आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों की खोज, थर्मोकोल और कंक्रीट से बनेगी इमारतें

इस विशेष सामग्री से बनी इमारतें भूकंप से सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ अंदरूनी हिस्सों को गर्म वातावरण में ठंडा और ठंड की स्थिति में गर्म रखने में मददगार हैं।

By Dayanidhi

On: Tuesday 24 August 2021
 
फोटो : विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय

भारत के किसी न किसी हिस्से में अक्सर भूकंप आता रहता है। भूकंप से सबसे अधिक जान-माल का नुकसान इमारतों के भूकंप के झटकों से टूटने तथा उसमे लोगों के दब जाने के कारण होता है। अब भारतीय शोधकर्ताओं ने भूकंप से बचने के लिए इमारतें बनाने की ऐसी सामग्री विकसित की है, जो भूकंप के झटकों को सहने के साथ-साथ गर्मी या जाड़े में भी आरामदायक होंगी।

थर्मोकोल थर्मल इन्सुलेशन के साथ भूकंप प्रतिरोधी इमारतों के निर्माण के लिए उपयोग किया जा सकता है। यह आने वाले समय में इमारतें बनाने के लिए निर्माण सामग्री विकसित करने के साथ-साथ आवश्यक ऊर्जा को भी बचा सकता है।

यह कारनामा आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने कर दिखाया है। शोधकर्ताओं ने कंक्रीट मिश्रण सामग्री के साथ थर्माकोल या विस्तारित पॉलीस्टाइनिन (ईपीएस) का उपयोग करके इसे बनाया है। उन्होंने बताया कि इसका उपयोग करके चार मंजिला इमारतों पर भूकंप के प्रभाव को रोका जा सकता है।

भारत सरकार का यह कार्यक्रम विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), की सहायता से विज्ञान और प्रौद्योगिकी (एस एंड टी) इंफ्रास्ट्रक्चर के सुधार के तहत किया गया है। राष्ट्रीय भूकंपीय परीक्षण सुविधा (एनएसटीएफ) के भूकंप इंजीनियरिंग विभाग की देख-रेख में आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने कंक्रीट की दो परतों के बीच थर्माकोल का उपयोग करके एक इमारत का निर्माण किया। इस पूरी निर्मित इमारत और इसके कई दीवारों का परीक्षण किया गया।

आदिल अहमद जो कि रिसर्च स्कॉलर है, इनकी अगुवाई में परीक्षण किए गए। अहमद ने पार्श्व बलों के तहत निर्माण के व्यवहार का मूल्यांकन किया, क्योंकि भूकंप मुख्य रूप से पार्श्व दिशा में एक भारी शक्ति का कारण बनता है। परीक्षण एक वास्तविक 4 मंजिला इमारत पर विस्तृत कंप्यूटर सिमुलेशन के साथ पूरा किया गया। शोध की देखरेख करने वाले प्रो. योगेंद्र सिंह ने बताया कि विश्लेषण से पता चलता है कि इस तकनीक से निर्मित चार मंजिला इमारत देश के सबसे भूकंपीय क्षेत्र (वी) में भी, बिना किसी अतिरिक्त संरचनात्मक समर्थन के भूकंप के झटकों को सहन करने में सक्षम है।

उन्होंने भूकंप के प्रभाव न पड़ने की पीछे ईपीएस परत के साथ कंक्रीट की दो परतों से बनाया जाना तथा इन्हें तार के जाल से मजबूती प्रदान करना बताया। शोधकर्ताओं ने कहा कि भूकंप के दौरान एक इमारत पर लगाया जाने वाला बल जड़त्व प्रभाव के कारण उत्पन्न होता है और इसलिए यह इमारत के द्रव्यमान पर निर्भर करता है। थर्माकोल इमारत के द्रव्यमान को कम करके भूकंप को रोक सकता है।

इस तकनीक में, एक कारखाने में ईपीएस कोर और तार के जाल से इसे मजबूती प्रदान कर इसका उत्पादन किया जाता है। इमारत के ढांचे को पहले कारखाने से बने कोर और मजबूत पैनलों से खड़ा किया जाता है और फिर ढांचे के कोर पर कंक्रीट का छिड़काव किया जाता है। इस तकनीक को किसी शटरिंग की आवश्यकता नहीं है और इसलिए इसे बहुत तेजी से बनाया जा सकता है।

भूकंप को रोकने के अलावा, एक इमारत की कंक्रीट की दीवारों में पॉलीस्टाइनिन कोर के उपयोग के परिणामस्वरूप गर्मी सम्बन्धी (थर्मल) आराम भी मिल सकता है। कोर आंतरिक और बाहरी वातावरण के निर्माण के बीच गर्मी को भेजने के खिलाफ आवश्यक इन्सुलेशन प्रदान करता है। यह इमारत के अंदरूनी हिस्सों को गर्म वातावरण में ठंडा और ठंड की स्थिति में गर्म रखने में मदद कर सकता है। भारत देश के विभिन्न हिस्सों में और वर्ष के विभिन्न मौसमों के दौरान तापमान में भारी बदलाव का सामना करना पड़ता है। इसलिए, संरचनात्मक सुरक्षा के साथ-साथ थर्मल आराम महत्वपूर्ण है।

इस तकनीक से भवनों के कार्बन फुटप्रिंट में भारी कमी आएगी साथ ही निर्माण सामग्री और ऊर्जा की बचत भी होती है। यह दीवारों और फर्श, छत से कंक्रीट की मात्रा के एक बड़े हिस्से को बदल देता है। बेहद हल्के ईपीएस के साथ कंक्रीट का यह प्रतिस्थापन न केवल द्रव्यमान को कम करता है, जिससे भवन पर लगने वाले भूकंप के झटकों को कम ही नहीं करता है बल्कि सीमेंट कंक्रीट के उत्पादन के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों और ऊर्जा पर बोझ भी कम हो जाता है।

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