापन के उपयोग से शहर में इस प्रकार के अपशिष्ट की मात्रा भी कम होगी नगर निकायों को इस प्रकार के अतिरिक्त अपशिष्ट को संग्रहण परिवहन और प्रबंधन संबंधित कार्य कार्यों में कोई भी अतिरिक्त वित्तीय भार भी नहीं उठाना पड़ेगा।

इन सुझावों से शहर न सिर्फ अवैध विज्ञापन प्रचार सामग्री से मुक्त होगा सकेगा अपितु नियंत्रित एवं नियम अनुसार विज्ञापन से शहर स्वच्छ स्वच्छ दिखेगा और निकाय को राजस्व की प्राप्ति भी हो सकेगी।

अवैध विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई करके किस तरह एक शहर को साफ-सुथरा बनाया जा सकता है, इसका उदाहरण इंदौर से देखा जा सकता है। पिछले 6 वर्षों से लगातार स्वच्छ सर्वेक्षण में प्रथम स्थान पर आने वाले इंदौर नगर निगम की आयुक्त प्रतिभा पाल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि शहर को स्वच्छ बनाने के लिए अवैध विज्ञापन प्रचार पर नगर निगम ने सख्ती से कार्रवाई की है।

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