असम : क्यों है लखीमपुर सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित?

पापुमा पारे से डिकोरनी नदी और लोअर सियांग से सुबानसीरी नदी ने लखीमपुर की बाढ़ को प्रभावित किया है। 

By Vivek Mishra

On: Thursday 22 June 2023
 
फाइल फोटो: सीएसई

असम में बाढ़ जारी है और सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में लखीमपुर का नाम सबसे ऊपर है। असम स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के सबसे ज्यादा बाढ़ग्रस्त रहने वाले जिलों की सूची में भी लखीमपुर का नाम पहले से शामिल है। आखिर ऐसा क्या है जो लखीमपुर जिले को हर वर्ष बाढ़ग्रस्त बना देता है?

अभी बीते ही वर्ष जून, 2022 में असम और मेघालय सबडिवीजन में 121 वर्षों में सबसे ज्यादा वर्षा दर्ज की गई थी, अकेले असम ने जून महीने की औसत सामान्य वर्षा 415.2 मिलीमीटर (एमएम) से 61 फीसदी अधिक यानी 669 एमएम वर्षा हासिल की थी, जिसके चलते बाढ़ आई और समूचे प्रदेश में 124 लोगों के मरने की पुष्टि हुई। तब भी लखीमपुर सबसे ज्यादा बाढ़ प्रभावित जिला बना था। 

वर्ष 2023 में मानसून ने देर से 8 जून को आगमन किया और असम में 10 जून से वर्षा शुरू हो गई। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक समूचे असम में एक जून से 22 जून तक 381.6 मिलीमीटर वर्षा हुई है। यह सामान्य 294.0 एमएम से 30% अधिक है।

असम के लखीमपुर जिले में  22 जून को सामान्य 21.3 एमएम से 147 फीसदी अधिक 52.5 एमएम वर्षा रिकॉर्ड की गई। सिर्फ यही नहीं बारपेटा में 22 जून को सामान्य(18.1 एमएम) से 680 फीसदी अधिक 141.2 एमएम वर्षा रिकॉर्ड की गई। फिलहाल वहां भी बाढ़ तीव्र हो गई है। नलबारी, बक्सा, और लखीमपुर में सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित हैं। 

असम स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट की ओर से 21 जून की स्थिति पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 119830 लोग बाढ़ प्रभावित हैं।  नलबाड़ी में 44707, बक्सा में 26571 और लखीमपुर में 25096 लोग बाढ़ प्रभावित हैं।  

बहुत कम समय में ज्यादा वर्षा का हो जाना असम में ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों में बाढ़ के आवेग को बढ़ा देता है। हालांकि, असम में यह कोई नई बात नहीं है।

भारतीय मौसम विभाग के 30 वर्ष (1989-2018) के जलवायु आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट के मुताबिक असम की सभी नदियां बाढ़ की जिम्मेदार हैं क्योंकि वह भारी वर्षा बहुत ही कम समय में प्राप्त करती हैं। साथ ही पड़ोस में हिमालय से भी पानी असम में बहुत तेजी से आता है। यह सभी नदियां बहुत ही कम समय में तीव्र आवेग धारण कर लेती हैं और किनारों व मिट्टी का कटाव करने लगती हैं। इनमें बड़ी मात्रा में सिल्ट और मलबा होता है जो तीव्रता से नदी में पहुंचकर उनमें पानी को काफी हद तक बढा देती हैं। मुख्यधारा को नियंत्रित करना लगभग नामुमकिन हो जाता है और जिसके कारण नदियां आस-पास के इलाकों में पानी लाती हैं। 

इसके बावजूद आपदा प्रबंधन में कमियां हर वर्ष बनी रह जाती हैं। 

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के 1991-2020 के जलवायु आंकड़ों के आधार पर सामान्य वर्षा और मानसून के बाद से हुई वर्षा का आकलन देखें तो स्पष्ट होता है कि नॉर्थ लखीमपुर स्टेशन में 8 जून के बाद से 22 जून तक 10 दिन ऐसे रहे जब अत्यधिक वर्षा (लार्ज एक्सेस रेनफॉल) हुई। इसने बाढ़ की स्थितियों को और वीभत्स बनाया।

लखीमपुर जिले के तहत नॉर्थ लखीमपुर स्टेशन में रिकॉर्ड किए गए वर्षा आंकड़ों से पता चलता है कि 11, 12, 14, 15 और 16, 17, 18, 20, 21 जून को लगातार भारी वर्षा हुई। इसमें अकेल 14 जून को ही 335 फीसदी अधिक और 15 जून को 472 फीसदी अधिक वर्षा सिर्फ दो दिन में रिकॉर्ड की गई। 

आईएमडी क्लाइमेट डाटा सर्विस पोर्टल का विश्लेषण - नॉर्थ लखीमपुर स्टेशन

Date Normal Actual %Departure
8-Jun 17.3 0 0%
9-Jun 17.1 0 0%
10-Jun 14.2 6.4 45%
11-Jun 17.3 24.4 141%
12-Jun 18.1 46.9 259%
13-Jun 17.7 8 45%
14-Jun 30.5 102.1 335%
15-Jun 18.8 88.8 472%
16-Jun 27.9 50.2 180%
17-Jun 25.3 26.2 104%
18-Jun 19.8 13.3 67%
19-Jun 19.7 0.4 2%
20-Jun 19.6 20.9 107%
21-Jun 22.8 42.8 188%
22-Jun 29.9 74.6 249%

 

वहीं, अरुणाचल प्रदेश की ओर से पापुम पारे व लोअर सियांग की ओर से लीखमपुर की तरफ आने वाली नदियों ने बाढ़ के वेग को बढ़ा दिया है। अरुणाचल प्रदेश में भी बीते सप्ताह भारी वर्षा हुई थी। पापुमा पारे से डिकोरनी नदी और लोअर सियांग से सुबानसीरी नदी ने लखीमपुर की बाढ़ को प्रभावित किया है। 

आईएमडी क्लाइमेट डाटा सर्विस पोर्टल के मुताबिक 1991 से 2000 के आंकड़ों के आधार पर नॉर्थ लखीमपुर स्टेशन पर जून महीने में औसत सामान्य वर्षा 626.7 एमएम होती है। 16 जून, 2010 को 24 घंटे में सर्वाधिक वर्षा 207.8 एमएम रिकॉर्ड की गई थी। 

बाढ़ के लिए तटबंध जैसे रास्ते इस उथल-पुथल वाले मौसम के लिए स्थाई समाधान नहीं रह गए हैं। वैश्विक स्तर पर यह महसूस किया जा रहा है कि एक मजबूत नीति ही बाढ़ से बचाव का रास्ता है। 

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