2010 के बाद मसूरी में नगर पालिका ने एक भी पौधे नहीं लगाए, उत्तराखंड हाईकोर्ट ने दिया नोटिस

याचिका में आरोप लगाया गया है कि देहरादून में 90 फीसदी होटल बिना कंसेट टू ऑपरेट के चल रहे हैं। 

By Vivek Mishra

On: Friday 14 April 2023
 

उत्तराखंड के देहरादून जिले में पर्यटक स्थल मसूरी में तरल अपशिष्ट और कचरे के प्रबंधन को लेकर नियम-कायदों को ताक पर रख दिया गया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट में दाखिल एक याचिका में कहा गया है कि मसूरी में करीब 60 फीसदी रिसॉर्ट या होटल ऐसे हैं जो बिना अनिवार्य अनुमतियों के ही संचालित हो रहे हैं। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिका को अनुमति देते हुए राज्य सरकार के मुख्य सचिव, पर्यावरण विभाग, मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण, उत्तराखंड जल संस्थान, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से तीन हफ्तों के भीतर जवाब मांगा है। 

इसके अलावा मामले में मसूरी नगर पालिका परिषद को नोटिस जारी कर 5 सितंबर तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। 

उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता आकाश वशिष्ट ने कहा कि होटल या रिसार्ट चलाने के लिए जल कानून के तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनिवार्य तौर पर हासिल किया जाने वाला कंसेट टू ऑपरेट नहीं लिया जा रहा है। समूचे देहरादून में 90 फीसदी  होटल और रिसाॉर्ट बिना कंसेट टू ऑपरेट चल रहे हैं। जबकि इन होटल और रिसॉर्ट के चलते न सिर्फ जल प्रदूषण बल्कि ठोस कचरे का प्रदूषण भी फैल रहा है।   

मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने 12 अप्रैल, 2023 को इस मामले पर अपना आदेश दिया। पीठ ने कहा कि याची ने जल (बचाव व नियंत्रण) कानून, पर्यावरण संरक्षण कानून, 1986 और इसके अधीन ठोस कचरा, जैविक कचरा, प्लास्टिक कचरा, निर्माण व धवस्तीकरण मलबा, इलेक्ट्रॉनिक कचरा व अन्य खतरनाक कचरों के प्रबंधन व निस्तारण को लेकर बनाए गए रूल्स के उल्लंघन को लेकर कई आदेशों की मांग की है। पीठ ने कहा कि बिना किसी अन्य आदेश के इंतजार के संबंधित एजेंसियां तत्काल जरूरी और कड़े कदम उठाएं। 

याची ने नगर पालिका परिषद पर दून वैली नोटिफिकेशन 1989 का पालन न करने का भी आरोप लगाया है।  याची आकाश वशिष्ट ने कहा कि 2010 से एक भी पार्क और ग्रीन बेल्ट में मसूरी नगर पालिका परिषद ने पेड़-पौधे न हीं लगाए  हैं। जबकि न सिर्फ शहर पर पर्यटन का दबाव बढ़ रहा है बल्कि यहां की भूमि भी खराब हो रही है। 

याचिका में कहा गया है कि प्रतिदिन पैदा होने वाले 6.02 एमएलडी सीवेज में महज 2.2 एमएलडी सीवेज का उपचार हो रहा है बाकी गैर शोधित सीवेज सीधा नालों और सड़कों पर छोड़ दिया जाता है। दूसरी तरफ शहर में झरनों और अन्य जल संसाधनों के सूखने से जल संकट भी पैदा हो गया है। 

इस मामले की पैरवी एडवोकेट रक्षित जोशी कर रहे हैं। अगली सुनवाई 5 सितंबर, 2023 को होगी। 

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