स्वच्छता के इम्तिहान में पिछड़ा उत्तराखंड

70 फीसदी से अधिक जंगल वाले राज्य उत्तराखंड का एक भी शहर शीर्ष 250 शहरों में अपनी जगह नहीं बना पाया

By Varsha Singh

On: Friday 08 March 2019
 
Credit: Varsha Singh

स्वच्छ सर्वेक्षण 2019 के नतीजे उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य के लिए सबक लेने और नई कार्य योजना के साथ स्वच्छता की जंग लड़ने की बात कहते हैं। प्रकृति के सुंदर नजारों से भरपूर हिमालयी पर्वत श्रृंखलाओं, 70 फीसदी से अधिक जंगल वाले राज्य उत्तराखंड का एक भी शहर शीर्ष 250 शहरों में अपनी जगह नहीं बना पाया। बल्कि पिछले वर्ष की तुलना में भी राज्य और पीछे खिसक गया। वन-संपदा और जैव-विविधता से भरपूर राज्य के लिए ये खतरे की घंटी है। यदि राज्य अपने कचरे का निस्तारण नहीं कर पा रहा है, तो इसका मतलब खतरा यहां की नदियों-जंगलों पर है। इसीलिए गंगा के स्रोत गोमुख तक प्लास्टिक का कचरा ढेर के रूप में जमा हो रहा है। 

शहरी विकास मंत्रालय के स्वच्छ सर्वेक्षण में-2019 में उत्तराखंड के सभी निगम, पंचायत, कैंटोमेंट बोर्ड की रैकिंग में गिरावट आई है। देशभर के 425 शहरों में करीब एक महीने की समयावधि में ये स्वच्छता सर्वेक्षण किया गया। शहरों को स्वच्छता की स्थिति के मुताबिक, कुल 5,000 अंकों में अंक दिए गए। इस सूची में उत्तराखंड के सबसे स्वच्छ शहर के रूप में रुड़की को 281वां (1908.99 अंक) स्थान मिला है। 308वें स्थान पर काशीपुर (1736.24 अंक), 350वें स्थान पर हल्द्वानी (1524.81 अंक), 376वें स्थान पर हरिद्वार (1380.72 अंक), 384वें स्थान पर देहरादून (1342.53 अंक) और 403वें स्थान पर रुद्रपुर (1207.58 अंक) है।

काशीपुर को छोड़कर इन सभी शहरों की रैंकिंग पिछले वर्ष के स्वच्छता सर्वेक्षण की तुलना में घटी है। यानी उत्तराखंड गंदगी की ओर आगे बढ़ा है। रुड़की पिछले वर्ष 158वें स्थान पर था। काशीपुर 310वें स्थान पर, हल्द्वानी 251वें स्थान पर, हल्द्वानी 251वें स्थान पर, हरिद्वार 205वें स्थान पर, देहरादून 257वें स्थान पर, रुद्रपुर 281वें स्थान पर था।

यही स्थिति उत्तराखंड के कैंट बोर्ड की भी है। पिछले वर्ष दूसरे स्थान पर आए अल्मोड़ा की रैंकिंग इस वर्ष 11वें स्थान पर है। रानीखेत तीसरे स्थान से फिसल कर 13वें स्थान पर आ गया। नैनीताल छठे स्थान से फिसल कर 27वें स्थान पर आ गया। क्लेमेंटटाउन 16वें से 54वें स्थान पर आ गया और देहरादून 18वें से 19वें स्थान पर पहुंच गया। यानी राज्य अपने कचरे का निस्तारण करने में पिछले वर्ष की तुलना में और कमज़ोर हो गया।

बेस्ट गंगा टाउन का अवार्ड जीतकर गौचर ने उत्तराखंड की कुछ लाज बचा ली है। चमोली जिले में बदरीनाथ धाम के पड़ाव के रूप में विख्यात गौचर नगर पालिका परिषद अपने सीमित संसाधनों से अव्वल आया है। जबकि अच्छे-खासे बजट वाले नगर निगम बजट की कमी का रोना रोते रहते हैं। गौचर का स्वच्छता का फॉर्मुला ही यदि पूरा प्रदेश अपनाये तो शायद स्थिति बेहतर हो सकती है। इसके साथ ही अगस्त्यमुनि नगर पंचायत को बेस्ट सिटी इन सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट इन नॉर्थ ज़ोन कैटेगरी में स्वच्छ सिटी का अवार्ड दिया गया है। उत्तराखंड के शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक नहीं मानते हैं कि इस स्वच्छता सर्वेक्षण में राज्य की स्थिति बहुत खराब है। उनके मुताबिक राज्य में सौ फीसदी डोर टु डोर कूड़ा इकट्ठा किया जा रहा है। कूड़े को अलग-अलग सेग्रीगेट करने की व्यवस्था 50 फीसदी है। लेकिन उत्तरकाशी जैसी कई जगहें हैं जहां कूड़ा फेंकने के लिए जमीन ही उपलब्ध नहीं है। मदन कौशिक कहते हैं कि ऐसी जगहों पर ज़मीन तलाशी जा रही है। उन्होंने राज्य की वेस्ट टु एनर्जी नीति के बारे में बताया। देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंहनगर में कूड़े से बिजली बनाने के लिए कार्य किया जा रहा है।

पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के रवि चोपड़ा कहते हैं उत्तराखंड के शहरों के लिए फॉर्वर्ड लुकिंग प्लानिंग की जरूरत है। उनके मुताबिक राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर भी पलायन हो रहा है। जिससे नगर निकायों पर दबाव बढ़ गया है। देहरादून में गति फाउंडेशन के संरक्षक अनूप नौटियाल कहते हैं कि अब भी नगर निकायों का सारा ज़ोर कचरा फेंकने के लिए ज़मीन तलाशने पर होता है। इस पर कार्य नहीं किया जाता कि शहर अपने कूड़े को कैसे मैनेज करें। वे स्वच्छता रैकिंग में उत्तराखंड के पिछड़ने पर स्वच्छता की व्यवस्था न होने को दोषी ठहराते हैं। अनूप कहते हैं कि अब भी डोर टु डोर कूड़ा कलेक्शन पूरा नहीं हो रहा है। न ही गीले और सूखे कचरे को अलग रखने के लिए कार्य किये जा रहे हैं। सार्वजनिक स्थलों पर लगे कूड़ेदानों में भी इसकी अलग-अलग व्यवस्था नहीं है। देहरादून के नेहरूग्राम क्षेत्र की निवासी आशी बिष्ट कहती हैं कि डोर टु डोर कूड़ा उठाने की गाड़ी कई-कई दिनों में आती है। कई बार तो एक हफ्ते से भी अधिक समय के अंतराल पर। 

केंद्र सरकार के मुताबिक ये विश्व का सबसे बड़ा स्वच्छता सर्वेक्षण है। जिसमें 4237 शहरों को शामिल किया गया। 28 दिनों के अंतराल में ये सर्वेक्षण पूरा हुआ। पूरी तरह डिजिटाइज्ड और पेपरलेस सर्वेक्षण में शहरों की ओर से 4.5 लाख दस्तावेज दाखिल किये गये। 41 लाख जियो टैग्ड तस्वीरें ली गईं। लोगों की बड़ी संख्या में भागीदारी थी। 64 लाख लोगों की प्रतिक्रिया लेने का दावा किया गया है। साथ ही सोशल मीडिया पर करीब 4 करोड़ लोगों तक पहुंचने की बात कही गई है। केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के मुताबिक 23 राज्यों के 4,041 शहरों को ओडीएफ घोषित किया गया है। 

Subscribe to our daily hindi newsletter