क्या पानी से हटाया जा सकता है कोरोनावायरस, वैज्ञानिकों ने की रिसर्च

वैज्ञानिकों ने कहा है कि संक्रमण वाले स्थानों में मौजूदा वाटर ट्रीटमेंट और वैस्ट्वॉटर ट्रीटमेंट के बुनियादी ढांचे में सुधार किया जाना चाहिए

By Dayanidhi

On: Monday 06 April 2020
 

नोवल कोरोनोवायरस को पानी से हटाना जरुरी ताकि संक्रमण फैलने से रोका जा सके 

वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि कोविड-19 महामारी के लिए जिम्मेवार सार्स-सीओवी-19 वायरस सहित कोरोनावायरस, सीवेज और पीने के पानी में अधिक दिनों तक जीवित रह सकते हैं। वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाने का प्रयास किया कि क्या पानी को ट्रीटमेंट के जरिए वायरस मुक्त किया जा सकता है? 

शोधकर्ताओं ने बताया कि वायरस सूक्ष्म पानी की बूंदों से, वाष्पीकरण या स्प्रे के माध्यम से हवा में प्रवेश करते हैं। यह शोध एनवायर्नमेंटल साइंस : वाटर रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं की इस टीम में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, रिवरसाइड में रासायनिक और पर्यावरण इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हैजोउ लियू और सालेर्नो विश्वविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर विन्केन्ज़ो नादादेओ शामिल हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक 2003 में हांगकांग में सार्स के प्रकोप के दौरान सीवेज के रिसाव से पानी की छोटी बूंदे एरसोल के माध्यम से हवा में पहुंच गई थी, जिसके कारण इस बीमारी के मामले बढ़ गए थे। हालांकि कोविड-19 के अभी तक सामने आए मामलों में कोई भी सीवेज रिसाव होने के कारण नहीं हुआ है, नोवल कोरोनोवायरस संक्रमित व्यक्ति के निकट आने से फैलता है।

नोवल कोरोनोवायरस पानी की लाईन, जैसे फुहारे के माध्यम से हवा में फैल सकता है जिसे शॉवरहेड्स एयरोसोल ट्रांसमिशन कहा जाता है। इस तरह के माध्यम बैक्टीरिया के संपर्क का एक प्रमुख स्रोत माने जाते हैं।

अध्ययन के मुताबिक, अधिकांश वाटर ट्रीटमेंट पीने और अपशिष्ट जल दोनों में प्रभावी ढ़ंग से कोरोनावायरस को मारने या हटाने के लिए जाने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि पानी को साफ करने के लिए उपयोग किया जाने वाला केमिकल हाइपोक्लोरस एसिड या पेरासिटिक एसिड के साथ ऑक्सीकरण होने, और पराबैंगनी विकिरण के साथ-साथ क्लोरीन द्वारा कोरोनावायरस को मार दिया जाता है। वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स में मेम्ब्रेन बायोरिएक्टर का उपयोग होता हैं, जो ठोस, अपशिष्ट पदार्थों को अलग करने के साथ-साथ विषाणुओं को छान देता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि संक्रमण वाले स्थानों में मौजूदा वाटर ट्रीटमेंट और वैस्ट्वॉटर ट्रीटमेंट के बुनियादी ढांचे में सुधार किया जाना चाहिए। अस्पताल, सामुदायिक क्लीनिक और नर्सिंग होम जैसे स्थानों से सीवेज के द्वारा कोरोनवायरस वाटर ट्रीटमेंट तक पहुंच सकता है। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में, ऊर्जा-कुशल, प्रकाश-उत्सर्जक, डायोड-आधारित, पराबैंगनी प्रणाली का उपयोग किया जाना चाहिए ताकि पानी कीटाणुरहित हो जाए। 

घरों में जीवाणुनाशक, विषाणुनाशक और कीटाणुनाशक के अधकि उपयोग से पर्यावरण में एंटीबायोटिक प्रतिरोधी जीवाणुओं की वृद्धि होने की आशंका है। ट्रीटमेंट प्लांट की मदद से साफ किए गए जल की सावधानीपूर्वक निगरानी की जानी चाहिए ताकि उसका असर प्राकृतिक जलमार्गों पर न हो। लियू और नादादेओ ने रसायनज्ञों, पर्यावरण इंजीनियरों, माइक्रोबायोलॉजिस्ट और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को सुरक्षित पेयजल और स्वस्थ जलीय वातावरण के लिए व्यावहारिक समाधान विकसित करने का आग्रह किया है।

विकासशील देशों और अत्यधिक विकसित देशों के कुछ क्षेत्रों के अंदर, जैसे कि ग्रामीण और गरीब समुदाय, जिनके पास पानी में से आम प्रदूषणों को हटाने के लिए बुनियादी चीजों की कमी है, ऐसे में वे सार्स-सीओवी-19 को कैसे हटा सकते हैं। ऐसे स्थानों पर वैश्विक व्यापार और यात्रा के माध्यम से आसानी से कोविड-19 फैल सकता है। लियू और नादादेओ सुझाव देते हुए कहते हैं कि, विकसित देशों की सरकारों को जहां भी जरूरत हो, वहां पानी और सफाई व्यवस्था में सहयोग करना चाहिए।

अब यह स्पष्ट है कि वैश्वीकरण से स्वास्थ्य के लिए नए खतरे पैदा होते है। जहां पानी और सफाई व्यवस्था पर्याप्त नहीं है, वहां नए वायरस मिलने का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है। विकसित देशों की सरकारों को विकासशील देशों में स्वास्थ्य सुविधाओं, पानी और सफाई व्यवस्था आदि में सहयोग करना चाहिए, ताकि उनके अपने देशों के नागरिकों की भी रक्षा हो सके।

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