भारत में गर्मी का मौसम शुरू, क्या कम होगा कोरोनावायरस संक्रमण?

अगले 2 सप्ताह महत्वपूर्ण होंगे। इस दौरान मौसम से संबंधित अधिक आंकड़े आएंगे। साथ ही, वायरस, आर्द्रता और अल्ट्रा-वायलेट विकिरण से संबंधित जानकारी भी सामने आएगी

By Akshit Sangomla

On: Wednesday 15 April 2020
 

कोविड-19 एवं गर्मी के बीच के संबंध को लेकर अटकलें लगती आई हैं। कुछ ही समय पहले भारत में गर्मी का मौसम शुरू हो गया है। बारिश और ठंड वाले मार्च के महीने के बाद अप्रैल 2020 के दूसरे सप्ताह में अंततः तापमान बढ़ने लगा है।

संयुक्त राज्य अमेरिका के मैरीलैंड विश्वविद्यालय में जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुडे ने कहा - "भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी की गई एक्स्टेंडेड रेंज फोरकास्ट पहले ही अप्रैल के सामान्य से ठंडे  होने की ओर संकेत कर चुकी है और अब तक ऐसा ही हुआ भी है।”

अप्रैल की शुरुआत में चीन में वायु प्रदूषण कमा है एवं ऐरोसॉल के फैलाव में भी कमी आई है। यह कोविड -19 महामारी की रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन के फलस्वरूप है।

मुर्तुगुडे ने बताया, "मॉनसून आने के पहले  बारिश होना कोई अचरज की बात नहीं है लेकिन ग्रीनहाउस गैसों और एरोसोल / प्रदूषण में आई नाटकीय गिरावट इसका सबसे बड़ा संकेत है ।“

उन्होंने कहा- “चीन का वातावरण हमसे पहले साफ हो गया और इसके फलस्वरूप  तिब्बत के साथ-साथ यूरेशिया पर इसका असर पड़ा होगा । ऐरोसॉल की मात्रा में आई गिरावट से धरती एवं महासागरों के गर्म होने पर भी प्रभाव पड़ेगा ।”

मुर्तुगुडे आगे कहते हैं - “ये सभी पहलू  मॉनसून एवं प्री-मॉनसून वर्षा को किस हद तक प्रभावित कर रहे हैं। इसका अंदाजा अभी लगाना मुश्किल होगा। कुछ मॉडलिंग अध्ययन भी किए जा रहे हैं, जो जल्द ही इस विषय पर प्रकाश डालेंगे”।

आईएमडी के आंकड़ों के अनुसार, 11 अप्रैल को गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस के ऊपर चला गया था। 

भारत के अन्य भागों में अधिकतम तापमान तुलनात्मक रूप से काफी कम है। वास्तव में, देश के पूर्वी, मध्य और दक्षिणी भागों के बड़े हिस्सों में अभी भी अधिकतम तापमान सामान्य से 1-3 डिग्री सेल्सियस नीचे है।

आई एम डी ने पहले इस साल के सामान्य से गर्म रहने की भविष्यवाणी की थी और कहा था कि अप्रैल-मई जून के औसत अधिकतम तापमान के सामान्य से 0.5-1 ° C तक अधिक गर्म होने की संभावना है। 

पूर्व और पश्चिम राजस्थान, पश्चिम मध्य प्रदेश, गुजरात, कोंकण और गोवा, मध्य महाराष्ट्र, मराठवाड़ा, उत्तर और दक्षिण आंतरिक कर्नाटक, तटीय कर्नाटक, रायलसीमा और केरल के इलाके सामान्य से अधिक गर्म होंगे।

मौसम एवं कोविड - 19

विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड -19 महामारी के प्रसार पर तापमान और आर्द्रता जैसे मौसम के कारकों का प्रभाव पड़ता है लेकिन यह भी सच है कि इसपर आम सहमति नहीं बन पाई है।

अमेरिका की  नेशनल अकैडमीज़ प्रेस द्वारा 7 अप्रैल, 2020 को प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार, ऐसे दो तरीके हैं जिनसे  वैज्ञानिक मौसम और बीमारियों के बीच के संबंधों का पता लगाते हैं।

यह आकलन नैशनल अकैडमीज़ के निर्देशन में  "ईमरजींग इंफेकशस डिजीजेज़ ऐंड ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी हेल्थ थ्रेट्स" की   स्थायी समिति द्वारा किया गया है।

पहला तरीका प्रयोगशाला में तैयार किये गए सार्स -सीओवी-2 वायरस का अध्ययन करना है । इसमें  कोविड -19 रोग के विकास एवं और इसके व्यवहार का अवलोकन नियंत्रित हालात में किया जाता है।

दूसरा तरीका प्राकृतिक इतिहास के अध्ययन के माध्यम से है। इसमें पूरे वर्ष विभिन्न स्थानों पर बीमारी के प्राकृतिक रूप से फैलने पर नज़र रखी जाती है   है। इन दोनों ही तरीकों की अपनी अपनी कमियां है।

जहां तक प्रायोगिक अध्ययन की बात है , प्रयोगशाला कभी वास्तविक जीवन की स्थितियों के करीब नहीं होती हैं। वहीं प्राकृतिक इतिहास के माध्यम से भी रोग के प्रसार के सटीक कारणों को इंगित करना मुश्किल होगा क्योंकि इसमें कई कारक शामिल हैं।

इन दोनों तरीकों के परिणामों से निकले निष्कर्षों में मेल बैठाना भी मुश्किल होता है क्योंकि ये दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं।

इस अध्ययन के लिए इकट्ठा किए गए प्रायोगिक आंकड़ों से पता लगा है कि गर्मी बढ़ने पर वायरस कमज़ोर होता है । उदाहरण के लिए, हांगकांग के एक शोध पत्र ने कहा कि लगातार एक हफ्ते तक  22 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर वायरस की संख्या में लगभग 50 प्रतिशत की कमी आई जबकि 14 दिनों के बाद वायरस का कोई नामो निशान नहीं बचा।

37 डिग्री सेल्सियस पर, सिर्फ एक दिन के अंदर ही वायरस की संख्या आधी हो गयी जिससे पता चलता है कि तापमान में वृद्धि का वायरस की संख्या पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ता है।

इस शोधपत्र के अनुसार इस वायरस और तापमान के बीच का संबंध अलग अलग सतहों के साथ बदलता रहता है। यह वायरस कागज और टिशू पेपर पर तीन घंटे, कपड़े पर दो दिन और स्टेनलेस स्टील पर सात दिनों तक जीवित रह सकता है।

एक चिंताजनक परिणाम भी सामने निकालकर आया - वायरस के संपर्क में आने के सात दिन बाद तक पर्सनल पोटेक्शन ईक्विपमेंट्स में इस वायरस को पाया गया । शायद यही कारण है  कि कोविड-19 बीमारी का मुकाबला कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों पर इसके संक्रमण का खतरा है।

लुईसियाना के तुलान यूनिवर्सिटी नेशनल प्राइमेट रिसर्च सेंटर में किए जा रहे एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि 23 से 50 डिग्री सापेक्ष आर्द्रता की स्थिति में  सार्स -सीओवी-2 वायरस की “हाफ लाइफ” इन्फ्लूएंजा वायरस, सार्स-सीओवी -1 वायरस, मंकीपॉक्स वायरस और तपेदिक के बैक्टीरिया से कम है।

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अभी काफी कम रिसर्च हुआ है और वास्तविक वायरस के गुण इन अध्ययनों में उपयोग किए जा रहे कृत्रिम रूप से विकसित वायरसों से  भिन्न हो सकते हैं।

अधिकांश प्रयोगशालाएं में नमी नियंत्रित रखने की सुविधा नहीं है जिसका असर प्रयोगों पर पड़ता है । इसके अलावा, ये सभी प्रयोग किसी एक पद्धति से नहीं होते हैं, जिसका अर्थ है कि उनसे कोई संबंध या निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।

अगले  सप्ताह तक इस विषय में  अधिक जानकारी आने की उम्मीद है, विशेष रूप से वायरस और आर्द्रता और अल्ट्रा-वायलेट विकिरण के बीच के संबंधों के बारे में। 

वहीं दूसरी ओर , बीमारी के प्राकृतिक इतिहास पर आधारित अध्ययन भी किसी निष्कर्ष तक पहुंचने में विफल रहे हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस महामारी के शुरू होने के बाद से अबतक काफी कम समय बीत है जिसकी वजह से निर्णायक आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। 

हालांकि कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि तेज़ गर्मी और आर्द्रता में कोरोनावायरस कम फैलता है । हालांकि फैलने की गति का  धीमा होना काफी नहीं है क्योंकि लोगों में इस वायरस के खिलाफ इम्म्यूनिटी विकसित नहीं हो पाई है।

मुर्तुगुडे ने कहा - “कुछ शोधपत्रों  में दावा किया गया है कि तापमान , आर्द्रता और कोविड  संक्रमण एवं मृत्यु दर के बीच एक संबंध है। लेकिन यह तब सच होता जब यह वायरस प्राकृतिक रूप से फैलता ।

मुर्तुगुडे ने कहा, " मध्य - अक्षांश देशों में फ्लू मौसमी होता है  और क्योंकि कोविड -19 भी फ्लू जैसी ही एक बीमारी है , यह संभावना है कि बदलते  मौसम के साथ यह स्वयं खत्म हो जाएगा ।"

मुर्तुगुडे निष्कर्ष निकालते हुए कहते हैं - “ट्रॉपिक्स में  फ्लू का कोई मौसम नहीं होता है और यह बीमारी कभी भी हो सकती है।अन्य  जीवों की तरह कोरोनोवायरस में भी खुले वातावरण में जीवित रहने की एक सीमा होगी, लेकिन अब यह देखना सबसे महत्वपूर्ण रहेगा कि हमने फैलने में इस वायरस की कितनी मदद की है ,"

Subscribe to our daily hindi newsletter