वैज्ञानिकों ने खोजा नया जीव, जिंदा रहने के लिए नहीं लेता ऑक्सीजन
वैज्ञानिकों की यह खोज दर्शाती है कि जीवों का विकास अजब तरीके से हो रहा है जो प्रकृति के विपरीत भी जा सकता है
On: Wednesday 26 February 2020
प्रकृति अपने अंदर कितने रहस्यों को छुपाये हुए है, इसके बारे में कोई सही सही नहीं जानता। जितना हम इसे समझते जाते हैं, उतनी ही नयी चीजें हमारे सामने आती जाती हैं। यह एक बात तो साबित करता है कि प्रकृति ही जीवन का सार है। बिना इसके हमारा जीवन संभव ही नहीं है। हर दिन इसके विषय में होती नयी खोज इसके महत्व को और प्रगाढ़ करती जाती है। इसी सिलसिले में एक नयी कड़ी जोड़ता है, वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया यह नया जीव, जिसका व्यवहार प्रकृति के नियमों के विपरीत है। यह नयी खोज दर्शाती है कि जीवो का विकास अजब तरीके से हो रहा है।
खोजा गया यह जीव अब अपनी ऊर्जा के लिए ऑक्सीजन का प्रयोग करना छोड़ चुका है। जेलिफ़िश का यह छोटा रिश्तेदार एक परजीवी है, जोकि सालमोन मछली के टिश्यू में पाया जाता है। इस जीव की खोज तेल अवीव विश्वविद्यालय (टीएयू) के शोधकर्ताओं द्वारा की गयी है। यह परजीवी अपनी ऊर्जा के लिए सांस के रूप में ऑक्सीजन नहीं लेता है। इस अप्रत्याशित खोज ने जानवरों की दुनिया के बारे में विज्ञान की पूरी धारणा को ही बदल दिया है।
इस शोध का नेतृत्व टीएयू के फैकल्टी ऑफ लाइफ साइंसेज और स्टाइनहार्ड म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री में प्रो डोरोथे हचोन ने किया है। जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल पनास में प्रकाशित हुआ है। आकार में अत्यंत छोटा यह परजीवी जिसका शरीर 10 से भी कम कोशिकाओं से बना है। इसे हेन्नेगुया सैल्मिनिसोला नाम दिया गया है। यह परजीवी जेलिफ़िश और कोरल्स के परिवार से सम्बन्ध रखता है। लेकिन अब इसका विकास इस तरह हो चुका है कि यह अपनी सांस के साथ ऑक्सीजन लेना छोड़ चुका है और यह शारीरिक ऊर्जा के उत्पादन के लिए ऑक्सीजन पर निर्भर नहीं है।
आखिर क्यों बदल रहा है जीवों का व्यवहार
वैज्ञानिकों के अनुसार कुछ अन्य जीव जैसे फफूंद (फंगी), अमीबा समय के साथ अपनी सांस लेने की क्षमता खो चुके हैं। इस नए अध्ययन के अनुसार इस जीव के साथ भी ऐसा ही हो सकता है। संभवतः क्योंकि परजीवी ऐसे वातावरण में रहते हैं जहां ऑक्सीजन की कमी होती है। ऑक्सीजन के बिना इसके जीवित रहने की इस क्षमता की खोज अचानक ही हो गयी। प्रो डोरोथे और उनकी टीम हेन्नेगुया के जीनोम को इकठ्ठा कर रहे थे, जब उन्हें पता चला कि इस जीव में माइटोकॉन्ड्रियल जीनोम शामिल नहीं है।
गौरतलब है कि माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकाओं का पावरहाउस होता है जो ऑक्सीजन की मदद से ऊर्जा का निर्माण करता है। इसकी गैर मौजूदगी इस बात का संकेत है कि यह जीव सांस के रूप में ऑक्सीजन नहीं ले रहा था। हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है कि यह जीव अपनी ऊर्जा किस तरह बनाता है।
प्रो डोरोथे ने बताया कि अपने विकास के साथ जीवों की संरचना और जटिल होती जाती है। अवधारणा है कि एकल और बहु कोशिकीय जीव आज पृथ्वी पर मौजूद जटिल जीवों के पूर्वज हैं। लेकिन आज हमारे सामने एक ऐसा जीव है जिसका विकास इसके विपरीत हो रहा है। उसमें माइटोकॉन्ड्रियल जीनोम की अनुपस्थिति दर्शाती है कि यह जटिल जीव अब एक साधारण जीव में बदल गया है। अब तक यही माना जाता रहा है कि धरती पर जीवन के लिए ऑक्सीजन सबसे जरुरी घटकों में से एक है। जिसके बिना जीवन संभव नहीं है। पृथ्वी पर भी जीवन तभी संभव हो सका है जब वहां ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ गयी थी और वो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थी। पर इस जीव की खोज ने इस बहस को फिर से हवा दे दी है कि क्या जीवों का विकास ऑक्सीजन के बिना भी हो सकता है।