भारतीय खगोलविदों ने ब्लेजर टन 599 के बारे में लगाया पता, क्या है यह ब्लेजर

ब्लेजर एक सक्रिय, विशाल अण्डाकार आकाशगंगाओं के केंद्रों पर विशाल या सुपरमैसिव ब्लैक होल (एसएमबीएच) से जुड़े बहुत ठोस क्वेसार हैं

By Dayanidhi

On: Thursday 30 December 2021
 

भारत में बैंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स के खगोलविदों ने टन 599 नामक एक ब्लेज़र का गामा-किरण प्रवाह से इसमें होने वाले बदलाव का अध्ययन किया। शोधकर्ताओं ने इसके लिए नासा के फर्मी अंतरिक्ष यान का उपयोग किया। 

ब्लेजर एक सक्रिय, विशाल अण्डाकार आकाशगंगाओं के केंद्रों पर विशाल या सुपरमैसिव ब्लैक होल (एसएमबीएच) से जुड़े बहुत ठोस क्वेसार हैं। क्वेसार सक्रिय आकाशगंगाओं के एक बड़े समूह से संबंधित हैं जो सक्रिय आकाशगंगा के नाभिक (एजीएन) की मेजबानी करते हैं। इनके स्रोत सबसे अधिक आकाशगंगा के बाहर उत्पन्न होने वाली या एक्सट्रैगैलेक्टिक गामा-किरणे हैं। उनकी विशेषताएं जेट के सापेक्ष होती हैं जो लगभग पृथ्वी की ओर झुकी होती हैं।

अपने ऑप्टिकल उत्सर्जन गुणों के आधार पर, खगोलविद ब्लेजर को दो वर्गों में विभाजित करते हैं, पहला फ्लैट-स्पेक्ट्रम रेडियो क्वेसार (एफएसआरक्यू) जिसमें प्रमुख और व्यापक ऑप्टिकल उत्सर्जन लाइनें होती हैं और दूसरा बीएल लैकर्टे ऑब्जेक्ट्स (बीएल लैस), जिसमें लाइनें नहीं होती हैं।

0.725 के रेडशिफ्ट पर, टन 599, जिसे 4 एफजीएल  जे1159.5+2914 के रूप में भी जाना जाता है। यह एक अत्यधिक ध्रुवीकृत और अत्यधिक वैकल्पिक रूप से प्रचंड बदलने वाला एफएसआरक्यू है। 2017 में यह पूर्ण विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में फैली एक लंबी चमकदार स्थिति से होकर गुजरी थी। हाल ही में, जुलाई से सितंबर 2021 तक, क्वेसार ने गामा-किरणों में एक उभरती चमक पैदा की।

भूमिका राजपूत और अश्विनी पांडे ने ब्लेजर की गामा-किरण के उत्सर्जन प्रक्रिया की जांच करने और दमक की स्थिति के दौरान इसके परिणामों की जांच की। खगोलविदों ने फर्मी का उपयोग करते हुए टन 599 का निरीक्षण करने का निर्णय लिया। इस काम को तब अंजाम दिया गया जब टन 599 ने हाल ही में चमकती हुई अवस्था में प्रवेश किया।

खगोलविदों ने कहा कि हम यहां ब्लेजर टन 599 के हमारे गमा-किरण के प्रवाह और वर्णक्रमीय परिवर्तनशीलता के अध्ययन के परिणाम प्रस्तुत कर रहे हैं।

फर्मी के आंकड़ों से, राजपूत और पांडे ने लगभग एक वर्ष (सितंबर 2020 से अगस्त 2021) की अवधि के दौरान टन 599 का एक दिवसीय बिन्ड लाइट कर्व उत्पन्न किया। अंतिम गामा-किरण प्रकाश वक्र में इस ब्लेज़र के 256 माप शामिल हैं। उन्होंने बताया कि इस अवधि में अधिकतम गामा-किरण प्रवाह 0.0000224 पीएच /सेमी2/एस के स्तर पर था।

अवलोकनों के आधार पर, खगोलविदों ने टन 599 के विभिन्न प्रवाह की स्थितियों के तीन समय अन्तरालों की पहचान की। स्थिर, चमक से पहले और चमक के दौरान। गामा-किरणों के प्रवाह में सबसे बड़ी विविधता मुख्य-चमकदार अंतराल (लगभग 0.35 प्रतिशत) पाया गया, जबकि चमक से पहले वाले अंतराल के दौरान, स्रोत ने 0.22 प्रतिशत के स्तर पर प्रवाह में भिन्नता प्रदर्शित की। हालांकि, आधे समय के अंतराल में कोई महत्वपूर्ण प्रवाह भिन्नता नहीं पाई गई।

शोधकर्ताओं ने पाया कि लॉग परबोला (एलपी) मॉडल तीनों युगों के दौरान टन 599 के गामा-रे स्पेक्ट्रा का सबसे अच्छा वर्णन करता है। यह इंगित करता है कि इस ब्लेजर के जीईवी गामा-किरणों का स्पेक्ट्रम घुमावदार है।

खगोलविदों ने कहा कि यह भी अनुमान है कि गामा-किरण उत्सर्जक क्षेत्र का आकार लगभग 103 बिलियन किलोमीटर है। उन्होंने कहा कि टन 599 के गामा-रे उत्सर्जक बूंद का स्थान इसके ब्रॉड लाइन क्षेत्र (बीएलआर) के बाहर हो सकता है। यह शोध एआरक्सिव प्री-प्रिंट सर्वर में प्रकाशित हुआ है।

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