डाउन टू अर्थ खास: दिल्ली-एनसीआर में क्यों धंस रही है जमीन?

दिल्ली के कापसहेड़ा, फरीदाबाद के नाहर सिंह स्टेडयम सहित चार जगहों की लगातार निगरानी के बाद पाया गया कि इन जगहों पर जमीन धंस रही है

By Vivek Kumar Sah

On: Saturday 12 August 2023
 
सिंचाई के लिए अत्यधिक जल निकासी से हुए भू-धंसाव के कारण मोहाली के लंदरन गांव के लगभग सभी घरों में दरारें आ गई हैं (फोटो: प्रांशु प्रांजल)

“कापसहेड़ा की सभी आवासीय सोसायटी भूजल दोहन करती हैं। हमने कभी नहीं सोचा था कि इससे हमारी जमीन धंस जाएगी।” यह कहना है, भू-धंसाव से क्षुब्ध दक्षिण-पश्चिम दिल्ली की सूर्या विहार हाउसिंग सोसाइटी के अध्यक्ष राजेश गेरा का। उनकी सोसायटी इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से बमुश्किल 10 किमी की दूरी पर है।

2014 में सोसायटी की पार्किंग के एक खंभे में दरार आ गई थी। 2019 तक दरार इतनी चौड़ी हो गई थी कि पूरी इमारत को नुकसान पहुंच सकता था। इस साल जून में जब डाउन टू अर्थ ने सोसायटी का दौरा किया तो गेरा ने मरम्मत की गई दरार दिखाई, जो 1.5 मीटर से अधिक चौड़ी हो गई थी। वह कहते हैं, “हमने शुरू में इसे नजरअंदाज किया और घटिया निर्माण के लिए बिल्डर को दोषी ठहराया। लेकिन अब हम जान चुके हैं कि यह अत्यधिक भूजल दोहन के चलते भूमि धंसने के कारण हो रहा है।”

सोसायटी के निवासियों ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इमारत ढहने के खतरे के अलावा वे भूजल स्तर में भी तेजी से गिरावट देख रहे हैं। 2000 की शुरुआत में सोसायटी में 200 मीटर की गहराई वाले चार बोरवेल थे। साल 2020 तक उनमें से दो सूख गए।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, ब्रिटेन में शोधार्थी शगुन गर्ग ने 2020 में दिल्ली में भूजल निकासी और भू-धंसाव के बीच संबंध स्थापित किया था। उन्होंने पाया कि कापसहेड़ा में भूमि धंसाव 17 सेमी प्रति वर्ष अथवा स्मार्टफोन की लंबाई के बराबर हो रहा है। गर्ग इस निष्कर्ष पर तब पहुंचे जब उन्होंने 2014-16, 2016-18 और 2018-20 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चार स्थानों पर भूमि धंसाव दर की निगरानी की। उन्होंने पाया कि आवासीय सोसायटी के अलावा सूर्या विहार के फन एंड फूड वॉटरपार्क और फरीदाबाद के राजा नाहर सिंह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम व पीयूष महेंद्र मॉल में भी भू-धंसाव हुआ है।

हैदराबाद स्थित नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुख्य वैज्ञानिक विनीत के गहलोत कहते हैं, “भूजल आमतौर पर मिट्टी के छिद्रों या जलभरों (एक्वीफर) में रहता है। जब साल-दर-साल बड़ी मात्रा में भूजल निकाला जाता है तो छिद्रों में एक खालीपन पैदा हो जाता है। इससे मिट्टी ढह या सिकुड़ जाती है, नतीजतन भूमि धंस जाती है।” उन्होंने आगे बताया कि सिंधु-गंगा का मैदान जहां रेत और मिट्टी की विभिन्न परतें हैं, भू-धंसाव की अत्यधिक आशंका है।

दिस्रोत: नेशनल वाटर इन्फोर्मेटिक्स सेंटर ग्राउंडवाटर रिपोर्ट फॉर इंडियाल्ली के अलावा शोधकर्ताओं ने चंडीगढ़, अंबाला, गांधीनगर और कोलकाता सहित कई अन्य शहरों में भूमि धंसाव का अध्ययन किया है। ग्रामीण क्षेत्रों में भूजल दोहन के प्रभाव को समझने के लिए एकमात्र अध्ययन पंजाब और हरियाणा में हुआ है। पांच भारतीय शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किया गया यह अध्ययन अक्टूबर 2020 में स्प्रिंगर में प्रकाशित हुआ था। भोपाल स्थित वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सहायक प्रोफेसर व रिपोर्ट के एक लेखक प्रांशू प्रांजल बताते हैं, “कृषि क्षेत्र के अत्यधिक विकास के कारण इन दोनों राज्यों में सिंचाई के लिए भूजल पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ी है। हमने पाया है कि पंजाब और हरियाणा के कई गांवों के घरों में दरारें आई हैं।”

हालांकि दोनों राज्य शुष्क से अर्ध-शुष्क क्षेत्र में स्थित हैं, जहां माॅनसून के महीनों में मध्यम वर्षा होती है जो जलभरों को उनके पिछले स्तर पर रिचार्ज करने के लिए पर्याप्त नहीं है। इस कारण भूमि में विकृति आने लगती है और यह विकृति मुख्य रूप से सिकुड़न व दरारों के रूप में परिलक्षित होती है।

प्रांजल चेताते हैं कि यह समस्या शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में है, लेकिन ध्यान केवल शहरों तक सीमित है। वह कहते हैं, “शहरी प्रशासक धीरे-धीरे भूजल की खपत कम करने के उद्देश्य से नदियों और जल निकायों से पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं।”

शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसे कई और क्षेत्र हो सकते हैं जहां पहले से भू-धंसाव हो रहा हो लेकिन अभी तक उसे दर्ज नहीं किया गया है। प्रांजल कहते हैं, “ऐसी घटनाएं कई किलोमीटर के दायरे में फैली हो सकती हैं। इसे समझने के लिए स्थानीय उपग्रह चित्रों के अध्ययन की आवश्यकता है जो भूजल निकासी की दर से भू-धंसाव के संबंध को स्थापित करते हैं। अंत में क्षति के पैमाने को समझने के लिए जमीनी सत्यापन की आवश्यकता होती है। यह पूरी प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली होती है।”

डाउन टू अर्थ ने 2000 और 2022 के बीच औसत भूजल स्तर में राज्य-वार परिवर्तनों का विश्लेषण किया और पाया कि 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इसकी स्थिति खराब हो गई है। पंजाब सबसे बदतर स्थिति में था, जहां इन 22 वर्षों में भूजल स्तर में 150 मीटर अथवा कुतुब मीनार की दोगुनी ऊंचाई के बराबर गिरावट आई। इसके बाद मेघालय (13 मीटर) और उत्तर प्रदेश (10.6 मीटर) हैं (देखें, असुरक्षा का विस्तार)।

स्रोत: प्रांशू प्रांजल, सहायक प्रोफेसर, वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, भोपाल

वैश्विक संकट

भूजल दोहन के कारण भूमि धंसने का पहला मामला 1990 के दशक की शुरुआत में अमेरिका के कैलिफोर्निया में दर्ज किया गया था। यहां कुछ क्षेत्रों में 50 वर्षों में 150 मीटर तक धंसाव दर्ज होने के बाद परिवारों को हटा दिया गया था। कैलिफोर्निया की सैन जोकिन घाटी में एक वाणिज्यिक बगीचे के लिए भूजल की अत्यधिक पंपिंग के कारण भूमि प्रति वर्ष 0.3 मीटर धंस रही है, जिससे क्षेत्र में स्थायी भू-धंसाव और भूस्खलन हुआ।

दक्षिण पूर्व एशिया में बड़े शहरों की बेहताशा वृद्धि ने डिजाइन की गंभीर समस्या को जन्म दिया जिस पर अब बहुत सी सरकारें ध्यान दे रही हैं। जकार्ता को दुनिया का सबसे तेजी से डूबने वाला शहर माना जाता है। शहर का 40 प्रतिशत हिस्सा पहले से ही समुद्र तल से नीचे है। अनुमान है कि 2050 तक उत्तरी जकार्ता का लगभग 95 प्रतिशत हिस्सा पानी के नीचे होगा। थाईलैंड का बैंकॉक और वियतनाम का हो ची मिन्ह शहर भी डूब रहे हैं, जिनमें प्रति वर्ष क्रमश: 2 सेमी और 5 सेमी तक की गिरावट दर से धंसाव हो रहा है।

मलेशिया स्थित टेलर्स यूनिवर्सिटी में कार्यक्रम निदेशक व वास्तुशिल्प के वरिष्ठ लेक्चरार तमिल साल्वी मारी लिखती हैं कि दुनियाभर के सभी भू-धंसाव के मामलों में से 77 प्रतिशत मामले मानवीय गतिविधियों का नतीजा है। इसमें भूजल दोहन की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत है। अपने लेख “सिकिंग सिटीज: टू वे टु फाइट लैंड सब्सिडेंस” में वह लिखती हैं कि भू-धंसाव से इमारतों और सड़कों जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों को नुकसान पहुंचता है, जल निकासी पैटर्न बदल जाता है और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।

आसान समाधान

विशेषज्ञ मानते हैं कि भूजल पुनर्भरण से भू-धंसाव को पलटा नहीं जा सकता। इसका एकमात्र समाधान भूजल के अत्यधिक दोहन को रोकना है। इसे विभिन्न उपायों से रोका जा सकता है, जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों के लिए जल बजटिंग। भारत में कई गांवों ने पहले ही जल बजट अपना लिया है, जहां लोग उपलब्ध और उपयुक्त पानी की गणना करते हैं। शहरों को भी इसी तरह का जल बजट लागू करना चाहिए। प्रांजल का सुझाव है कि एक और उपाय जल निकायों को पुनर्जीवित करना है जो भूजल पुनर्भरण में सहायता कर सकते हैं। वह कहते हैं, “अमेरिका में जल निकाय शहरी परिदृश्य का हिस्सा हैं।” भारत में हाल ही में जारी जल निकाय गणना के अनुसार, हर चार शहरी जल निकायों में से लगभग एक उपयोग में नहीं है।

 

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