क्या सूखे को याद रख सकते हैं पेड़-पौधे, कैसे करते हैं वो इससे अपना बचाव

पौधों में न तो कोई मस्तिष्क और न ही किसी तरह की तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं, फिर वो खुद को कैसे सूखे से बचाते हैं

By Lalit Maurya

On: Tuesday 30 March 2021
 

पेड़ पौधे, सूखे की स्थिति में अपना बचाव कैसे करते हैं, क्या उन्हें इसके बारे में जानकारी होती है? आप को जानकर हैरानी होगी कि पौधों में न तो कोई मस्तिष्क और न ही किसी तरह की तंत्रिका कोशिकाएं (नर्व सेल्स) होती हैं। ऐसे में वो कैसे सूखे की स्थिति का कैसे पता लगाते हैं और उससे बचने के लिए क्या रणनीति अपनाते हैं यह जानकारी मायने रखती है।

लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस सवाल का उत्तर ढूंढ लिया है। सूखे के दौरान पौधे संकेत देने वाले एक मॉलेक्यूल  का उपयोग करते हैं जो उन्हें एक एक प्रकार की स्मृति प्रदान करता है जिससे वो जान पाते हैं कि दिन कितना शुष्क था।

यह ऐसा ही है जैसे जानवर अपने शरीर में से पानी के नुकसान को सीमित करने के लिए करते हैं। रेनर हेडरिच और उनकी टीम द्वारा किया यह शोध एडिलेड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के सहयोग से किया गया है, जोकि जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ है।

शोध से पता चला है कि सूखे को याद रखने के लिए पौधे 'गाबा' (गामा-एमिनोब्यूट्रिक एसिड) नामक संकेत देने वाले मॉलेक्यूल का उपयोग करते हैं। दिन में सूखे की स्थिति जितनी विकट होती है उतना ही ज्यादा यह गामा-एमिनोब्यूट्रिक एसिड पौधे के उत्तकों में जमा होता जाता है और अगली सुबह गाबा की यह मात्रा निर्धारित करती है कि पौधे अपनी पत्तियों में मौजूद छिद्रों को कितना चौंड़ा खोलते हैं।

कैसे करते हैं पौधे सूखे का सामना

इन छिद्रों की शुरुवाती चौड़ाई पानी के नुकसान को सीमित कर सकती है। गौरतलब है कि गाबा नामक यह संकेतक मॉलेक्यूल मनुष्यों और जानवरों में भी होता है। वो उनके तंत्रिका तंत्र का हिस्सा होता है पर चूंकि पौधों में यह तंत्र नहीं होता और न ही मस्तिष्क होता है ऐसे में यह मॉलेक्यूल पौधों में स्मृति का काम करता है।

रेनर हेडरिच ने एक और कनेक्शन को उजागर किया है। इसे छोटी अवधि की स्मृति कहते हैं। जैसे कितनी बार वीनस फ्लाईट्रैप का शिकार उसको छूता है वो उसे गिनने के लिए अपने सेल में मौजूद कैल्शियम के स्तर पर निर्भर करती है। इसी तरह कैल्शियम का स्तर पौधों में गाबा के एंजाइमेटिक जैवसंश्लेषण को नियंत्रित करता है।

शोधकर्ताओं ने गाबा को समझने के लिए जौ, सोयाबीन और सेम जैसी फसलों पर इसका अध्ययन किया है। उन्होंने बताया कि गाबा के चलते उन पौधों की पत्तियां में छिद्र नहीं खुले थे। प्रयोगशाला में जब म्युटेशन के कारण पौधों में अधिक गाबा उत्पादित हुआ तो वहां भी उन्होंने इसी तरह की प्रतिक्रिया की थी। इस प्रयोग में लम्बे सूखे की स्थिति में भी पौधों को जीवित रहने के लिए कम पानी की जरुरत पड़ी थी।

जिस तरह से जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ रहा है और सूखे की स्थिति कहीं ज्यादा व्यापक होती जा रही है। साथ ही आबादी भी तेजी से बढ़ रही है ऐसे में पौधों के व्यवहार को समझना बहुत मायने रखता है। आज न केवल गर्मी और सूखा फसलों को प्रभावित कर रहा है साथ ही धरती पर पानी की बढ़ती किल्लत भी फसलों के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। ऐसे में इसकी मदद से भविष्य में नई किस्मों की जरुरत होगी जो कम पानी में भी ज्यादा उपज देती हो। जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों की जरुरत को पूरा किया जा सके।

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