कब-कब हुआ जैविक हथियारों का इस्तेमाल

जैविक हथियारों का दुश्मनों पर पहला इस्तेमाल सन 1347 में दर्ज किया गया था

By Bhagirath Srivas

On: Tuesday 25 May 2021
 

“दुनियाभर में बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित करने और महामारी फैलाने वाले कोविड-19 जैसे वायरस दुश्मन देशों पर जैविक हथियारों के रूप में इस्तेमाल किए जा सकते हैं, इसलिए जैविक सुरक्षा गंभीर चिंता का विषय है।” यह चिंता संसदीय समिति द्वारा नवंबर 2020 में जारी रिपोर्ट में जाहिर की गई है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने माना है कि जैविक हथियारों से सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समग्र दृष्टिकोण की जरूरत है।

समिति की चिंताएं निराधार नहीं हैं। जैव आतंकवाद और जैविक हथियार आज से नहीं बल्कि सदियों से इस्तेमाल हो रहे हैं। ब्रिटेनिका के अनुसार, जैविक हथियारों का दुश्मनों पर पहला इस्तेमाल सन 1347 में दर्ज किया गया था। इस साल मंगोल की सेना ने प्लेग से संक्रमित शव काफा (अब युक्रेन के फ्यूडोसिया) के ब्लैक सी के तट पर फेंक दिए थे। उस समय यह इलाका प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। कुल इतिहासकारों का मानना है कि उस समय समुद्री जहाजों के द्वारा बड़ी संख्या में लोग यहां से संक्रमित होकर इटली लौटे थे। इससे वहां ब्लैक डेथ महामारी फैल गई और चार सालों में यूरोप में 2.5 करोड़ लोग मारे गए। यह उस समय की एक तिहाई आबादी थी।

इसी तरह 1710 में भी स्वीडन की सेना से युद्ध लड़ रही रूस की फौज को रेवल (वर्तमान में एस्टोनिया का तालिन) में घेरकर उन पर शहर की दीवार से प्लेग संक्रमित शवों को फेंका गया था। जैविक हथियारों के इस्तेमाल की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। 1763 में ब्रिटेन की सेना ने फोर्ट पिट (पिट्सबर्ग) में डेलावेयर इंडियन को घेरकर उन पर चेचक वायरस से संक्रमित कंबल फेंके थे। इस घटना से एक भीषण महामारी को जन्म दिया।

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी ने जैविक हथियारों का इस्तेमाल दुश्मन देशों पर किया। युद्ध के दौरान जर्मनी ने दुश्मनों के घोड़ों और मवेशियों को संक्रमित करने के लिए क्लेंडेसटिन कार्यक्रम चलाया। इसके लिए संक्रामक एजेंट ग्लैंडर का उपयोग किया गया। 1915 में भी जर्मनी ने रूस को कमजोर करने के लिए सेंट पीटर्सबर्ग में प्लेग फैलाने की कोशिश की।

पहले विश्व युद्ध में जैविक और रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल को देखते हुए 1925 में अधिकांश देशों को इन पर प्रतिबंध लगाने के लिए जेनेवा प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर करने पड़े। दूसरे विश्व युद्ध में जैविक हथियारों के साक्ष्य नहीं मिलते लेकिन माना जाता है कि बहुत से देशों ने शोध और विकास कार्यक्रम शुरू कर दिए। शीत युद्ध के दौर में अमेरिका और सोवियत संघ के साथ उनके सहयोगियों ने बड़े स्तर पर ऐसे कार्यक्रम शुरू किए। ऐसे कार्यक्रमों को रोकने के लिए 1972 में बायोलॉजिकल वेपंस कन्वेंशन हुआ जो 1975 में लागू हो गया। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र के 190 सदस्य देशों में से कुछ देशों पर संदेह है कि वे अब भी जैविक हथियारों के कार्यक्रम चला रहे हैं।

ब्रिटेनिका के अनुसार, 1980 के दशक में ओशो के नाम से विख्यात रजनीश के अनुयायियों ने अमेरिका के वास्को काउंटी में अपना राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए ग्रोसरी, रेस्तरां और पानी को सालमोनेला बैक्टीरिया से प्रदूषित कर दिया। इससे कम से कम 751 लोग बीमार हो गए। अतीत में जैविक हथियारों के इस्तेमाल के और भी कुछ उदाहरण सामने आए हैं। इसलिए ऐसे हथियारों से सतर्क रहने और संसदीय समिति की चिंताओं पर गौर करने की जरूरत है।

Subscribe to our daily hindi newsletter