डेढ़ साल बाद शुरू हुई अटल भूजल योजना, जानें खासियत

देश में तेजी से गिरते भूजल स्तर को रोकने की दृष्टि से अटल भूजल योजना को महत्वपूर्ण माना जा रहा है

By DTE Staff

On: Wednesday 25 December 2019
 
अटल भूजल योजना की शुरुआत करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। फोटो: twitter/ @cleanganganmcg

लगभग डेढ़ साल बाद आखिरकार अटल भूजल योजना शुरू हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 दिसंबर 2019 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस के मौके पर इसकी शुरुआत की। ऐसे समय में, जब भारत के इन राज्यों में भूजल स्तर काफी खराब हालात में हैं, यह योजना एक बेहतर प्रयास मानी जा रही है।

मोदी सरकार ने मार्च 2018 में 'अटल भूजल योजना' का प्रस्ताव रखा था। जिसे विश्व बैंक की सहायता से 2018-19 से 2022-23 की पांच वर्ष की अवधि में कार्यान्वित किया जाना है। इसका लक्ष्य भूजल का गंभीर संकट झेल रहे सात राज्यों गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में सबकी भागीदारी से भूजल का उचित और टिकाऊ प्रबंधन करना था । परन्तु मंत्रिमंडल की मंजूरी न मिल पाने के कारण यह योजना पिछले डेढ़ साल से अधिक समय से अटकी रही। इस योजना को एक दिन पहले ही 24 दिसंबर 2019 को इसे केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिली है।

अटल जल योजना के तहत राज्‍यों में स्‍थायी भू-जल प्रबंधन के लिए संस्‍थागत प्रबंधनों को मजबूत बनाया जाएगा। संस्थाओं की क्षमता में वृदि्ध की जाएगी। इसके अलावा डाटा विस्‍तार पर फोकस किया जाएगा, जो जल सुरक्षा संबंधी योजनाओं को तैयार करने में मददगार होगा। भूजल प्रबंधन की उपलब्धियां हासिल करने वाले राज्‍यों को प्रोत्‍साहन दिया जाएगा। योजना में कृषि में इस्तेमाल होने वाले पानी के उचित प्रबंधन को भी शामिल किया गया है। इसमें सूक्ष्‍म सिंचाई, फसल विविधता, अलग विद्युत फीडर जैसे कदम उठाए जाएंगे, ताकि उपलब्‍ध भू-जल संसाधनों का उचित उपयोग किया जा सके।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के रिसर्चर्स का कहना है कि यह योजना इसलिए सार्थक साबित हो सकती है, क्योंकि इसमें समुदायों के सहयोग लेने पर खास ध्यान दिया गया है। 

ध्यान रहे कि देश के कुल सिंचित क्षेत्र में लगभग 65 प्रतिशत और ग्रामीण पेयजल आपूर्ति में लगभग 85 प्रतिशत भूजल का इस्तेमाल किया जाता है। जनसंख्‍या, शहरीकरण और औद्योगिकीकरण की बढ़ती हुई मांग के कारण देश के सीमित भू-जल संसाधन खतरे में हैं। अधिकांश क्षेत्रों में व्‍यापक और अनियंत्रित भू-जल दोहन से इसके स्‍तर में तेजी से और व्‍यापक रूप से कमी होने के साथ-साथ भू-जल पृथक्‍करण ढांचों की निरंतरता में गिरावट आई है।

देश के कुछ भागों में भू-जल की उपलब्‍धता में गिरावट की समस्‍या को भू-जल की गुणवत्‍ता में कमी ने और बढ़ा दिया है। अधिक दोहन, अपमिश्रण और इससे जुड़े पर्यावरणीय प्रभावों के कारण भू-जल पर पड़ते दबाव ने राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा खतरे में पहुंच गई है। इसके लिए आवश्‍यक सुधारात्‍मक, उपचारात्‍मक प्रयास प्राथमिकता के आधार पर किये जाने की जरूरत है।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि दुनिया भर में भारत में भूजल का सर्वाधिक दोहन किया जाता है, यहां प्रति वर्ष 230 क्यूबिक किलोमीटर भूजल का उपयोग कर लिया जाता है, जोकि भूजल के वैश्विक उपयोग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उत्तर भारत जोकि देश का गेहूं और चावल का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है, में 5,400 करोड़ क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष की दर से भूजल घट रहा है । नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट ने भी लगातार घटते भूजल के स्तर पर चिंता जताई थी। उसके अनुसार वर्ष 2030 तक देश में भूजल में आ रही यह गिरावट सबसे बड़े संकट का रूप ले लेगी । वहीं 2020 तक दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद सहित 21 शहरों में भूजल लगभग खत्म होने की कगार पर पहुंच जायेगा।

 

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