क्या सच में 25 करोड़ वर्षों में बढ़ती गर्मी से धरती पर मिट जाएगा इंसानों का अस्तित्व

इस दौरान पृथ्वी की क्रस्ट पर टेक्टोनिक गतिविधियां बेहद बढ़ जाएंगी और सभी महाद्वीप आपस में मिलकर एक सुपरकॉन्टिनेंट 'पैंजिया अल्टिमा' को जन्म देंगे

By Lalit Maurya

On: Friday 29 September 2023
 

वैज्ञानिकों की मानें तो अगले 25 करोड़ वर्षों में धरती इतनी ज्यादा गर्म हो जाएगी कि वो इंसानों के साथ-साथ दूसरे अन्य स्तनधारियों के रहने योग्य नहीं रह जाएगी। धरती पर महाप्रलय के सम्बन्ध में यह जानकारी ब्रिस्टल विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए अध्ययन में सामने आई है। भविष्य में जलवायु से जुड़ी इतनी बड़ी गणना को अंजाम देने के लिए वैज्ञानिकों ने सुपर कंप्यूटर की मदद ली है, जिसकी मदद से उन्होंने भविष्य के जलवायु मॉडल को बनाया है।

इस रिसर्च से पता चला है कि कैसे समय के साथ सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली ऊर्जा की मात्रा आज के मुकाबले 2.5 बढ़ जाएगी, क्योंकि सूर्य पहले से कहीं ज्यादा चमकीला हो जाएगा। इसकी वजह से तापमान इतना ज्यादा बढ़ जाएगा कि वो पृथ्वी पर रहने वाले ज्यादतर स्तनधारियों को खत्म कर देगा। अनुमान है कि इस दौरान तापमान 70 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा।

इतना ही नहीं वैज्ञानिकों के अनुसार इस दौरान पृथ्वी की पपड़ी में भूवैज्ञानिक गतिविधियां तेज हो जाएंगी। इसकी वजह से दुनिया के सभी महाद्वीप, एक विशाल महाद्वीप बनने के लिए आपस में जुड़ेंगे। वैज्ञानिकों ने इस दौरान बनने वाले सुपरकॉन्टिनेंट को 'पैंजिया अल्टिमा' नाम दिया है।

लेकिन इससे बढ़ते तापमान में कैसे इजाफा होगा, वैज्ञानिकों ने इसका भी जवाब अपनी रिसर्च में दिया है। पता चला है कि इस सुपरकॉन्टिनेंट के गठन से भू-वैज्ञानिक घटनाएं तेज जो जाएंगी। अनुमान है कि इसकी वजह से ज्वालामुखी विस्फोट की घटनाएं बढ़ जाएंगी, जिससे वायुमंडल में बड़े पैमाने पर कार्बन डाइऑक्साइड मुक्त होगी, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देगी।  इतना ही नहीं इसकी वजह से वातावरण पहले से कहीं ज्यादा शुष्क हो जाएगा।

गौरतलब है कि करीब 6.6 करोड़ वर्ष पहले ऐसी ही एक घटना ने धरती पर जीवन को भारी नुकसान पहुंचाया था, जिसमें डायनासोर जैसे शक्तिशाली जीवों का अस्तित्व मिट गया था। हालांकि देखा जाए तो मनुष्य और स्तनधारी जीवों मौसम की चरम परिस्थितियों के साथ तालमेल स्थापित करने की अपने क्षमता के कारण इतने समय तक अपने अस्तित्व को जीवित रख पाए हैं।

उदाहरण के लिए कुछ जीवों में बेहद सर्द मौसम को सहने के लिए फर और हाइबरनेटिंग जैसे अनुकूलन उपाय विकसित हुए हैं। इसी तरह मनुष्य और दूसरे स्तनधारियों ने ठंडे तापमान का बेहतर ढंग से सामना करने के लिए खुद को अनुकूलित कर लिया है, लेकिन अत्यधिक गर्मी को सहन करने की उनकी क्षमता अभी भी पहले जैसी ही है।

इसका मतलब है कि बहुत अधिक तापमान के लंबे समय तक संपर्क में रहना उनके लिए बेहद चुनौतीपूर्ण होगा, और यदि यह जलवायु सिमुलेशन सच हो जाता है, तो इंसानों समेत सभी स्तनधारियों के लिए जीवित रहना करीब-करीब नामुमकिन हो जाएगा।

इस बारे में ब्रिस्टल विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर अलेक्जेंडर फार्नस्वर्थ का कहना है कि इस सुपरकॉन्टिनेंट के निर्माण से तीन प्रमुख चुनौतियां पैदा होंगी। पहला सभी महाद्वीप आपस में मिल जाएंगे, जिससे उथल-पुथल होगी, दूसरा सूर्य पहले से ज्यादा गर्म हो जाएगा और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा।

इनका परिणाम यह होगा कि ग्रह के अधिकांश हिस्से में तापमान बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा। इसकी वजह से स्तनधारियों के लिए भोजन और पानी की उपलब्धता बेहद कम हो जाएगी, साथ ही वातावरण रहने के लिए बेहद कठिन हो जाएगा। जो जीवों के विनाश की वजह बनेगा।

उनके मुताबिक इस दौरान औसत तापमान 40 से 50 डिग्री सेल्सियस के बीच होगा जो दिन के समय कहीं ज्यादा जानलेवा होगा। नतीजन हम अपने शरीर को पसीने की मदद से ठंडा रखने में असमर्थ हो जाएंगें। इसकी वजह से इंसानों और दूसरे जीवों के लिए खतरा पैदा हो जाएगा।

बढ़ते तापमान से पहले ही बिगड़ रही है स्थिति

हालांकि अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित इस रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि जब सुपरकॉन्टिनेंट बनेगा, तो धरती पर केवल आठ से 16 फीसदी जमीन ही स्तनधारियों के रहने योग्य होगी। लेकिन साथ ही उस दौरान वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 600 पीपीएम से ज्यादा हो सकता है। मतलब की उन क्षेत्रों में भी परिस्थितियां बेहद विकट होंगी।

देखा जाए तो इस रिसर्च में भविष्य को लेकर जो तस्वीर प्रस्तुत की है वो बेहद भयावह है। लेकिन मौजूदा समय में जिस तरह से वैश्विक तापमान और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि हो रही है वो पहले ही पृथ्वी पर जीवन के लिए परिस्थितियां बेहद प्रतिकूल बना रही हैं।

आज वातावरण में सीओ2 का स्तर पहले ही 400 पीपीएम पर पहुंच चुका है। ऊपर से बढ़ता तापमान नित नई ऊंचाइयों को छू रहा है। इसकी वजह से हर दिन आपदाओं का खतरा बढ़ रहा है। ऐसे में यदि इस पर अभी ध्यान न दिया गया तो दूर भविष्य में ही नहीं आने वाले कुछ वर्षों में ही स्थिति बेहद गंभीर हो सकती है।

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