वैज्ञानिकों ने बनाया रैपिड सेंसर, घाव में संक्रमण का लगा सकता है तेजी से पता

बहुत ही कम लागत वाले इन स्क्रीन प्रिंटेड कार्बन सेंसरों की मदद से घावों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का बड़ी तेजी से पता लगाया जा सकता है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 14 September 2021
 
कम लागत वाले रैपिड सेंसर; फोटो: स्ट्रेथक्लाइड विश्वविद्यालय

वैज्ञानिकों ने ऐसे रैपिड सेंसर को बनाने में सफलता हासिल की है जो घाव में हुए संक्रमण का तेजी से पता लगा सकते हैं। बहुत ही कम लागत वाले इन स्क्रीन प्रिंटेड कार्बन सेंसरों की मदद से घावों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का तेजी से पता लगाया जा सकता है। यह सेंसर रियल टाइम चिकित्सा उपकरणों का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।  

यूनिवर्सिटी ऑफ स्ट्रैथक्लाइड और एनएचएस आयरशायर एंड एरन द्वारा इस सेंसर पर शोध किया गया है।  जिसमें उन्होंने इस अत्यंत संवेदनशील पोर्टेबल इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसर का इस्तेमाल किया था, जो सिर्फ आधे घंटे के भीतर ही संक्रमण का पता लगा सकते थे। 

गौरतलब है कि इस काम के लिए जो मौजूदा गोल्ड स्टैंडर्ड परिक्षण की मदद ली जाती है उसके नतीजे आने में करीब 48 घंटों का समय लग जाता है। ऐसे में देखा जाए तो यह सेंसर बहुत तेजी से संक्रमण का पता लगा सकते हैं। यही नहीं वर्तमान में संक्रमण का पता लगाने के लिए जो विधि प्रयोग की जाती है वो काफी महंगी पड़ती है।

वैज्ञानिकों ने इन सेंसर को मधुमेह से ग्रस्त रोगियों पर टैस्ट किया था, जो पैर के अल्सर से ग्रस्त थे। स्ट्रेथक्लाइड विश्वविद्यालय द्वारा निर्मित इस सेंसर ने उन रोगियों में जीवाणु संक्रमण की उपस्थिति का तेजी से पता लगा दिया था। अपनी जांच के शुरुवाती चरणों में वैज्ञानिकों ने इस सेंसर को प्रोटियस मिराबिलिस को जांचने के लिए उपयोग किया था जोकि घावों में पाया जाने वाले सबसे आम जीवाणुओं में से एक है।  

यह बैक्टीरिया आमतौर पर इंसानी जठरांत्र पथ में पाया जाता है और शरीर के सामान्य माइक्रोफ्लोरा का हिस्सा बनता है। लेकिन जिन लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है या जिनके शरीर में घाव होता है उनमें यह बीमारी का कारण बन सकता है। 

कैसे काम करता है यह सेंसर

इस सेंसर में इलेक्ट्रोकेमिकल तकनीक का उपयोग किया गया है जो विद्युत सिग्नल आवृत्तियों की एक विस्तृत श्रृंखला पैदा करती है, जब यह प्रत्येक आवृत्ति बैक्टीरिया की परत से होकर गुजरती है तो सिग्नल में आई बाधा को माप लिया जाता है, जो एक स्पेक्ट्रा का निर्माण करती है। समय के साथ इन स्पेक्ट्रा में आए परिवर्तन की जांच की जा सकती है, जिसकी मदद से नमूने में मौजूद जीवाणु संबंधी सामग्री की जानकारी प्राप्त हो सकती है। 

देखा जाए तो घाव में होने वाले यह संक्रमण मरीजों के लिए एक बड़ा खतरा हैं। इसके कारण इलाज के समय, लागत और बीमारी में वृद्धि हो सकती है। आमतौर पर इलाज के दौरान रोगियों में होने वाला यह इन्फेक्शन संक्रमण का एक सामान्य रूप है। 

शोधकर्ताओं का मानना है कि यह तकनीक बहुत ही किफायती है। जो रियल टाइम में घाव की निगरानी कर सकती है और संक्रमण का तेजी से पता लगा पाने में सक्षम है। साथ ही यह इलाज के दौरान होने वाले संक्रमण का पता लगा सकती है और इसकी पहचान में लगने वाले समय को बहुत कम कर सकती है। 

इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता एडेन हानह ने बताया कि इलेक्ट्रोकेमिकल इम्पीडेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करके पहले भी अन्य जीवाणुओं की एक श्रंखला  का पता लगाया गया है, लेकिन यह पहला मौका है जब स्क्रीन प्रिंटेड कार्बन इलेक्ट्रोड का उपयोग करके वास्तविक समय में प्रोटियस मिराबिलिस की मौजूदगी का अध्ययन किया गया है। उनके अनुसार इसकी मदद से संक्रमण का बड़ी तेजी से रियल टाइम में पता लगाया जा सकता है। 

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