वैज्ञानिकों ने बनाई नई पैकेजिंग सामग्री, प्लास्टिक से मिलेगा छुटकारा

भारतीय वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक के विकल्प के रूप में पर्यावरण के अनुकूल बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक विकसित किया है

By Dayanidhi

On: Thursday 07 October 2021
 

पेट्रोलियम आधारित सामग्री के बदले जैव-पोलिमेरिक सामग्री के विकास का अत्यधिक महत्व रहा है। पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक सामग्री का उपयोग आमतौर पर पैकेजिंग में किया जाता है क्योंकि वे कुछ विशेषताओं जैसे कुछ हद तक मजबूत, पारदर्शी, कम लागत और हल्के वजन के होते हैं। हालांकि, पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्री आसानी से नष्ट नहीं होती है और यह धरती पर ठोस कचरे के रूप में एकत्र होने से एक गंभीर समस्या के रूप में देखी जा रही है।

इस तरह के प्लास्टिक के हमारे पर्यावरण में हानिकारक परिणाम सामने आए हैं और इसे एक खतरे के रूप में देखा जा सकता है। म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट में 12 फीसदी प्लास्टिक होता है और इस कचरे को जलाने के बाद, हानिकारक जहरीली गैसें जैसे डाइऑक्सिन, फ्यूरान, मरकरी और पॉलीक्लोरिनेटेड बाई फिनाइल वातावरण में मिल जाती हैं।

अब वैज्ञानिकों ने इस समस्या से निजात पाने के लिए तथा प्लास्टिक के विकल्प के रूप में पर्यावरण के अनुकूल बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक विकसित की है, जिसके उपयोग पैकेजिंग सामग्री के रूप में किया जा सकता है। यह कारनामा भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने कर दिखाया है।

वैज्ञानिकों ने ग्वार गम और चिटोसन का उपयोग करके पर्यावरण के अनुकूल बायोडिग्रेडेबल पॉलिमर विकसित किया है। यह पॉलिमर ग्वार बीन्स, केकड़े और झींगा से निकाले गए पॉलीसेकेराइड से बना हैं। इसमें पानी को सहन करने की बहुत अधिक क्षमता है अर्थात यह पानी से खराब नहीं होता है। यह ग्वार गम-चिटोसन फिल्म कठोर पर्यावरणीय परिस्थितियों में पैकेजिंग के उपयोग के लिए बहुत अच्छा है।

पॉलीसेकेराइड पैकेजिंग सामग्री उच्च क्षमता वाले बायोपॉलीमर में से एक है। हालांकि, पॉलीसेकेराइड की कुछ कमियों के कारण, जैसे कम यांत्रिक गुण, पानी में तेजी से घुलनशील होना और कम अवरोध गुण होने की वजह से उन्हें पसंद नहीं किया जाता है।

फोटो : कार्बोहाइड्रेट पॉलीमर टेक्नोलॉजीज एंड एप्लीकेशन जर्नल

पॉलीसेकेराइड की इन चुनौतियों को दूर करने के लिए, इंस्पायर जूनियर रिसर्च फेलो, एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. देवाशीष चौधरी और सज्जादुर रहमान ने एक ग्वार गम-चिटोसन के मिश्रण से बनी एक झिल्ली या फिल्म बनाई, जो एक क्रॉस-लिंक्ड पॉलीसेकेराइड है, जिसमें किसी भी तरह के प्लास्टिसाइज़र का उपयोग नहीं किया गया है। जिसे क्रॉस-लिंक्ड पॉलीसेकेराइड के रूप में जाना जाता है।

यह विधि पॉलीमर झिल्ली या फिल्म बनाने की एक सरल तकनीक कहलाती है। इस बायोपॉलीमर मिश्रित फिल्म में पानी को सहने की क्षमता, मजबूत और कठिन पर्यावरणीय परिस्थितियों में इसका उपयोग किया जा सकता है। यह शोध हाल ही में 'कार्बोहाइड्रेट पॉलीमर टेक्नोलॉजीज एंड एप्लीकेशन' जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि इस क्रॉस लिंक्ड फिल्म का पानी में परीक्षण किया गया जो 240 घंटे के बाद भी पानी में नहीं घुली। इसके अलावा, क्रॉस लिंक्ड ग्वार गम-चिटोसन के मिश्रण (कम्पोजिट) से बनी फिल्म की यांत्रिक शक्ति सामान्य बायोपॉलीमर की तुलना में बहुत अधिक है। यहां बताते चले कि बायोपॉलीमर बहुत कमजोर होते हैं। क्रॉस-लिंक्ड ग्वार गम-चिटोसन कम्पोजिट फिल्म भी 92.8 डिग्री के उच्च संपर्क कोण के कारण अत्यधिक जल प्रतिरोधी या हाइड्रोफोबिक है।

बेहतर मजबूती, पानी को दूर रखने के गुण और क्रॉस-लिंक्ड ग्वार गम-चिटोसन से बनी यह सामग्री कठोर पर्यावरणीय परिस्थितियों का सामना कर पैकेजिंग में उपयोग किए जाने के लिए तैयार है।

Subscribe to our daily hindi newsletter