प्लूटो की सतह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी से 80 हजार गुना कम: अध्ययन

खगोल विज्ञान में ऐसे प्रच्छादन तब होते हैं, जब कोई खगोलीय वस्तु उनके बीच से गुजरने वाली किसी अन्य खगोलीय वस्तु के कारण पर्यवेक्षक की दृष्टि से ओझल हो जाती है

By DTE Staff

On: Wednesday 16 February 2022
 
Photo: Pixabay

भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम के अध्ययन में कहा गया है कि प्लूटो की सतह पर वायुमंडलीय दबाव पृथ्वी से 80,000 गुना कम है।  

वायुमंंडलीय दबाव की गणना 6 जून 2020 को प्लूटो द्वारा तारकीय गूढ़ता के अवलोकन से प्राप्त आंकड़ों द्वारा की गई थीI इसके लिए उतराखंड के देवस्थल, नैनीताल में स्थित 3.6-मीटर देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप (डीओटी) (भारत के सबसे बडे ऑप्टिकल टेलीस्कोप) और 1.3-मीटर देवस्थल फास्ट ऑप्टिकल टेलीस्कोप (डीएफओटी) टेलीस्कोप का उपयोग किया गया। 

खगोल विज्ञान में ऐसे प्रच्छादन (ऑकल्टेशन्स) तब होते हैं, जब कोई खगोलीय वस्तु उनके बीच से गुजरने वाली किसी अन्य खगोलीय वस्तु के कारण पर्यवेक्षक की दृष्टि से ओझल हो  जाती है।

1988 और 2016 के बीच प्लूटो द्वारा किए गए ऐसे 12 तारकीय प्रच्छादनों (स्टेलर ऑकल्टेशन्स) के संकलन ने इस अवधि के दौरान वायुमंडलीय दबाव में तीन गुना  मोनोटोनिक वृद्धि दिखाई।   

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज –एआरआईईएस), नैनीताल के सदस्यों सहित वैज्ञानिकों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम ने प्लूटो की सतह पर वायुमंडलीय दबाव का सटीक मूल्यांकन प्राप्त करने के लिए अपने अवलोकनों में प्रयुक्त परिष्कृत उपकरणों से प्राप्त सिग्नल-टू-शोर अनुपात प्रकाश वक्र का उपयोग किया।

यह पृथ्वी पर औसत समुद्र तल पर वायुमंडलीय दबाव से 80,000 गुना कम - अर्थात 12.23 माइक्रोबार पाया गया। उन्होंने यह भी पाया कि सतह पर दबाव प्लूटो के मौसमी सर्वाधिक स्तर के करीब है।

'एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स (एपीजेएल)' में प्रकाशित शोध से पता चला है कि 2015 के मध्य से ही प्लूटो का वातावरण अपने सर्वाधिक स्तर के करीब एक पठारी चरण में है एवं 2019 में प्लूटो वाष्पशील परिवहन मॉडल द्वारा पहले गणना किए गए मॉडल मूल्यों के अनुरूप उत्कृष्ट स्थिति में है।

टीम ने आगे बताया कि यह ऑकल्टेशन् विशेष रूप से सामयिक था, क्योंकि यह प्लूटो के वायुमंडल के विकास के मौजूदा मॉडलों की वैधता का परीक्षण कर सकता है। 

अध्ययन पहले के उन निष्कर्षों की भी पुष्टि करता है कि प्लूटो पर बड़े डिप्रेशन के कारण यह ग्रह ऐसे तीव्र मौसमी सोपानों (एपिसोडस) से ग्रस्त है जिन्हें स्पुतनिक प्लैनिटिया के रूप में जाना जाता है।

प्लूटो के ध्रुव दशकों तक स्थायी सूर्य के प्रकाश या अंधेरे में 248 साल की लंबी कक्षीय अवधि में बने रहते हैं जिससे इसके नाइट्रोजन (एन 2) वातावरण पर तीव्र  प्रभाव पड़ता है जो मुख्य रूप से सतह पर एन 2 बर्फ के साथ वाष्प दबाव संतुलन द्वारा नियंत्रित होता है।

इसके अतिरिक्त जैसा कि पृथ्वी से देखा जाता है कि प्लूटो अब गेलेक्टिक प्लेन से दूर जा रहा है तथा क्षुद्र ग्रह द्वारा हो रहे तारकीय प्रच्छादन (स्टेलर ऑकल्टेशन्स)   अब तेजी से दुर्लभ होते जा रहे हैं  जिसके कारण यह घटना निर्णायक बन गई है। 

 

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