अल नीनो की विदाई के साथ ला नीना के लिए रहें तैयार, भारत में गर्मी और मॉनसून पर क्या होगा असर?

आशंका है कि अल नीनो की विदाई अप्रैल 2024 तक हो सकती है

By Akshit Sangomla, Lalit Maurya

On: Monday 12 February 2024
 
अनुमान है कि ला नीना की वजह से देश में औसत से ज्यादा बारिश हो सकती है, लेकिन उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों बारिश में कमी का सामना करना पड़ सकता है; फोटो: आईस्टॉक

कयास लगाए जा रहे हैं कि देश में इस बार मॉनसून के दौरान सामान्य से कहीं ज्यादा बारिश हो सकती है। बता दें कि देश के उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व और मध्य इलाके इस बार सर्दियों में कमोबेश सूखे ही रहे हैं। वहीं यह भी अनुमान है कि इन क्षेत्रों में इस साल बसंत और गर्मियां कुछ ज्यादा ही गर्म रह सकती हैं।

यदि इन मौसमी बदलावों के कारणों पर नजर डालें तो जहां अनुमान है कि साल के अंत तक बनने वाली ला नीना की घटना बारिश में वृद्धि की वजह बन सकती हैं। वहीं दूसरी तरफ अल नीनो और ग्लोबल वार्मिंग का मिला जुला प्रभाव बढ़ते तापमान की वजह बन सकता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि अल नीनो और ला नीना दोनों ही भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में घटित होने वाली मौसमी हलचलें हैं। यह दोनों ही घटनाएं अल नीनो दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) नामक घटना के दो विपरीत चरण हैं। जहां अल नीनो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के पूर्वी और मध्य भागों के तापमान में वृद्धि से जुड़ा है, वहीं दूसरी तरफ ला नीना तापमान में आने वाली गिरावट को दर्शाता है।

यह दोनों ही घटनाएं करीब-करीब पूरी दुनिया को प्रभावित करती है। यदि भारत में मॉनसूनी पर पड़ने वाले इसके असर को देखें तो जहां अल नीनो, मॉनसून को कमजोर करता है, वहीं दूसरी तरफ ठंडा चरण, ला नीना, बारिश में इजाफा करता है।

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हालांकि ऐसा नहीं है कि ला नीना हमेशा ऐसा ही प्रभाव डालेगा, इसका भी चरित्र बदल सकता है। उदाहरण के लिए भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में बने ला नीना के बावजूद भारत में मार्च से जून 2022 के बीच भीषण गर्मी और लू का कहर देखा गया था।

मॉनसून के दौरान बारिश में हो सकता है इजाफा

वैज्ञानिकों के मुताबिक भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में मौजूदा अल नीनो की अप्रैल 2024 तक विदाई हो सकती है। नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नवीनतम अपडेट के अनुसार, अप्रैल से जून तक ईएनएसओ तटस्थ परिस्थितियों (न तो एल नीनो और न ही ला नीना) के एक संक्षिप्त चरण के बाद, जुलाई में दोबारा ला नीना में बदल सकता है।

नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस और यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के मौसम विज्ञान विभाग के शोध वैज्ञानिक अक्षय देवरस ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) को बताया कि एनओएए का नवीनतम पूर्वानुमान सितंबर से नवंबर 2024 के बीच ला नीना के बनने की 70 फीसदी से अधिक की संभावना का संकेत देता है।

उनका यह भी कहना है कि भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर की सतह के नीचे के अवलोकन सामान्य से अधिक ठंडे पानी के बढ़ते क्षेत्र को दर्शाते हैं। इस प्रवृत्ति से गर्मियों की शुरूआत में वर्तमान अल नीनो घटना के समाप्त होने और बाद में ला नीना जैसी स्थितियों की ओर बदलाव की आशंका है।

वहीं भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे और मैरीलैंड विश्वविद्यालय, अमेरिका के जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुड्डे का कहना है कि आमतौर पर गर्मी और मॉनसून के मौसम के लिए ईएनएसओ की भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण होता है। उनके मुताबिक ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उत्तरी गोलार्ध में वसंत के दौरान, समुद्र और वायुमंडल के बीच संपर्क कमजोर (स्प्रिंग बैरियर) हो जाता है, जिससे इसके पूर्वानुमान चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

मुर्तुगुड्डे ने डीटीई को बताया कि, "ला नीना पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में सामान्य ठंड की स्थिति का तीव्र होना है। ऐसे में स्प्रिंग बैरियर कम महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि मजबूत अल नीनो अक्सर ला नीना में बदल जाता है।"

वहीं देवरस का कहना है कि वर्तमान में स्प्रिंग बैरियर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, ऐतिहासिक आंकड़ों से पता चलता है कि महत्वपूर्ण अल नीनो घटनाएं (1950 के बाद से करीब 63 फीसदी) आम तौर पर ला नीना घटनाओं के बाद होती हैं।

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देवरस के मुताबिक इसका एक हालिया उदाहरण  2016-17 में सामने आई ला नीना घटना है, जो 2014 से 16 के बीच एक मजबूत अल नीनो के बाद सामने आई थी। वहीं अगर हम कमजोर अल नीनो घटनाओं को भी शामिल करें, तो 1950 के बाद से उनमें से आधे से अधिक के बाद ला नीना की घटनाएं हुई हैं। यही वजह है कि अवलोकन, मॉडल पूर्वानुमान और पिछले आंकड़े 2024 की दूसरी छमाही में ला नीना के बनने की अच्छी संभावना का संकेत देते हैं।

चरम मौसमी घटनाओं के लिए रहें तैयार

मुर्तुगुड्डे का कहना है कि, "मुझे इस साल ला नीना की उम्मीद है लेकिन अहम सवाल यह है कि, यह ला नीना कितना मजबूत होगा।" उनके अनुसार अल नीनो मई के आसपास अचानक से कमजोर पड़ सकता है और एक एक मजबूत ला नीना में बदल सकता है।

अनुमान है कि इसकी वजह से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के उत्तरार्ध में भारत के अधिकांश हिस्सों में औसत से अधिक बारिश हो सकती है, जो आम तौर पर जून में शुरू होती है और हाल के वर्षों में अक्टूबर तक बढ़ रही है।

मुर्तुगुड्डे ने बताया कि इसकी वजह से भारत में औसत बारिश पर सकारात्मक प्रभाव पड़ना चाहिए, लेकिन उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों को फिर से बारिश में कमी का सामना करना पड़ सकता है।

देवरस ने बताया कि यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि ला नीना कब बनेगा, लेकिन मौजूदा पूर्वानुमानों से संकेत मिलता है कि यह दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की दूसरी छमाही के दौरान मौजूद रह सकता है। आंकड़े भी दर्शाते है कि ला नीना वर्षों के दौरान भारत में मॉनसून का प्रदर्शन सामान्य तौर पर संतोषजनक रहा है।

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उनके मुताबिक पिछली ला नीना की घटना, तीन साल जारी रहने के बाद मार्च 2023 में समाप्त हुई। इस घटना के चलते न केवल मॉनसून में अच्छी बारिश हुई साथ ही मॉनसून का मौसम भी सामान्य से अधिक लम्बा रहा। उदाहरण के लिए, 2022 में मॉनसून का सीजन देश भर में छह फीसदी अधिक बारिश के साथ समाप्त हुआ था।

इसकी वजह से अक्टूबर तक अच्छी बारिश हुई। इन तीन ला नीना वर्षों के दौरान भारत के कई राज्यों में भारी बारिश की घटनाएं दर्ज की गई। यह घटनाएं खासकर मौसम के बाद के चरणों में सामने आई।  इनकी वजह से देश के कई हिस्सों  में मॉनसून के दौरान अकस्मात बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं भी दर्ज की गई।

ऐसा में यदि ला नीना इस साल भी मॉनसून सीजन के अंत में विकसित होता है तो ऐसा ही कुछ एक बार फिर देखने को मिल सकता है। इतना ही नहीं वातावरण और महासागरों में बढ़ती गर्मी भी इन चरम मौसमी घटनाओं में योगदान दे रहीं हैं। 

मुर्तुगुड्डे ने बताया कि, "उत्तर-पश्चिम और पूरे पाकिस्तान में जो हो रहा है, उसका सीधा सम्बन्ध अरब सागर के गर्म होने से जुड़ा है।" उनके मुताबिक भारत के अन्य हिस्सों में भी ला नीना के चलते चरम मौसमी घटनाओं का अनुभव हो सकता है।

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