एक महीने पहले लग सकता है मानसून का सटीक अनुमान, होगा किसानों को फायदा

किसानों को समय से पहले मानसून संबंधी जानकारी प्रदान करने से उन्हें अप्रत्याशित भारी वर्षा या भयंकर सूखे से निपटने में मदद मिल सकती है।

By Dayanidhi

On: Monday 15 February 2021
 

भारत में फसलों को होने वाले नुकसान को कम करने के लिए, मानसूनी मौसम में होने वाले बदलाव के शुरुआती पूर्वानुमान के बारे में किसानों को जानकारी दी जानी चाहिए।

रीडिंग विश्वविद्यालय और यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्ट (ईसीएमडब्ल्यूएफ) के शोधकर्ताओं ने पहली बार अध्ययन किया कि लंबे समय के लिए दुनिया भर के मौसम के बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। विशेष रूप से पूर्वानुमान इस बारे में है कि गर्मी में आने वाला मानसून कब शुरू होगा और कितनी बारिश होगी।

उन्होंने पाया कि भारत के प्रमुख कृषि क्षेत्रों में मानसून आने के समय से एक महीने पहले ही इसका सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। किसानों को यह जानकारी प्रदान करने से उन्हें अप्रत्याशित भारी वर्षा या भयंकर सूखे की अवधि के लिए पहले से तैयार करने में मदद मिल सकती है, भारत में हमेशा से ही दोनों परिस्थितियां फसलों को नष्ट करने के लिए जानी जाती हैं।

रीडिंग यूनिवर्सिटी के मानसून शोधकर्ता और प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. अमूल्य चेवुतुरी ने कहा कि भारतीय मानसून भारत की वार्षिक वर्षा का लगभग 80 फीसदी तक बारिश लाता है, इसलिए कृषि पर इसके आगमन के समय में भी छोटे बदलाव का भारी प्रभाव पड़ सकता है। इन साल-दर-साल होने वाले बदलावों के बारे में सटीक पूर्वानुमान लगाना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन यह अनुमान कई परिवारों के लिए सम्पन्नता तथा कईयों के लिए गरीबी का सबब बन सकता है।

अध्ययनकर्ता ने कहा  कि भारत के मुख्य कृषि क्षेत्रों में हमने जिस सटीकता से पूर्वानुमान लगाया है, वह प्रणाली लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए एक अवसर प्रदान करती है। यह पानी की उपलब्धता और किसानों के लिए होने वाले प्रभावों जैसे- सूखे या बाढ़ के बारे में समझने में मदद कर सकता है जिससे खाद्य आपूर्ति को होने वाले खतरे को कम करने का प्रावधान किया जा सकता है।

बेहतर पूर्वानुमान से जीवन बचाए जा सकते हैं, इस तरह का गहन वैश्विक विश्लेषण केवल तभी संभव है जब सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक और प्रमुख शोध संस्थान पूरे धरती के फायदे के लिए एक साथ काम करें। भारतीय मानसून का मौसम हर साल 1 जून से शुरू होता है, जो पूरे उपमहाद्वीप में फैलने से पहले दक्षिण पश्चिम भारत से शुरू होता है।

वैज्ञानिकों ने पहली बार (ईसीएमडब्ल्यूएफ) के नवीनतम मौसमी पूर्वानुमान प्रणाली, एसईएएसएस की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए 36 साल के मानसून के आंकड़ों को देखा। इसमें इस बात का अनुमान लगाया गया कि भारतीय मानसून लंबे समय में औसत से कैसे भिन्न होगा।  टीम ने 1981-2016 से प्रत्येक वर्ष 1 मई से पूर्वानुमानों की तुलना की जिसके बाद मानसून की वास्तविक अवलोकन का पालन किया गया।

क्लाइमेट डायनामिक्स नामक पत्रिका में प्रकाशित उनके अध्ययन में पाया गया कि बड़े पैमाने पर तापमान और हवाओं जैसे मौसम के बारे में पूर्वानुमान सटीक थे, जिसकी वजह से पूरे भारत में मानसून की वर्षा होती है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि एसईएएसएस गंगा के मैदानों और भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों के साथ महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्रों पर जल्दी या देर से मानसून आने की भविष्यवाणी करने में बहुत बेहतर साबित हुआ।

इसने उस प्रणाली की कमियों की पहचान की जिससे मॉडल में सुधार किया जा सकता है, संभवतः लंबे समय तक अधिक विस्तृत और सटीक मौसमी मानसून के पूर्वानुमान के बारे में जानकारी दे सकती है।

अध्ययन से पता चलता है कि पर्वतीय पश्चिमी घाटों और हिमालयी क्षेत्रों में अधिक वर्षा और देश के उत्तर में गंगा नदी के मैदानी इलाकों और बंगाल की खाड़ी में इसके डेल्टा वाले भाग मैं कम वर्षा हुई। हालांकि, पूर्वानुमान पूरे भारत में मानसून वर्षा पैटर्न के लिए सही थे, जिससे योजना बनाने के उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है।

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